इसमें शिव के चार अभिषेक सम्पन्न किये जाते हैं। प्रत्येक बार पूर्ण विधि-विधान सहित मंत्रात्मक पूजन, आरती, स्तोत्र का पाठ सम्पन्न किया जाता है। यह चार पूजन सृष्टि के चार काल सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग को स्पष्ट करते हैं। एक आख्यान के अनुसार ये चार पूजन मनुष्य जीवन के चार भाग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को स्पष्ट करते हैं।
महाशिवरात्रि के सम्बन्ध में अनेकों आख्यानों में यह आख्यान महत्वपूर्ण है कि भगवान शिव का प्रगटीकरण महाशिवरात्रि की रात्रि में हुआ। रात्रि प्रतीक है अन्याय, अज्ञान, अंधकार, पाप, हिंसा, धोखा, असत्य और दुर्भाग्य का। भगवान शिव ऐसी ही रात्रि में प्रकट होकर मनुष्य जीवन के इन सारे तमोगुणों को समाप्त करते हैं और उसे नया प्रकाश प्रदान करते हैं। शिवरात्रि के बाद महाअमावस्या आती है, महाअमावस्या सम्पूर्ण जीवन के अंधकार का स्वरूप है और यह सम्पूर्ण अंधकार ज्ञानमय शिव के माध्यम से ही नष्ट हो सकता है।
इसी प्रकार एक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का मां गौरी से विवाह सम्पन्न हुआ था यह विवाह सृष्टि का प्रथम अन्तर्जातीय विवाह कहा जा सकता है क्योंकि भगवान शिव तो अमर हैं, अजन्मे हैं तथा उनके कुल इत्यादि के सम्बन्ध में कोई जानकारी ही नहीं है। मां पार्वती क्षत्रिय कुल में राजा दक्ष के यहां उत्पन्न हुई थी। इस विवाह में देव-राक्षस, भूत-प्रेत, गन्धर्व अप्सराएं सभी सम्मिलित थी, उसी शुभ अवसर के फल स्वरूप पूरे संसार में यह महोत्सव आनन्द पर्व के रूप में सम्पन्न किया जाता है।
‘शिवरात्रि’ अर्थात शिव की रात्रि, जो जगत-गुरु हैं, जो समस्त कष्टों को दूर करने वाले हैं, जिनके चिन्तन मात्र से ही समस्त सुखों की प्राप्ति हो जाती है और जो मनुष्य के समस्त पापों को दूर कर उसे मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, उनकी उपासना व आराधना प्रत्येक व्यक्ति या साधक को इस शिवरात्रि के दिन अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए। ‘शिवरात्रि’ जो आनन्द की रात्रि है, जो मनुष्य को अन्धकारमय व घोर कालिमा युक्त जीवन को प्रकाशवान कर देने की रात्रि है, जो आत्मा को परमात्मा में लीन कर देने की रात्रि है, जो पूर्णता की रात्रि है, जो श्रेष्ठता की रात्रि है, जो शिव-शक्ति के सामांजस्य की रात्रि है, जो शिवत्व को प्राप्त कर लेने की रात्रि है—— और ऐसे शिवत्व को प्राप्त कर लेना ही तो जीवन का परम सौभाग्य है, परम आनन्द है, जीवन की सर्वोच्चता है और यह सर्वोच्चता, यह आनन्द, यह सौभाग्य जीवन में प्राप्त हो सकता है शिव शक्ति को धारण करने से।
शिव का एक रूप हरिहर भी है जिसमें ‘हरि’ अर्थात विष्णु और ‘हर’ अर्थात शिव का समन्वित स्वरूप है। यह पालन और संहार का सूचक है, मानव जाति के नित्य उज्ज्वल नवीन रूप का द्योतक है। भगवान शंकर त्रिगुणात्मक हैं, ब्रह्मा स्वरूप सृजन कर्त्ता, विष्णु स्वरूप पालन कर्ता एवं रूद्र स्वरूप संहार कर्ता-ये तीनों ही रूपों का समन्वित रूप महादेव हैं इसीलिये तो इन्हें ‘हरिहर पितामह’ कहा गया है। अथर्ववेद में भगवान ‘शिव’ को ‘हरिहर हिरण्यगर्भ’ भी कहा गया है, अतः भगवान शिव ब्रह्मा, विष्णु एवं सूर्य का समन्वित रूप जो शिव हैं, केवल मात्र इनकी पूजा ही समस्त देवताओं की पूजा-अर्चना है, जो कुछ दृश्य है वह शिव है, जो कुछ घटित है, वह शिव है—- यह संसार शिवमय है, शिवस्वरूप है, शिव-युक्त है।
भगवान शंकर स्वयं निर्विकार रहकर विकार युक्त विश्व की व्यवस्था करने में संलग्न हैं, कैलाश के उत्तम शिखर पर हिमाच्छादित चोटियों के मध्य ‘शंकर धाम’ कैलाश में न तो कोई चिन्ता है और न कोई सन्ताप है। स्वयं निर्मुक्त होते हुए भव बन्धन को तोड़ने में सक्षम, शिव के अतिरिक्त और कोई देवता ऐसा नहीं है जो जन्म मरण के कल्प्षों को धोकर अभय दे सके– – स्वयं थिर और निश्चल होते हुए भी चराचर जगत के कण-कण में व्याप्त हैं, इसीलिये तो शंकर चराचरात्मक हैं, शंकर हैं, अभयंकर हैं।
इस अवसर पर तो प्रकृति भी सूर्य की किरणों के माध्यम से भगवान शिव को अर्घ्य अर्पित कर, वायु द्वारा मेघ रूपी पुष्पाक्षत अर्पित कर और स्वयं को भी समर्पित कर रही प्रतीत होती है। अब उसके कण-कण से, उसकी दसों दिशाओं से मात्र एक ध्वनि ‘हर हर महादेव’ ही गुंजरित हो, तो फिर कोई अभागा ही होगा, जो इस पर्व पर भगवान शिव की साधना से वंचित रह जाये, क्योंकि यह अवसर है ही भगवान शिव की साधना का।
महाशिवरात्रि ही वह उपयुक्त अवसर है, जब साधक शिव की भांति मस्त प्रसन्न रह सकता है। ऐसे अद्वितीय अवसर पर समस्त साधकों की इच्छा होती है कि वे अपने गुरु के सानिध्य में ऐसी दिव्यता प्राप्त करें। फिर भी कभी-कभी सामाजिक कर्त्तव्यों के रूप में ऐसी बाधाएं आड़े आ जाती हैं कि साधक प्रयत्न करते हुए भी अपने गुरु के श्री चरणों में नहीं पहुंच पाता है। ऐसे ही कुछ कठोर क्षणों में स्वयं की भावनाओं को समेटते हुए गुरु के पास पहुंचने के निर्णय का त्याग करना पड़ता है।
परन्तु गुरुदेव तो स्वयं शिव सदृश्य हैं, इसलिए उन्हें भी अपने समस्त मानस पुत्रें का, शिष्यों का ध्यान रहता है कि ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर कहीं कोई साधक छूट न जाए, ऐसा न हो कि उनका कोई शिष्य इस महत्वपूर्ण अवसर को यूं ही गंवा दे। इसीलिए तो गुरुदेव ने एक अद्वितीय साधना दी है जो उन साधकों के लिए है जो इस अवसर पर गुरुदेव के सानिध्य से वंचित रहते हैं।
इस साधना के अन्तर्गत आप जिस इच्छा से भगवान शिव की साधना करेंगे, आपकी वह इच्छा अवश्य पूर्ण होगी, चाहे वह समस्त रोगों से मुक्ति हेतु वैद्यनाथ स्वरूप हो, कुबेराधिपति का स्वरूप हो या फिर शिवत्व प्राप्ति हेतु भगवान शिव की साधना ही हो। इस साधना का अर्थ है कि भगवान शिव के किसी एक स्वरूप को नहीं अपितु इन समस्त स्वरूपों की प्राप्ति संभव है। इस साल महाशिव रात्रि 17 फरवरी को है। इस साधना में पारद पाशुपतये शिवलिंग, मृत संजीवनी युक्त पांच रूद्राक्ष दाने, विकटा, नीलकण्ठाय माला मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो।
स्नान आदि नित्य कर्म के पश्चात शांत और पवित्र पूजा स्थल में लाल आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जायें। दैनिक साधना विधि से गणपति और गुरु पूजन सम्पन्न करें।
पाशुपतये शिवलिंग पूजन
भगवान शंकर का आह्वान करें।
ऊँ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमः।
भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमो
नमः।। ऊँ शिवाय नमः। आवाहनं समर्पयामि।
ध्यान- दोनो हाथ जोड़ लें
नमस्ते निष्कल रूपाय नमो निष्कल तेजसे।
नमः सकलनाथाय नमस्ते सकलात्मने।।
आत्मने ब्रह्मणे तुभ्यमनन्त गुण शक्तये।
सकलाकल रूपाय शम्भवे गुरवे नमः।।
ऊँ शिवाय नमः ध्यानं समर्पयामि।
पाद्यं समर्पयामि नमः- दो आचमनी जल चढ़ायें।
अर्घ्य समर्पयामि, आचमनीयं जलं समर्पयामि नमः।
दाहिने हाथ में जल लेकर पुष्प और अक्षत मिलाकर पारद शिवलिंग पर चढ़ायें।
जल स्नान
पाशुपतये शिवलिंग को जल स्नान करायें।
ऊँ गंगा सरस्वती देवा पयोष्णि नर्मदा जलैः।
स्नापितोऽसि मयास देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ऊँ शिवाय नमः स्नानं समर्पयामि।
दुग्धा स्नान -पाशुपतये शिवलिंग को दुग्ध स्नान करायें।
गोक्षीरधाम देवेश गोक्षीर धवलोपम।
स्नापनं देव देवेश गृहाण परमेश्वर।।
ऊँ शिवाय नमः दुग्ध स्नानं समर्पयामि।
दधि स्नान- पाशुपतये शिवलिंग को दधि स्नान करायें।
दध्ना चैव महादेव स्नापनं कार्यते मवा।
गृहाण च मया दत्तं तव प्रीत्यर्थमेव च।।
ऊँ शिवाय नमः घृत स्नानं समर्पयामि नमः।।
घृत स्नान- पाशुपतये शिवलिंग को घृत स्नान करायें।
सर्पिषा च मयास देव स्नापनं क्रियतेऽधुना।
गृहाण श्रद्धया दत्तं तव प्रीत्यर्थमेव च।।
ऊँ शिवाय नमः घृत स्नानं समर्पयामि नमः।
मधु स्नान- पाशुपतये शिवलिंग को शहद स्नान करायें।
इदं मधु मया दत्तं तव तुष्टय मेव च।
गृहाण त्वं हि देवेश मम शान्तिप्रदो भव।।
ऊँ शिवाय नमः मधु स्नानं समर्पयामि।
शर्करा स्नान- पाशुपतये शिवलिंग को शर्करा स्नान करायें।
इक्षुसार समुद्भूता शर्करा पुष्टि कारिका।
मलापहारका दिव्या स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्।
ऊँ शिवाय नमः शर्करा स्नानं समर्पयामि।
अब मुख्य अभिषेक प्रारम्भ होता है। इसमें दुग्ध मिश्रित जल को पाशुपतये शिवलिंग पर चढ़ायें। मूलरूप से अभिषेक में रूद्राष्टाध्यायी का पाठ सम्पन्न किया जाता है। लेकिन यदि आप रूद्राष्टाध्यायी का पाठ स्वयं सम्पन्न न कर सकें तो रूद्राष्टाध्यायी की कैसेट भी लगा सकते है और यदि स्वयं पूजन करना चाहते है तो ढ़ाई घड़ी अर्थात (एक घड़ी 24 मिनट के बराबर होती है) लगभग 1 घंटे तक रूद्राभिषेक सम्पन्न करते समय निम्न मंत्र का नीलकण्ठाय माला से जप करें।
उपरोक्त मंत्र का जप मध्यम स्वर से सम्पन्न करते रहें। इसकी पूर्णता के पश्चात पाशुपतये शिवलिंग को स्वच्छ जल से साफ कर एक दूसरी थाली में स्वास्तिक बनाकर उस पाशुपतये शिवलिंग को स्थापित करें।
जब अभिषेक पूर्ण हो जाता है तो भगवान शिव का षोडश श्रृंगार सम्पन्न किया जाता है। इस षोडश श्रृंगार में इत्र, कुंकुंम, गुलाल, वस्त्र, धूप, दीप, नैवेद्य का समर्पण किया जाता है।
यज्ञोपवीत
यज्ञोपवीतं समर्पयामि नमः।
वस्त्र वस्त्र समर्पित करते हुये उच्चारित करे।
एतद् वासो मया दत्तं सोत्तरीयं सुशोभनं।
गृहाण त्वं महादेव ममायुष्य प्रदोभव।।
ऊँ शिवाय नमः वस्त्रेय वस्त्रं समर्पयामि नमः।
इसके बाद चन्दन, अक्षत तथा पुष्प चढ़ायें।
चन्दन
चन्दनं समर्पयामि। ऊँ शिवाय नमः।।
चावल
अक्षतान् समर्पयामि। ऊँ शिवाय नमः।।
पुष्प माला
पुष्प मालां समर्पयामि नमः।।
इसके बाद ऊँ नमः शिवाय मंत्र बोलकर बिल्व पत्र चढ़ायें।
नैवेद्यं निवेदयामि। ऊँ शिवाय नमः
फल चढ़ायें, मुख शुद्धि के लिए लौंग इलायची समर्पित करें।
शिवलिंग पूजन के पश्चात पारदेश्वर शिवलिंग के सामने चावल की पांच ढेरियां बना लें, फिर क्रमशः प्रत्येक ढेरी पर एक-एक मृत संजीवनी रूद्राक्ष निम्न मंत्र बोलते हुए चढ़ायें, ये भगवान शंकर के पंच स्वरूप हैं।
ऊँ सद्योजाताय नमः। ऊँ वामदेवाय नमः। ऊँ
अघोराय नमः। ऊँ तत्पुरूषाय नमः। ऊँ ईशानाय नमः।
इनका चन्दन, अक्षत, धूप, दीप एवं पुष्पों से पूजन सम्पन्न करें।
इन पांचों ढेरी के आगे किसी पात्र में विकटा के साथ को स्थापित करें, स्नान, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप से यंत्र एवं विकटा का पूजन एक साथ करें। इस पूजन के बाद ‘नीलकण्ठाय माला’ से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप करें।
जप समाप्ति के बाद शिव आरती करें। आरती के बाद दोनों हाथों में खुले पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़े और पाशुपतये शिवलिंग पर पुष्पाजंलि अर्पित करें।
अज्ञानाद यदि ना ज्ञानाद् जप पूजादिकं मया।
कृतं तदस्तु सफलं कृपया तव शंकर।।
सामग्री को अगले दिन जल में प्रवाहित कर दें।
सांसारिक व्यक्ति के लिये वर्ष का सर्व श्रेष्ठ महापर्व महाशिवरात्रि ही है ऐसे ही पावन पर्व पर अपने भौतिक जीवन में नवीन नूतन परिर्वतन के लिए और अपने जीवन में पूर्ण शिव-गौरी सौभाग्य को निर्मित करने हेतु पूज्य सद्गुरुदेव और वन्दनीय माता जी के सानिध्य में नर्मदा नदी के उद्गम स्थल और द्वादश ज्योतिर्लिंग स्वरूप अमरकंटक की दिव्य तपोभूमि पर शिवगौरी शक्ति महाशिवरात्रि महोत्सव 15,16,17 फ़रवरी 2015 को प्रत्येक साधक द्वारा अमृत सिद्धि प्राप्ति हेतु स्व रूद्राभिषेक सम्पन्न होगा साथ ही शिव-गौरी अखण्ड सौभाग्य शक्ति दीक्षा, मृत्युजंय शक्ति दीक्षा, और खड्ग रावण कृत स्वर्ण खप्पर दीक्षा प्रदान की जायेगी। जिससे आने वाला नूतन विक्रम सवंत् 2072 आपके लिए पूर्ण आनन्द, रस, उल्लास युक्त फ़लदायक और मृत्युजंय लक्ष्मी युक्त हो सके और आप अपनी कामनाओं को पूर्णता दे सकेंगे।
शिविर स्थलः ज्योर्तिलिंग नर्मदा उद्गम स्थल, कैलाश धाम अमर कंठक (म-प्र)
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,