शुभाशीर्वाद !
वास्तविक रूप में मनुष्य का जीवन अंधेरे से भरा हुआ हैं। लेकिन भीतर प्रकाश अनन्त-अनन्त हैं। मनुष्य के जीवन की बाहर की परिधि पर जहर हैं, लेकिन भीतर अमृत का सागर हैं। मनुष्यों के जीवन के बाहर बंधन हैं लेकिन भीतर मुक्ति है। बाहर मृत्यु रूपी अंधकार है, लेकिन भीतर अमृत रूपी प्रकाश है। और जो एक बार अपने अंदर के आलोक के अमृत को, मुक्ति को जान लेता हैं, वह दिव्यता को प्राप्त कर लेता हैं। फिर उसके बाहर अंधकार के बन्धन नहीं रह जाते हैं। जब तक आप अपने अंदर की आत्मा से अपरिचित हैं तभी जीवन दुःख, पीड़ा कष्ट रूपी अंधकारमय है। लेकिन जैसे ही आप अंदर से परिचित होते हैं कि सभी दुःख पीड़ा कष्ट रूपी अंधकार समाप्त हो जाता है और परमानन्द रूपी सुख की प्राप्ति हो जाती है।
इस सृष्टि के मार्ग पर अवतीर्ण हो जाने के पश्चात् हम विषयों की तरफ आकर्षित हो जाते हैं। जिसके कारण हमारे चित्त में आनन्द का स्थायित्व नहीं हो पाता। इसका कारण केवल यही होता है कि जिन विषयो के लिए हमारा चित्त द्रवित होता है उनमें स्वयं ही धैर्य नहीं है। यही कारण हैं कि एक विषय में जब चित्त अभाव का अनुभव करता हैं तब दूसरी आकांक्षा की तरफ हो जाया करता है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है जिसके कारण आनन्द और सुखानुभूति की उपलब्धि हो ही नहीं पाती है। क्योंकि हम सांसारिक जीवन के उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर पाते है। आधे भरे हुए घड़े में जल घड़े को बजाया ही करता हैं और भरे हुए कलश में आवाज नहीं आती बल्कि जल छलका करता है।
सांसारिक मनुष्य के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने आप को पहचाने अपने को जाने बिना आप दूसरों को नहीं जान सकते। अपने को जानना और हृदय में बसे गुरुरूपी परमात्मा को पहचानना ही जीवन का मूल मंत्र है। इस दुनिया में बहुत कम लोग ही अपने अंदर की छिपी हुई शक्तियों को प्रकट कर पाते है। बाकी तो उन्हें अपने साथ ही लिये संसार से चले जाते है। गंतव्य का बोध न हो तो जीवन उस व्यक्ति की भांति होता है जो गाड़ी में तो बैठा है किन्तु इसे यह बोध नहीं कि जाना कहा है। संसार के मार्ग में ऐसे लाखों आदमी मिल जायेंगे जो जीवन की ट्रेन में बैठ कर कोई साठ स्टेशन पार कर चुके है तो कोई सत्तर स्टेशन पार कर चुके हैं किन्तु यह अभी तक नहीं जान पाये कि उन्हें उतरना कहा है ? उन्हें जाना कहां हैं? जिस रिश्ते मे लेने से अधिक देने का ध्यान दिया जाता हैं वह रिश्ता सर्वश्रेष्ठ होता है। गुरु, शिष्य और मित्र के बीच ऐसा ही रिश्ता होता है। गुरु देता है ज्ञान, शिष्य देता है सेवा और मित्र देता है साथ इसलिये इन तीनों रिश्तों को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। श्रेष्ठ गुरु आपको आगे और सिर्फ आगे बढ़ाना चाहता है और वह तो आपकी प्रतिभा को देखना चाहता है और आपको वहां पहुंचाना चाहता है जहां योग्यता और चेतना आपके भीतर आत्मा में भरी हुई हैं।
गुरु साधक के लिए सूरज के समान है जो सोये हुए को जगाता है वह पवन की भांति है जो जीवन में सुगन्धमय स्थितियाँ लाते है तथा गुरु पंछी की तरह मधुर आत्मिक वाणी में ज्ञान धारा के माध्यम से चेतना प्रदान करते है मनुष्य स्वयं अपने आप को पहचान सके, हमारे व्यक्तित्व का सही विकास तभी सम्भव हैं जब श्रेष्ठ गुरु के निरन्तर सरंक्षण में रहे क्योंकि गुरु ही साधक की योग्यता साहस और अन्दर की शक्तियाँ को न केवल क्रियाशील करता है। बल्कि अन्वरत जाग्रत भी बनाये रखता है। ऐसी हर स्थिति में संघर्ष करने में ही नहीं वरन् पूर्ण-पूर्ण सफलता अपने भक्तों को प्रदान करने के लिए तत्पर रहता हैं। इसीलिए नित्य पूजा अर्चना के साथ एक घंटा श्रेष्ठ ज्ञान वर्धक पुस्तकों और प्रत्रिका का पठन अवश्य करना चाहिए जिससे निरन्तर-निरन्तर ज्ञान की चेतना और तेजस्विता प्राप्त होती रहें और जीवन में ज्ञान के माध्यम से नूतनता बनी रहती हैं।
जब तक यह पत्रिका आपके हाथ में होगीं उस समय आप अपने सपरिवार के साथ आद्याशक्ति माता वैष्णों देवी के दिव्य और तेजमय स्थान पर अपने सद्गुरु के सानिध्य में त्रि शक्ति की दिव्यता को पूर्णरूपेण आत्मसात करने के लिए नवीन चेतना के लिए अग्रसर हो रहे होगें। अपने जीवन की मलिनता और जीवन की विविध चिंताओं और जीवन की प्रगति में आने वाले अवरोधों को समाप्त करने के लिए किसी विशिष्ट शक्ति की आराधना वंदना संकल्प शक्ति के साथ परिक्रमा और पूजा अर्चना सम्पन्न की जाती हैं। वही वास्तव में सही अर्थो में तीर्थ यात्रा कहलाती हैं। इस पवित्र भूमि पर आकर निश्चित रूप से आप अपने आप को देवयुक्त स्वरूप में महसूस कर सकेगें। क्योंकि ऐसी दिव्य भूमि पर गुरुदेव के सानिध्य में किसी शिष्य या साधक के आने से गुरु भक्त और भगवान को एकाकार करने की क्रिया प्रदान करता हैं। गुरु के सानिध्य में जिस भाव इच्छा से ऐसे पवित्र स्थान पर जो भी वंदना आराधना साधना करते हैं उसका पूर्ण प्रतिफल गुरु तो प्रदान करता ही हैं साथ ही अलौकिक दिव्य शक्ति का आर्शीवाद भी पूर्णरूपेण साधक को प्राप्त हो जाता हैं।
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