शिष्य उसे कहते हैं जिसका अपना कोई अस्तित्व ही न हो। वह तो गुरु का ही प्रतिबिम्ब होता है। तथा गुरु की ही चेतना का एक अंश होता है जो कि समाज में रहकर गुरु की दिव्यता एवं तेजस्विता का प्रसार करता है।
हालांकि शिष्य का अपना शरीर हेाता है, अपना निजी जीवन होता है, परन्तु जब उसका मन विसर्जित हो जाता है तब वह केवल गुरु के भावों से ओत-प्रोत होता है। इसलिए वह वास्तव में तो पूर्णतः गुरुमय ही होता है, समुद्र में समाई एक बूंद के समान।
प्रेम ही वह डोर है जिसके द्वारा शिष्य गुरु में एकाकार रहता है। प्रेम तो ऐसा शब्द हैं जिसके आगे भक्ति, श्रद्धा, समर्पण सब तुच्छ से लगते हैं क्योंकि प्रेम है तभी इन सबका प्रादुर्भाव संभव है।
शिष्य वह है जो कि निजी स्वार्थों से ऊपर उठा होता है क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास होता है कि सद्गुरु स्वयं उसकी सभी इच्छाओं व आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे।
शिष्यता तो वास्तव में जीवन का सौंदर्य है। एक ठूंठ से जीवन में वसंत का आगमन सा है। शिष्यता जब जन्म लेती है तो व्यक्ति का जीवन ही रूपांतरित हो जाता है तथा वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।
आध्यात्म हो या भौतिक जगत, शिष्य के लिए पूर्णता की कुंजी है सद्गुरु। इसलिए वह अन्य प्रयासों में समय व्यर्थ करने की अपेक्षा सद्गुरु में ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित करता है।
किसी भी व्यक्ति के जीवन में शिष्यता एक सुनहरे प्रभात के समान है जिसके आगमन से मोह, अंहकार का अंधकार समाप्त होकर दिव्यता का प्रकाश फ़ैल जाता है और यह प्रभाव संभव है सद्गुरु की कृपा के द्वारा। इसीलिए शिष्य अपना सर्वस्व गुरु चरणों में समर्पित कर देता है।
शिष्य याद रखे की उसकी वास्तविक शक्ति तो उसके सद्गुरु ही हैं। सद्गुरु से वह एकाकार है तो बेशक समस्त संसार उसका शत्रु हो जाए, उसका अहित नहीं हो सकता। जिस प्रकार जगत्गुरु भगवान कृष्ण की शक्ति से केवल पांच पांडव सैकड़ों वीरों से सुशोभित कौरव सेना का भी संहार कर पाए उसी प्रकार एक साधारण शिष्य भी संसार में किसी भी विषम परिस्थिति में सद्गुरु कृपा से विजयी हो सकता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,