जीवन का मतलब केवल जिन्दा रहना नहीं है, सांस लेना नहीं है। केवल भोजन करना और विवाह कर सन्तान उत्पन्न करना भी जीवन का उद्देश्य नहीं है। जीवन का उद्देश्य तो इस बात में है की मनुष्य इस बात को समझ सके, कि मेरा जन्म क्यों हुआ है।
यह चिन्तन किसी पशु-पक्षी, कीट पंतग आदि में नहीं हो सकता। देवताओं और राक्षसों में भी जन्म लेने की क्रिया नहीं है, इसलिए मनुष्य जन्म को ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ क्रिया कहा गया है।
परन्तु तुम्हारा जन्म अपने आप में कोई अनहोनी घटना नहीं है, इससे समाज में कोई परिवर्तन नहीं आया। तुम्हारे जन्म के पहले क्षण से ही तुम्हारी क्रिया श्मशान की ओर जाने की क्रिया होने लगती है। पिछले क्षण की अपेक्षा अब तुम एक पल और मृत्यु के निकट हो गए हो।
मृत्यु की ओर जाने की यह क्रिया तो पशु-पक्षियों में भी है। फि़र तुममें और उनमें क्या अंतर है? क्यों प्रभु ने तुम्हें जीवन दिया है? जीवन का लक्ष्य क्या है? जीवन का ध्येय क्या है?
जीवन का लक्ष्य है सूक्ष्मता से पूर्णता की ओर अग्रसर होना। यह लक्ष्य आदि से अन्त होने की क्रिया है। जो सोचता है, चिन्तन करता है, वह मनुष्य है।
उस पशु जीवन से केवल गुरु ही ऊपर उठा सकते हैं। मनुष्य जीवन का क्या उद्देश्य है, इसे देवता भी नहीं बता सकते, क्योंकि जिन्होंने जन्म लिया ही नहीं वे इस मर्म को नहीं समझ सकते। परन्तु गुरु ने जन्म लिया है और जन्म लेकर पूर्णता तक पहुंचा है, इसलिए वह शिष्य को उस जगह तक पहुंचा सकता है।
मां बाप ने जो जन्म दिया, वह तो एक स्वाभाविक क्रिया थी, परन्तु गुरु शिष्य को वापस नए सिरे से एक नया जन्म देता है। उसे चेतना प्रदान करता है। इस नए जीवन का लक्ष्य होता है, धारण होती है, एक आगे बढ़ने की क्रिया होती है। जो पूर्णता का चिन्तन स्पष्ट करे, उसे गुरु कहा गया है। जिस क्षण गुरु तुम्हें दीक्षा देता है, जिस क्षण वह तुम्हें अपने मुंह से शिष्य कह देता है, ठीक वही क्षण तुम्हारा नया जन्म होता है, उसी क्षण तुम्हारे जीवन का स्वर्णिम प्रभात होता है, वहीं से तुम्हारा जीवन शुरू होता है।
इसके पहले तुम्हारा जो जीवन था, वह हाड़-मांस से बना जीवन था, मल-मूत्र से लिप्त जीवन था। उसमें वासनाएं थी, स्वार्थ था, लालच थी, ऐसा कुछ नहीं था जिस पर तुम्हें गर्व हो सके, क्योंकि तुम्हें ज्ञात ही नहीं था कि तुम किस पगडंडी पर चल रह हो?
परन्तु मैं तुम्हें स्मरण दिला रहा हूं, कि तुम्हारा जन्म ईश्वर की एक विशेष कृति है। ईश्वर ने तुम्हारा जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए किया है।
गुरु तुम्हें मात्र दीक्षा ही नहीं देता है, वह तुम्हारे रक्त को शुद्ध करता है, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी का छल, कपट, असत्य, व्याभिचार समाया हुआ है। गुरु तुम्हें एक चिन्गारी देता है, एक क्रान्ति देता है, एक विस्फ़ोट देता है, मृत्यु से अमृत्यु की ओर ले जाने की क्रिया देता है।
तब काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता, क्योंकि तब उसका अस्तित्व मात्र उसका अस्तित्व ही नहीं होता, उसका सम्बन्ध उस प्राश्चेतना से बनता है, उस दिव्य व्यक्तित्व से बनता है, जो केवल मनुष्य नहीं है—- वह ब्रह्मा है—- वह विष्णु है– — वह शिव है—–यह अपने आप में पूर्ण ब्रह्म का अंश बनने की क्रिया ही जीवन की विशिष्टतम क्रिया है। यही जीवन का श्रृंगार है।
हजारों लाखों व्यक्तियों में से कोई एक बिरला व्यक्ति ऐसा निकल पाता है, जो सद्गुरु देव की उंगली पकड़ कर आगे बढ़ने की क्रिया प्रारम्भ करता है। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही ऐसी चेतना प्राप्त होती है, जो उनकी वाणी को समझ सकता है। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही ऐसे भाव जाग्रत होते हैं, जब वह सद्गुरु के पास रह सकता है—- उनके साथ चलने की क्रिया प्रारम्भ करता है, वह पहिचान लेता है, उसकी आंखें पहिचान लेती हैं- ‘यह व्यक्तित्व साधारण नहीं है।
मैंने तुम्हें उसी पगडण्डी पर अग्रसर किया है, जहां अमृत्यु है, जहां चेतना है, जहां प्राण है, जहां पूर्णता है। मैं तुम्हें ऐसा ही आशीर्वाद दे रहा हूं, कि तुम्हें जीवन में पूर्णता और श्रेष्ठता प्राप्त हो।
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