तांत्रोक्त साधनाएं ही वास्तव में सफलता से अधिक सम्बन्ध रखती हैं क्योंकि उसके पीछे व्यक्ति की जूझने की प्रवृत्ति होती है, जिससे सफलता मिलने की सम्भावनाएं प्रबल होती जाती है। अपने समस्त विरोधाभासों के बाद भी तंत्र की सर्वोच्चता निर्विवाद रूप से सत्य ही है। वर्ष में कुछ दिवस ऐसे विशेष महत्व के होते हैं जब प्रकृति का संतुलन, प्रकृति की रहस्यमय लीला, अणु-अणु चैतन्य होने के साथ इस प्रकार का वातावरण होता है जो साधक को उसके परिश्रम का सौ गुना अधिक प्रभाव दे जाता है या स्पष्ट कहे तो प्रकृति विरोध न करने के स्थान पर सहायक और मृदु रूप में सामने आती है। प्रकृति के प्रकट स्वरूप में भी तो हम उसे दो प्रकार की देखते हैं या तो शीतल मंद पवन या उग्र प्रचण्ड तूफान के बवन्डर, खेतों को सींचने वाला नदी का शांत जल और वहीं बाढ़ की उफनती नदी से गांव के गांव निगलने वाला रौद्र प्रवाह—
तांत्रोक्त साधनाएं भी जहां एक ओर सौम्य है, वहीं अपने प्रवाह में झटके से विशाल ठुंठ रूपी वृक्ष को भी उखाड़ कर गिरा देने की क्षमता से युक्त भी हैं, और बिना विनाश के नव-निर्माण संभव भी तो नहीं। प्रकृति की यह उग्रता और तंत्र की प्रचण्डता के सही तालमेल का दिन कालरात्रि, दीपावली की रात्रि या होलिका-दहन की रात्रि होती है। प्रकृति इस दिन सामान्य स्थिति में नहीं होती। इन दिवसों में कण-कण पूरी क्षमता से कम्पनमय रहता है और साधक इन्हीं क्षणों को पकड़ने की कला जानता है।
फिर होली का पर्व—- दो महापर्वों के ठीक मध्य घटित होने वाला पर्व! होली से पन्द्रह दिन पूर्व ही सम्पन्न होता है महाशिवरात्रि का पर्व और पन्द्रह दिन बाद चैत्र नवरात्रि का। शिव और शक्ति के ठीक मध्य का पर्व और एक प्रकार से कहा जाए तो शिवत्व के शक्ति से सम्पर्क के अवसर पर ही पर्व आता है। जहां शिव और शक्ति का मिलन है वहीं ऊर्जा की लहरियों का विस्फोट है और तंत्र का प्रादुर्भाव है, क्योंकि तंत्र की उत्पत्ति ही शिव और शक्ति के मिलन से हुई- यह विशेषता तो किसी भी अन्य पर्व में संभव ही नहीं और इसी से होली का पर्व पूरे वर्ष का पर्व, साधना का सिद्ध मुहूर्त, तांत्रिकों के सौभाग्य की घड़ी कहा गया है।
प्रकृति में हो रहे कम्पनों का अनुभव सामान्य रूप से न किया जा सके लेकिन महाशिवरात्रि के बाद और चैत्र नवरात्रि के पहले- क्या वर्ष के सबसे अधिक मादक और स्वप्निल दिन नहीं होते?—- क्या इन्हीं दिनों में ऐसा नहीं लगता है कि दिन एक गुनगुनाहट का स्पर्श देकर चुपके से चला गया है और सारी की सारी रात आंखों में बिता दें– क्योंकि यह प्रकृति का रंग है, प्रकृति की मादकता, उसके द्वारा छिड़की गई यौवन की गुलाल है और रातरानी के खिले फूलों का नशीलापन है। पूरे साल भर में यौवन और अठखेलियों के ऐसे मदमाते दिन और ऐसी अंगड़ाइयों से भरी रातें फिर कभी होती ही नहीं और हो भी कैसे सकती हैं?
तंत्र भी जीवन की एक मस्ती ही है, जिसके सुरूर से आंखों में गुलाबी डोरे उतर आते हैं, क्योंकि तंत्र को जानने वाला ही सही अर्थ में जीवन जीने की कला जानता है। वह उन रहस्यों को जानता है जिनसे जीवन की बागडोर उसके ही हाथ में रहती है और उसके जीवन में घटनाएं घटती रहती हैं और उसका जीवन घटनाओं या संयोगों पर आधारित न होकर उसके ही वश में होता है, उसके द्वारा ही गतिशील होता है। तंत्र का साधक ही अपने भीतर उफनती शक्ति की मादकता का सही मेल होली के मुहूर्त से बैठा सकता है और उन साधनाओं को सम्पन्न कर सकता है जो न केवल उसके जीवन को संवार दें बल्कि इससे भी आगे बढ़कर उसे ऊंचे और ऊंचे उठाने में सहायक हों।
होली, उल्लास और रंगों का पर्व है और ये रंग आपके जीवन में स्थायी भी हो सकते हैं। तांत्रिक और साधक ही सही रूप में होली का महत्व समझते हैं क्योंकि होलिका दहन की रात सामान्य रात नहीं होती। यह तो तंत्र-साधनाओं का ऐसा सिद्ध मुहूर्त होता है जिसकी कोई मिसाल ही नहीं। दीपावली की रात के बाद यही तो होती है वह रात जिस दिन कोई भी साधना, चाहे वह तांत्रोक्त हो या मांत्रोक्त, यदि सम्पन्न करे तो पूरा-पूरा फल दे देती है। होली का पर्व तो साधना का स्वतः सिद्ध ऐसा मुहूर्त है जो दुर्भाग्य को पूर्णता से सौभाग्य में बदलने की सामर्थ्य रखता है और चैत्र-नवरात्रि अर्थात नए वर्ष के प्रारम्भ से पहले विशेष सौभाग्यदायक साधनाएं सम्पन्न कर लेने से आगामी वर्ष पूरी तरह से उल्लास, सफलता और सुख-शांति में व्यतीत होता है।
शास्त्रों में होली महोत्सव का विशेष महत्व बताया गया है जो हर दृष्टि से मनुष्य के जीवन को पूर्णरूपेण सुनहरे रंगों से सरोबार से युक्त करने का पर्व है। विशेष मुहूर्त दिवस पर विशेष क्रियायें सम्पन्न की जायें तो साधक का जीवन श्रेष्ठमय बनता ही है और उसकी बाधाओं का शमन होता ही है। प्रत्येक व्यक्ति को होली पर्व पर विशेष साधनायें अपने गुरु के सानिध्य में सम्पन्न करनी चाहिए जिससे उसका आने वाला सम्पूर्ण वर्ष बाधा रहित रहे। इसी हेतु पूज्य सद्गुरुदेव की आज्ञा से तांत्रोक्त होली महोत्सव का आयोजन जोधपुर की तपोभूमि कैलाश सिद्धाश्रम में सम्पन्न होगा। इस महोत्सव में तंत्र सिद्धि दीक्षा और नवनिधि अष्ट सिद्धि दीक्षा प्रदान की जायेगी। वे अष्ट सिद्धियां जो अणिमा-महिमा, गरिमा, लघिमा, ईशित्व, वशीत्व, प्राप्ति, प्राकाम्य का स्वरूप जीवन में पूर्णता से प्राप्त हो सके।
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