स्त्रियों में बांझपन गर्भाशय में विकार उत्पन्न होने के कारण ही होता है, क्योंकि स्त्री के जननांगों की विकृति ही उसके गर्भ में अवरोध उत्पन्न कर, उसे कमजोर बनाकर बांझ बना देती है। गर्भाशय दोष या अन्य गुप्त रोगों के कारण शारीरिक बल क्षीण हो जाना आदि ऐसे ही कारण हैं, जो किसी स्त्री को गर्भ धारण नहीं करने देते।
जीवन के सोलह संस्कारों की पूर्णता का भाव तभी प्राप्त होता है जब विवाह के बाद सही समय पर श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति हो सके। जिससे वह कुल की वृद्धि में सहायक हो सके। जिससे पुरूष पूर्ण पुरूषत्व से युक्त होता है और स्त्री मातृत्व शक्ति से युक्त होती है जबकि इसके विपरित निःसंतान दम्पती का गृहस्थ जीवन बिल्कुल ही रूखा-रूखा सा बन जाता है विशेष रूप से भारतीय समाज में स्त्रियों को प्रताडि़त किया जाता है साथ ही अनेक लाँछनों से युक्त नारकीय जीवन भोगना पड़ता है।
इसके लिए निराश होने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है हमारे ऋषियों द्वारा प्रदत्त ज्ञान से लाभ उठाने की। इस साधना हेतु साधक या साधिका माघ मास की गुप्त नवरात्रि के प्रारम्भ दिवस की रात्रि का प्रथम पहर बीत जाने के पश्चात् साधना क्रम प्रारम्भ करें तथा अर्द्धरात्रि तक मंत्र जप सम्पन्न करें। इस साधना हेतु ‘इच्छा पूर्ति गोविन्दं यंत्र’, दो गर्भ धारण कुण्डल तथा ‘आठ शक्ति विग्रह’ आवश्यक हैं।
अपने सामने सर्वप्रथम बाजोट पर पुष्प ही पुष्प बिछा दें और उन पुष्पों के बीचों-बीच ‘इच्छा पूर्ति गोविन्दं यंत्र’ स्थापित करें। इस यंत्र का पूजन केवल चन्दन तथा केसर से ही सम्पन्न करें। अपने सामने कृष्ण का एक सुन्दर चित्र स्थापित करें, चित्र पर भी तिलक करें तथा प्रसाद स्वरूप पंचामृत हो, जिसमें घी, दूध, दही, शक्कर तथा गंगाजल हो। इसके अतिरिक्त अन्य नैवेद्य भी अर्पित कर सकते हैं। इच्छा पूर्ति गोविन्दं यंत्र के दोनों ओर गर्भ धारण कुण्डल स्थापित कर उस पर केसर का टीका लगायें और दोनों हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण का ध्यान करें। इनके शक्ति स्वरूप आठ शक्ति विग्रह स्थापित करें। ये आठ शक्तियां लक्ष्मी, सरस्वती, रति, प्रीति, कीर्ति, कान्ति, तुष्टि एवं पुष्टि हैं। प्रत्येक शक्ति विग्रह को स्थापित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ लक्ष्म्यै नमः पूर्वदले, ऊँ सरस्वत्यै नमः आग्नेयदले,
ऊँ रत्यै नमः दक्षिणदले, ऊँ प्रीत्यै नमः नैऋत्यदले, ऊँ
कीर्त्ये नमः पश्चिमदले, ऊँ कान्त्यै नमः वायव्यदले, ऊँ
तुष्टयै नमः उत्तरदले, ऊँ पुष्टयै नमः ईशानदले।
शक्ति पूजन के पश्चात् इच्छा पूर्ति मंत्र का जाप प्रारम्भ किया जाता है। इसकी भी विशेष विधि है, इसमें अपने बायें हाथ में पुष्प अथवा पुष्प की पंखुड़ी लें और प्रत्येक बार इच्छा पूर्ति मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प की पंखुड़ी अर्पित करते रहे।
इस प्रकार 5 माला मंत्र उच्चारण इसी विधि से सम्पन्न करना है। यह साधना पूर्ण हो जाने के पश्चात् पहले से प्रज्ज्वलित दीप, अगरबत्ती तथा धूप से विष्णु आरती सम्पन्न कर प्रसाद ग्रहण करें। यदि कोई साधिका एक महीने तक प्रतिदिन 5 माला मंत्र जप सम्पन्न करें, तो उसको इच्छित संतान की प्राप्ति अवश्य ही होती है।
ईश्वर का कोई भी कार्य निरुद्देश्य नहीं होता है और अपने ही स्वरूप की रचना पुरूष और प्रकृति के रूप में अर्थात् नर और नारी के रूप में रचना करता है। विवाहित जीवन में काम क्रीड़ा और गर्भाधान दो पृथक विषय हैं। पौरूषवान व्यक्ति का ही जीवन निर्भिक निडर चेतना युक्त बनता है पौरूषता की आवश्यकता जीवन भर रहती है। काम वृद्धि हेतु अनंग रति दीक्षा से देह में ओज और तेज विद्यमान् रहता है।
जीवन की अविरल बहती नदी में भौतिक पक्ष के मध्य मनुष्य के मन का सहज प्रवाह सौन्दर्य की ओर रहता है हर स्त्री की चाहत रहती है कि वह पूर्ण रूप से देह में आकर्षण, सौन्दर्य कामकला में निपुण हो! जिससे वह अपने पति को सम्मोहित रख सके। सुगढ़ षोडशी यौवनवान हेतु अप्सरा सौन्दर्य दीक्षा से देह में निखार लाया जा सकता है।
शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति तो माता के शरीर के माध्यम से पूर्ण हो जाती है, परन्तु गर्भस्थ बालक के मानसिक और आत्मिक विकास और उसकी गर्भ में चेतना, ज्ञान, बल की प्राप्ति संसार में आने से पूर्व ही गर्भ रक्षा दीक्षा, शिशु रक्षा दीक्षा प्रदान करने से बालक तेज पुंज और यशस्वी बनाता है।
दीक्षा प्राप्त करने पर पुत्र प्राप्ति गोविदं साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
यह है जिन्दगी का सच
जो चाहा कभी पाया नही।
जो पाया कभी सोचा नहीं।
जो सोचा कभी मिला नहीं।
जो मिला रास आया नहीं।
जो खोया वो याद आता है ।
पर जो पाया संभाला जाता नहीं।
क्या अजीब सी पहेली है जिन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं।
जीवन में कभी समझौता करना पड़े।
तो कोई बड़ी बात नहीं हैं।
क्योंकि झुकता वही है जिसमें जान होती है
अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है।
जिन्दगी जीने के दो तरीके होते है
पहला जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो,
दूसरा जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो।
जिन्दगी जीना आसान नहीं होता बिना संघर्ष
कोई महान् नहीं होता।
जब तक न पड़े हथोड़ै की चोट पत्थर भी
भगवान नहीं होता।
जिन्दगी बहुत कुछ सीखाती है। कभी हंसाती
है तो कभी रूलाती है।
पर जो हर हाल में खुश रहते है जिन्दगी
उनके आगे सर झुकाती है।
चेहरे की हंसी से हर गम चुराओं बहुत कुछ
बोलो पर कुछ न छुपाओ।
खुद न रूठो कभी पर सबको मनाओं।
हर राज है जिन्दगी का बस जीते चले जाओ
बस यही है जिन्दगी का सच
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