जब साधक साधना के परम तत्व की ओर अग्रसर होता है तो वह कहता है ‘अहं ब्रह्मास्मि’ अर्थात जो दिखाई दे रहा है और जो दिखाई नहीं दे रहा है, जो सगुण है और निर्गुण है, जो चेतन और जो अचेतन है, वह मैं स्वयं हूं, यहां ब्रह्म अर्थात ब्रह्मा के रूप को ही सर्वोत्कृष्ट माना है। ब्रह्मा अर्थात जो निर्माण करता है, जो संरचना करता है, जो कुछ नहीं से सब कुछ प्रगट करता है, वह ब्रह्मा ही है, परम तत्व है, ब्रह्मा कभी शान्त नहीं रहते, क्योंकि निर्माण कभी नहीं रूकता। इसी प्रकार जो साधक निरन्तर ब्रह्म साधना में गतिमान रहता है, वह एक लक्ष्य पर नहीं रूक सकता, उसे हर बार नये लक्ष्यों की पूर्ति के लिए शक्ति प्राप्त होती रहती है, यही ब्रह्म साधना की सारभूत स्थिति है।
संरचना और निर्माण ब्रह्मा के अधीन हैं, क्योंकि शक्ति, संसार एवं सभी व्यक्तियों का मूल बिन्दु तो वही है इसीलिए ब्रह्मा को विश्वकर्मा भी कहा गया है। जब तक साधक के भीतर शक्ति-उद्भव नहीं होगा तब तक वह साधक निर्जीव है। इस शक्ति को प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति अपनी बुद्धि से अपना प्रयास करता है लेकिन जब तक इस शक्ति के मूल विश्वकर्मा को नहीं पहचान लेता अथवा उसकी साधना में पूर्णता नहीं प्राप्त कर लेता, तब तक उसकी अन्य साधनाएं अधूरी हैं, क्योंकि विश्वकर्मा साधना से उसे शक्ति निरन्तर प्राप्त होती रहती है, उसका शक्ति स्त्रोत कभी समाप्त नहीं होता है और यही शक्ति स्त्रोत उसे निरन्तर गतिमान बनाये रखता है।
जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के लिए अपने माता-पिता का ऋणी है, उसी प्रकार वह उतना ही ऋणी ब्रह्मा का भी है, जो कि जीवन का मूल कारक हैं, उसके गुणों के, शक्ति एवं भावना की संरचना के कर्ता हैं, जो साधक ब्रह्मा की साधना पूर्ण रूप से सिद्ध कर लेता है, उसे किसी भी शक्ति साधना को पूर्ण करने में कठिनाई नहीं होती है। अन्य साधनाएं तो इस शक्ति स्त्रोत के विकास की साधनाएं है। जब स्त्रोत ही नहीं बनेगा, तो शक्ति का विकास कैसे सम्भव है, इसलिए प्रत्येक साधक के लिए विश्वकर्मा साधना आवश्यक है।
इस साधना में साधक को उपास्य भाव ही रखना पड़ता है, अर्थात इसमें सेवा भाव से ही साधना सम्पन्न की जा सकती है। जिस प्रकार के भाव का संवेग तीव्र होगा, उसी प्रकार इच्छा शक्ति भी प्रबल बनती जायेगी और साधना में सफलता तीव्र गति से प्रारम्भ होगी।
यह साधना विवेक बुद्धि के साथ सूक्ष्म से महान बनने की ओर अग्रसर करती है, इसी हेतु विश्वकर्मा साधना सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से ऋण उतारने की साधना भी है, जिसके कारण जो मानसिक दबाव तथा प्रथम ऋण देवताओं का है, वह दूर हो जाता है।
इस वर्ष 1 फरवरी को विश्वकर्मा जयंती और गुरु गोरख नाथ जयंती के संयोग के साथ प्रदोष पर्व का भी पूर्ण प्रभाव बना है। जिससे इस साधना का महत्व अत्यन्त उत्तम हो गया है। ऐसे सुयोग योग में साधना में सफलता निश्चित रूप से प्राप्त होती है।
यह साधना चित्त में शान्ति व बुद्धि देने वाली साधना है, इस साधना को सिद्ध करने वाला साधक अपने धैर्य को कभी नहीं खोता है, बड़ी से बड़ी कठिनाई में भी उसे आगे बढ़ने तथा कार्य करने की प्रेरणा मिलती रहती है और किसी न किसी रूप में सहयोग भी प्राप्त होता रहता है। इस साधना में गुरु-ध्यान का महत्व विशेष रूप से है, साधना दिवस के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में एकदम शान्त वातावरण बनायें। साधक श्वेत वस्त्र धारण करें तथा दीपक जलाये। यह साधना केवल एक दिन की ही साधना है और शास्त्रोक्त कथन है, ब्रह्मा की साधना-विश्वकर्मा साधना, ब्रह्म मुहूर्त में, अर्थात सूर्योदय से पहले सम्पन्न करनी चाहिए, इस कारण आवश्यक है, कि साधक प्रातः जल्दी उठ कर यह साधना प्रारम्भ कर दें।
इस साधना में केवल ‘ब्रह्मदण्ड’ तथा ‘ब्रह्माण्ड माला’ की आवश्यकता होती है। अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछा कर उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बना कर उसके बीच में ब्रह्मदण्ड स्थापित करें। उसके चारों ओर आठ सुपारी मौली में लपेट कर स्थापित करें। ये ब्रह्मा की आठ शक्तियों के प्रतीक हैं। सर्व प्रथम कुंकुम, गुलाल-अबीर, चावल, पुष्प द्वारा ब्रह्मा की पूजा विश्वकर्मा मंत्र ‘ऊँ ब्रह्मायै नमः’ से करें। इसमें पुष्प की पंखुडि़यां 108 बार अर्पित करने का विधान है।
विश्वकर्मा साधना में गुरु मंत्र का जप अत्यन्त आवश्यक है, अतः साधक उपरोक्त न्यास सम्पन्न करने के पश्चात गुरु मंत्र की माला से जिससे आप नित्य गुरु मंत्र का जाप करते है उससे गुरु मंत्र की 8 माला सम्पन्न करें। इसके साथ ही यह संकल्प करे कि मैं ब्रह्मा का अंश, ब्रह्म साधना में सब कुछ ब्रह्मा को ही अर्पित कर रहा हूं। जिससे कि मैं अहं ब्रह्मास्मि स्वरूप बन सकूं।
पूर्व में गायत्री मंत्र की एक माला जप करना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि गायत्री को ब्रह्मा की पुत्री माना गया है, जिसके द्वारा सारा ज्ञान इस संसार में है।
इसके पश्चात् ब्रह्मा मंत्र की 11 माला का जप करें।
इस बीज मंत्र की 11 माला जप करने के पश्चात् ब्रह्मदण्ड को केसर तथा चन्दन का तिलक लगायें, इस ब्रह्मदण्ड को ऐसे स्थान पर स्थापित करें, कि इसे बार-बार हटाना नहीं पड़े। जो विशेष यंत्र आदि एक जगह स्थापित रहते हैं, उनकी शक्ति स्थिर रहती है, अतः अपने घर में जहां भी उचित स्थान समझे वहां इसे स्थापित कर दें।
साधना की पूर्णता गुरु आरती से सम्पन्न करनी चाहिये। जिससे ब्रह्म-सिद्धि, गुरु-सिद्धि प्राप्त होती है और ब्रह्मा गुरु तत्व प्रधान देव हैं।
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