तुम्हारे सामने भी जीवन एक युद्ध है इस जीवन के युद्ध में 98 प्रतिशत लोग हार जाते है। इसलिए हार जाते है क्योंकि उनके पास कृष्ण जैसा कोई व्यक्ति नहीं होता जो उन्हें गीता का चिंतन दे सके।
तुम माया से जितना कटोगे उतना ही तुम प्रकृति से जुडोगे और जितना प्रकृति से जुडोगे उतना ही तुम साधक बन सकोगे इसलिए प्रकृति को साधक कहा गया है।
तुम कह रहे हो कि हम शिष्य है तो साधक के आगे की स्टेज शिष्यता है। शिष्यता प्राप्त करने के लिए तुम्हें ठोकर लगना अनिवार्य है क्योंकि जब ठोकर लगेगी तभी तुम मोह निद्रा से जागोगे।
तुम्हें कभी जिन्दगी में ठोकर लगे, मैं तो ऐसा चाहता हूं, कि जल्दी ही लगे। ऐसा तुम्हें एहसास हो सके कि तुम्हारी जिन्दगी का कुछ उद्देश्य, कुछ लक्ष्य है तुम उस उद्देश्य के पथ पर गतिशील हो सको।
यदि कोई गुरु तुम्हारे सामने हाथ जोडे़गा, गिड़गिड़ाएगा तो वह गुरु नहीं बन सकता क्योंकि गुरु का मतलब ही यह है कि वह तुम्हें चोट पहुंचाए।
स्थूल जगत में जो कुछ हम देखना चाहते है और जो कुछ हम देखते है और जिनको देखने से हमें प्रसन्नता होती है वह प्रसन्नता क्षणिक हैं।
भीतर जो कुछ दुर्गन्ध है उसको समाप्त करने की क्रिया को कुंडलिनी कहते है। अन्दर जो कुछ सुप्त अवस्था में है उसको जगाने की क्रिया को कुंडलिनी जागरण कहते है।
आंतरिक जीवन के अन्दर को प्राप्त करने की क्रिया को ही ध्यान कहते है, साधना कहते है, समाधी कहते है।
साधक अपने आप पूर्णता तक नहीं पहुंच सकता इसके लिए यह जरूरी है कि उसके पास समर्थ और सक्षम गुरु हो, इसके लिए जरूरी है कि वह उस गुरु को पहचानता हो इसके लिए जरूरी है कि उस शिष्य में पूर्ण आत्म समपर्ण हो और इससे भी ज्यादा जरूरी है कि शिष्य अपने आप को पूर्ण रूप से मिटा दे।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,