प्रेम तो एक उत्फ़ुल्ल सुवास है, एक सुगन्ध है, प्रेम तो एक छल-छल बहता हुआ झरना है, जिसके नीचे स्नान करने से पूरे तन-मन में मस्ती की हिलोर सी आकर के एक फ़ुहार सी पड़कर के भिगो देती है।
प्रेम एक ऐसी पुरवाई है, जिसके स्पर्श से ही एक अजीब खुमारी आ जाती है, शरीर के तार-तार झंकृत हो जाते हैं कि पूरा शरीर नृत्य करने लग जाता है।
केवल किसी मंत्र की साधना और आंखें बन्द करके पालथी मार कर बैठना ही जीवन की श्रेज्ठता नही है। जीवन की श्रेज्ठता तो जीवन को परितृप्त कर देने में है और यह आनन्द, यह मस्ती, यह पूर्णता, यह श्रेज्ठता और जीवन का यह सौन्दर्य तो प्रेम में ही है।
जब शिष्य अपने गुरु या इष्ट से प्रेम करना सीख जाता है तो उसके जीवन के अणु-अणु में, जीवन के कण-कण में, रोम-रोम में, जीवन के प्रत्येक कार्य में आनन्द का एहसास आ जाता है, एक सुगन्ध आ जाती है, एक तरंग सी आ जाती है।
अगर पेड़ की जड़ में रस नहीं होता तो उस पेड़ में हरी-भरी कोंपले आ ही नहीं सकती, उस पेड़ पर सुन्दर पुष्प नहीं खिल सकते, क्योंकि उसकी जड़े सूखी हुई हैं। मनुष्य में भी यदि प्रेम का रस सूख जाये तो जीवन में श्रेष्ठता और दिव्यता प्राप्त नहीं हो सकती।
तालाब का जल अगर स्थिर है, तो उसमें सड़ांध आ जाएगी, क्योंकि उसमें गति नहीं है। उसमें चंचलता नही है, इसलिए मैं तुम्हें तालाब नहीं बनाना चाहता, मैं तो तुम्हे छलकती हुई प्रेम की नदी बना देना चाहता हूं।
इसलिए मैं कहता हूं कि तुम नदी बन जाओ, क्योंकि प्रेम कल्पना, प्रेम की भावना नदी जानती है। नदी इस बात को नहीं जानती कि यह पहाड़ है, पत्थर है, वह तो बस आगे की ओर गतिशील रहती है। उसका लक्ष्य, उसका चिंतन, उसकी धारणा एक ही है कि मुझे उस समुद्र में जाकर लीन हो जाना है।
मैं तुम्हें समुद्र में छलांग लगाने की क्रिया सिखा रहा हूं, मैं तुम्हें उस महासमुद्र में छलांग लगाकर लहर बनने की क्रिया बता रहा हूं, जिससे तुम गुरु से आत्म साक्षात्कार कर सको, इष्ट में लीन हो सको—— और यही प्रेम की पूर्णता है।
और जिस समय तुम पूर्ण लीन होना चाहो, अपने गुरु में एकाकार होना चाहो, उस समय मेरे साथ लहर बनकर बहो, प्रेम की परिभाषा सीखो—– और तब तुम्हारे जीवन में एक मस्ती की हिलोर आ सकेगी, तुम पहली बार एहसास कर सकोगे कि जीवन का सर्वोच्च चेतना और आन्नद प्रेम ही है।
परन्तु गुरु से प्रेम का यह रास्ता इतना आसान नही हैं, यह तो तलवार की एक धार है जिस पर चलने से पैर लहुलुहान हो जाते हैं। यह ऐसी पगडण्डी नहीं है जिसके नीचे पुष्प बिछे हों, प्रेम करना तो बहुत कठिन है, तकलीफ़दायक है। पूर्ण हृदय से प्रेम करने की क्रिया बिरले को ही आ पाती है।
मैंने अपने इष्ट से प्रेम किया है, अपने गुरु से प्रेम किया है, ईश्वर से प्रेम किया है, मैंने उस प्रेम के आनन्द को अनुभव किया है और मैं उस आन्नद को तुम्हारे अन्दर भर देना चाहता हूं। मैं तुम्हे ठूंठ नहीं, एक मुस्कुराता हुआ शिष्य बनाना चाहता हूं जो प्रेम से सराबोर हो।
जो भी इष्ट के समीप पहुंचता है, इष्ट से साक्षात्कार किया है, उसने प्रेम की ए, बी, सी, डी सीखी ही है, प्रेम की परिभाषा को पढ़ा ही है।
मीरा को कोई मंत्र जाप विधि ज्ञात नहीं थी, पर आज उसका नाम सभी को याद है, क्योंकि उसने अपने इष्ट के लिए अपने को मिटाया, समाज की परवाह नहीं की।
यदि मैं चारों वेदों के अर्थ स्पष्ट करूं, तो चारों वेद का सारभूत तथ्य एक ही है कि – जीवन का प्रारम्भ प्रेम है और जीवन का अंत भी प्रेम ही है।
मैं प्रतिपल तुम्हारे साथ बहता हुआ, समुद्र के उस किनारे तक पहुंचाने के लिए तैयार खड़ा हूं। मुझे विश्वास है कि तुम अवश्य ही पार हो सकोगे और एक बार पुनः आर्शीवाद प्रदान करता हूं, कि तुम जीवन में प्रेम और आनन्द को प्राप्त कर सको।
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