षोडशी त्रिपुर सुन्दरी तो साक्षात् भगवती लक्ष्मी का मूर्तिमंत स्वरूप है, यह महाविद्या है और इसको सिद्ध करने के लिए श्रेष्ठ योगी लालायित रहते है, भारतवर्ष में आधे से अधिक साधक षोडशी श्रीविद्या साधना के उपासक है।
हे अम्बे! अमृत से परिपूर्ण कल्याण की वर्षा करने वाली एवं लक्ष्मी को स्वयं वरण करने वाली मंगलमयी दीपमाला की भांति आपकी सेवाओं में आ कर चरण कमलों में भक्ति भाव रखने वाले मनुष्यों को क्या नहीं दिया, अर्थात् उनके समस्त मनोरथों को पूर्ण कर दिया।
जननि! तेरी बस यही स्पृहा है, कि परमोकृष्ट सुधा से परिलुप्त तथा उदीयमान अरूण-वर्ण सूर्य की क्षमता करने वाले आपके अरूण श्रीविग्रह के सिन्नकट पहुँचकर आपकी वन्दनाओं के समय मेरे नेत्र अश्रुजल से परिपूर्ण हो जाय।
मां! प्रभुत्वभाव से कलुषित ब्रह्मा आदि कितने देवता हो चुके हैं, जो प्रत्येक युग में प्रलय से अभिभूत हो गये हैं, किन्तु एक वही व्यक्ति स्थिर सिद्धि युक्त विद्यमान रहता है, जो एक बार आपके श्री चरणों में प्रणाम कर लेता हैं।
त्रिपुरसुन्दरि! आप में भक्ति भाव रखने वाले भक्तजन एक बार भी आपके करूणा से अंकुरित सुशोभन कटाक्ष को पाकर कामदेव-सद्दृश सौभाग्यशाली हो जाते हैं, और त्रिभुवन में युवतियों को सम्मोहित कर लेते हैं।
त्रिकोण में निवास करने वाली एवं तीन नेत्रों से सुशोभित माता त्रिपुर सुन्दरी। वेद ‘ह्रीं’ कार को ही आपका नाम बतलाते हैं, वह नाम जिनके संस्मरण में आ गया, वे भक्तजन यमदूतों के भय को त्याग कर लोकपालों के साथ नन्दन वन में क्रीड़ा करते हैं।
माता! निरन्तर अमृत से परिलिप्त होने के कारण शीतल बने हुए आपके शरीर का यह अर्धभाग जिनके साथ संलग्न था, उन त्रिपुरहन्ता शंकर जी ने गले में भरा हुआ हलाहल विष का वेग उनके लिए अनिष्टकारक कैसे होता।
देवि आपके चरण कमलों मे किया हुआ प्रणाम सर्वज्ञता और सभी में वाक्चातुर्य उत्पन्न करता ही है। साथ ही उद्भासित मुकुट, श्वेत छत्र दो चामर और विशाल पृथ्वी का साम्राज्य भी प्रदान करता है।
मां त्रिपुर सुन्दरि! मैं आपकी भक्ति से परिपूर्ण हूं और आपकी ओर से ही दृष्टि लगाये हूं, अतः आप मुझ अनाथ की ओर मनोरथों को पूर्ण करने में कल्पवृक्ष सद्दृश एवं करूणा सागर स्वरूप अपने कटाक्षों से देख तो लें।
देवि! खेद है, कि अन्यान्य जन आपके अतिरिक्त अन्य निम्न देवताओं में भी मन लगाकर उनकी भक्ति करते हैं, किन्तु मैं मन और वचन से आपका ही स्मरण करता हूं, आपको ही प्रणाम करता हूं, क्योंकि जगत् में आप शरणदात्री है।
त्रिपुर सुन्दरि! यद्यपि आपके नेत्रों के लिए दान के बहुत से लक्ष्य वर्तमान है, तथापि किसी प्रकार आप मेरी ओर दृष्टि डाल दें, क्योंकि निश्चय ही मेरे समान करूणा का पात्र ना कोई पैदा हुआ है और न हो रहा है, और न पैदा होगा। त्रिपुर में निवास करने वाली मां! ‘ह्रीं’ इस प्रकार (आपके बीजमंत्र का) प्रतिदिन जप करने वाले मनुष्यों के लिए इस जगत् में क्या दुर्लभ है, माला, किरीट और उन्मत्त गजराज से युक्त उन माननीयों की तो स्वयं मधुमती लक्ष्मी ही सेवा करती है।
कमलनयनि! आपकी वन्दनाएं सम्पत्ति प्रदान करने वाली, समस्त इन्द्रियों को आनन्दित करने वाली, साम्राज्य प्रदान करने में कुशल है और पाप समूह को नष्ट करने में उद्यत रहने वाली हे माता! वे निरन्तर मुझे ही प्राप्त हो। कल्प के उपसंहार के समय ताण्डव नृत्य करने वाले खण्ड परशु देवाधि देव परमेश्वर शंकर के लिए पाश, अंकुश, ईख का धनुष और पुष्पबाण को धारण करने वाली आपकी एकमात्र मूर्ति साक्षी रूप से सुशोभित होती है।
माता! आपका यह अर्धांग, जो परम तेजोमय अत्यधिक कुंकुमपर्क से युक्त होने के कारण, चमकदार किरीट से सुशोभित, चद्रकला से विभूषित, अमृत से परमार्द्र व त्रिकोण के मध्य में प्रकट है, तथा शिवजी से संलग्न है। कमल पर निवास करने वाली सुन्दरि! ‘ह्रीं’ कार ही आपका धाम है, वही आपका रूप है, वही आपका नाम है, और वहीं आपके तेज से उत्पन्न हुए आकाशदि से क्रमशः परिणतः जगत् का आदिकारण है, जो ब्रह्मा विष्णु आदि की रचित-पलित वस्तु बनकर परम सुख देती हैं।
त्रिपुर सुन्दरी साधना दस महाविद्याओं के क्रम में अनिवार्य साधना है। इस साधना के इतने अधिक आयाम हैं, कि जिसे लिखा जाए, तो एक पूर्ण ग्रंथ तैयार हो सकता है। इस साधना के लाभ जो साधकों ने अनुभव किये हैं।
1- इस साधना के माध्यम से साधक को जीवन में चारों पुरूषार्थ (धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष) की प्राप्ति होती है। साधक को जीवन में एक साथ भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है, वह चाहे किसी भी जाति या धर्म का हो, वह चाहे किसी भी मत या मतान्तर का मानने वाला हो, संन्यासी हो या गृहस्थ कोई भी हो।
2- आध्यात्मिक जीवन में पूर्णता के द्वार इस साधना से खुल जाते हैं।
3- इसको साफल्य साधना भी कहा जाता है, क्योंकि यह साधना अन्य साधनाओं में भी पूर्णता देने में समर्थ है। कोई भी साधना हो, वह चाहे अप्सरा साधना हो, दैवी साधना हो, शैव साधना हो, वैष्णव साधना हो या किसी भी प्रकार की साधना हो, यदि उसमें सफलता नहीं मिल रही हो, तो उसको भी पूर्णता के साथ सिद्ध कराने में यह महाविद्या समर्थ है-यदि इस साधना को पहले सम्पन्न कर लिया जाए। जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेने के लिए यह महाविद्या पूर्ण सहायक साधना है।
4- जीवन में चाहे किसी भी प्रकार का अभाव हो, कष्ट हो, पीड़ा हो, बाधा हो, दुःख हो, दैन्य हो, न्यूनता हो, उन सबको एक ही झटके में समाप्त करने की अगर कोई महाविद्या है, तो वह षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना है। इसके अतिरिक्त भौतिक सुखों को भी पूर्णता के साथ देने में यह महाविद्या सर्व समर्थ है।
5- इस साधना की एक विशेषता यह भी है, कि इससे कायाकल्प भी संभव हो जाता है, चाहे वह पुरूष हो या स्त्री हो। यदि स्त्री है और सौन्दर्य में किसी भी प्रकार की न्यूनता है या उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कमी हो, तो इस साधना को सम्पन्न करने पर वह अपने आप में पूर्ण सौन्दर्यमयी और सम्मोहक बन जाती है। इसके साथ ही साथ यदि किसी पुरूष के शरीर में किसी प्रकार की न्यूनता या पौरूषत्व की कमी या हिम्मत, साहस, बल, ओज की कमी हो, तो उसको भी पूर्णता देने में यह साधना समर्थ है। इस साधना से साधक का चेहरा अपने आप में तेजस्वी, अद्वितीय दमक से युक्त ललाट, सिंह के समान दर्पवत् वक्षस्थल बन जाता है।
6- जीवन में निरन्तर धन प्राप्त होता ही रहता है और आय के सैकड़ों स्त्रोत खुल जाते हैं, चाहे वह व्यापार करता हो, चाहे वह नौकरी करता हो। इस प्रकार की सुविधाएं इस प्रकार के रास्ते अपने आप बन जाते हैं, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
7- इस साधना द्वारा मजदूरों को धनयुक्त होते देखा गया है, साधनहीन लोगों को साधन सम्पन्न होते देखा है, दुःखी, पीडि़त, अपाहिज, बीमार, असहाय लोगों को पूर्ण रूप से स्वस्थ और तरोताजा होते देखा गया है।
इस हेतु त्रिपुर सुन्दरी मधुरूपेण जीवट की आवश्यकता होती है। और एक जीवट से एक ही कामना पूर्ति की क्रिया हो पाती है प्रत्येक कामना पूर्ति के लिए नूतन त्रिपुर सुन्दरी मधुरूपेण जीवट प्रयोग में लाना चाहिए।
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