अणु से विराट बनाने की क्रिया केवल गुरू जानता है, मनुष्य से देवता बनाने की क्रिया केवल गुरू जानता है, मूलाधार से सहस्त्रर तक पहुँचने की विद्या केवल गुरू जानता है। इसीलिये जीवन का आधार गुरू ही है।
मुझे अत्यधिक वेदना होती है जब तुम हमेशा एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो, तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे अपने मूल लक्ष्य की ओर बढ़ने से रोकते रहते है। मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुये है तो यह आपका दुर्भाग्य है।
शिष्य वही है जो भौतिकता को भोगे, परन्तु अपने मूल उद्देश्य से न डगमगाये। उसकी दृष्टि हमेशा अपने लक्ष्य पर टिकी रहे। मेरी इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहाँ अपने आप में पूर्णत्व है।
मैने जिन्दगी भर मेहनत कर रेगिस्तान में सुन्दर गुलाब के पुष्प खिलाये है, मैंने घुटन भरे बदबूदार दिल के कमरे में वसन्त हवा की सर-सराहट भरने का प्रयत्न किया है, मुरझाये हुये उदास चेहरों पर हंसी और खिल-खिलाहट की चांदनी बिखेरी है और अंधेरी रात में साधक रूपी चिराग जलाये है, जिससे मेरे शिष्य को अन्धेरे में ठोकर न लगे।
जीवन में ऐसे क्षण कभी-कभी ही आते है और वे क्षण यदि चूक गये, तो फिर तुम्हारे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा, अपने आपको समर्पित कर देना और इस समर्पण से तुम्हे सब कुछ मिल जायेगा, जिसे सत्यम् शिवम् सुन्दरम् और ब्रह्मानन्द कहा गया है।
प्रेम जीवन का अद्वितीय वरदान है और मैंने तुम्हारे होठों को गुनगुनाहट देकर तुम्हारे जीवन में वसन्त का आगमन किया है।
प्रत्येक व्यक्ति जब जन्म लेता है तो शुद्र के रूप में होता है, इसलिये उसको इस बात का ज्ञान नहीं होता कि मैं क्या हूँ और जब गुरू के पास में आता है, तब गुरू उसको एक नविन संस्कार देते है। उसको यह समझाते है कि यह उचित है, यह अनुचित है और तुम मेरे जाति के हो, मेरे गौत्र के हो, मेरे नाम के हो, मेरे ही पुत्र हो।
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