द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग अपने आप में न केवल एक ज्योर्तिलिंग है अपितु वह हमारे आस्थावान चार धामों, बद्रीनाथ, पुरी, द्वारका के साथ-साथ एक श्रेष्ठ धाम भी है। रामेश्वरम् एक द्वीप है, जिसका आकार शंख की तरह है। इसके महत्व को स्कन्द पुराण तथा शिव पुराण में वर्णित किया गया है। रामेश्वरम् मंदिर भगवान शिव को समर्पित किया गया है और यह सम्पूर्ण विश्व में सबसे बड़ा हिन्दुओं का मंदिर है। इसे बनारस की ही भांति पुण्य प्रदायक एवं पवित्र माना गया है। सर्व मान्य तथ्य है कि किसी भी साधक को जीवन की पूर्णता प्राप्ति के लिए इस रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के दर्शन से लाभ मिलता ही है। ‘राम सेतु’ का निर्माण इसी स्थान पर हुआ था।
जिसे पार कर भगवान राम व उनकी सेना लंका पहुंची थी। यह वही स्थान है जहां पर भगवान राम ने लंका विजय के उपरान्त 14 वर्षीय वनवास यात्रा पूर्ण कर अयोध्या लौटते समय भगवान शिव की पूजा-स्तुति की थी। रावण भगवान ब्रह्मा का पौत्र था और इसके फलस्वरूप ब्राह्मण पुत्र भी था। उसकी हत्या करने पर भगवान राम को ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। जिसका निवारण करना आवश्यक था। इस स्थान पर भगवान विष्णु तथा भगवान शिव दोनों के ही प्रकट होने से यह स्थान वैष्णव व शैव दोनों के लिए ही पूजनीय है और इसी कारण दिव्यतम पावन तीर्थ स्थल है।
मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति रामेश्वरम् के घाट पर बैठ कर अपने शरीर पर वहां की रेत लगाता है तो जितने भी रेत के कण उसके शरीर पर लगते हैं उसके जीवन के उतने ही पाप दोषो और पूर्व जन्म के पितृ दोषों का शमन होता है। यह भी माना जाता है कि वहां के तट पर बहने वाली चैत्र मास में मीनाक्षी-सुन्दरेश्वर विवाहपर्व के दिवसों में हवा यदि किसी भी इन्सान के शरीर को छू कर गुजरती है तो उसे पूर्ण सुख और सौभाग्य के साथ-साथ आरोग्यमय जीवन की प्राप्ति होती है। परिवार का कोई भी प्रमुख सदस्य वहां 24 कुण्डों में स्नान के साथ विधि-विधान पूर्वक पूजन करता है तो जीवन की मलिन पूर्ण स्थितियों से निवृत्ति प्राप्त होती है।
यह भी माना गया है कि संसार में कहीं पर भी यदि कोई पाप कर्म हो जाए तो पवित्र स्थान पर स्थापित मंदिरों में जा कर उस पाप को मिटाया जा सकता है। यदि मंदिर में कोई पाप हो जाये तो उसे पवित्र तीर्थों की नदियों में डुबकी लगा कर मिटाया जा सकता है। यदि कोई पाप कर्म किसी तीर्थ पर हो जाए तो उसे यज्ञ के द्वारा मिटाया जा सकता है और यदि यज्ञ में कोई पाप कर्म हो जाये तो उसे रामेश्वरम् में ही मिटाया जा सकता है। यदि कोई पाप कर्म रामेश्वरम् में ही हो जाये तो उसे मिटाने के लिए अपने इष्ट या गुरु के निर्देशन में हवन, पूजन करने से सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ दंडकारर्ण्य वन की ओर चौदह सालों के लिए कूच कर गये। जब वे पंचवटी आश्रम में थे, तब रावण ने छल से सीता का हरण कर लिया और उसे लंका के अशोक वाटिका में रखा। राम और लक्ष्मण सीता को ढूंढते हुए किषकिन्धा पहुंचे और वहां पर उन्हें हनुमान और सुग्रीव मित्र के रूप में मिले। राम ने बाली का वध कर सुग्रीव को किषकिन्धा का राजा बनाया और बदले में सुग्रीव ने भगवान राम की मदद करने का वचन दिया। एक विशाल सेना की मदद से सीता की खोज प्रारम्भ हुई। हनुमान जब सीता को ढूंढते हुए रामेश्वरम् को पार कर लंका पहुंचे। वहां उन्होंने माता सीता को अशोक वाटिका में देखा। उन्हें देख कर हनुमान ने माता सीता को अपना परिचय दिया और कहा कि भगवान राम उनकी खोज कर रहे हैं और उन्हें भगवान राम द्वारा दी गई चूड़ामणि दिखाई, जिसे देख कर सीता को हनुमान की बातों पर पूर्ण विश्वास हुआ। वापस आकर हनुमान ने भगवान राम को सीता के बारे में खबर दी और फिर राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, जामवन्त, हनुमान आदि सभी वानर रामेश्वरम् के तट पर पहुंचे।
राम ने अपने समक्ष विशाल समुद्र को देखा तो थोड़ा निराश हुए। उन्होंने समुद्र देवता की आराधना प्रारम्भ की ताकि वह उन्हें व उनकी सेना को लंका जाने का मार्ग प्रदान करें। जब तीन दिन की उपासना के बाद भी समुद्र देव प्रसन्न नहीं हुए तो भगवान राम के क्रोध की कोई थाह न थी। उन्होंने अपना तीर निकाल कर धनुष पर चढ़ाया ही था कि समुद्र देवता प्रकट हुए व अपनी गलती की क्षमा मांगी। फिर उन्होंने भगवान राम को आश्वस्त किया कि वो सेतु के कार्य में उनकी पूर्ण मदद करेंगे। भगवान राम की सेना के ही दो योद्धा नल व नील ने सेतु बंधन का कार्य प्रारम्भ किया और उन्होंने शीघ्र ही इस कार्य को विराम दिया। इस पूरी क्रिया के दौरान भगवान राम की सेना जिस मंत्र का उच्चारण करती रही वह इस प्रकार है-
अर्थात – यह स्थान भगवान राम की चरण धूलि से पवित्र हो गया है। यह सेतु दसमुखी रावण के विनाश का कारण बनेगा। यह केतु (ध्वज) मोक्ष साधना या मुक्ति का गवाह बनेगा कि भगवान राम की शरण में आने वाले को मुक्ति प्राप्त होती है और मां सीता उसी प्रकार प्रसन्न होंगी जिस प्रकार भगवान सूर्य के आने पर कमल खिल उठता है। इस अविनाशी अमर सेतु को हमारा नमन है।
इसके उपरान्त भगवान राम ने शिव पुत्र गणपति की साधना-आराधना की जिससे कि मार्ग के सभी विघ्नों का नाश हो सके और नवग्रह यज्ञ भी सम्पन्न किया, जिससे सभी नवग्रह उनके लिए अनुकूल और सहयोगी बने जिससे कि वे विजयश्री को प्राप्त हो सके। लंका विजय के बाद जब राम-सीता वापस रामेश्वरम् पहुंचे तो उनका स्वागत महामुनियों ने किया।
महामुनियों के आदेशानुसार भगवान राम ने सीता के साथ भगवान शिव की पूजा करने का निश्चय किया। महामुनियों ने शिवलिंग पूजन व स्थापन का एक श्रेष्ठ मुहूर्त बताया और भगवान हनुमान को कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव से उनके लिंग स्वरूप विग्रह को लाने का आदेश दिया। आज्ञानुसार हनुमान कैलाश पर्वत पर गये। हनुमान जी कैलाश पर्वत पर पहुंच कर भगवान शिव को ढूंढने लगे। जब उन्हें भगवान शिव कहीं नजर नहीं आए तो उन्होंने भगवान शिव की स्तुति करनी प्रारम्भ कर दी। सदाशिव महादेव तीन दिनों के उपरान्त प्रकट हुए और उन्होंने प्रसन्न होकर रामेश्वरम् लिंग प्रदान किया। हनुमान द्रुत गति से वापस रामेश्वरम् पहुंचे। उससे पूर्व ही माता सीता जी ने वहां पर रेत का ही शिवलिंग बना कर शिव पूजन सम्पन्न किया। रूद्राभिषेक के लिए कोटि तीर्थ के जल का प्रयोग किया गया। हनुमान ने देखा कि उनके आने में जो विलम्ब हुआ उस कारण से श्रेष्ठ मुहुर्त पूर्ण हो गया। भगवान राम ने जब देखा कि हनुमान उनके द्वारा लाये गये शिवलिंग का प्रयोग न होने के कारण थोड़ा मायूस हो गये हैं तो उन्होंने हनुमान जी को यह वचन दिया कि पहले हनुमान द्वारा लाये गये शिवलिंग का पूजन करने के बाद ही माता सीता द्वारा स्थापित शिवलिंग का पूजन फलप्रद होगा और ऐसा कह कर उन्होंने हनुमान जी द्वारा लाये गये शिवलिंग को भी वहीं पर स्थापित किया।
श्रीरामेश्वरजी का एक बहुत सुन्दर स्फटिक ज्योतिर्लिंग है। इसके दर्शन प्रातःकाल 4 बजे से 5 बजे तक ही होते हैं। साधक प्रातः बेला में समुद्र में स्नान कर इसका दर्शन करते हैं तब यह स्फटिक शिवर्लिंग अत्यन्त स्वच्छ तथा पारदर्शी दिखाई देता है। इस मूर्ति पर दुग्ध धारा चढ़ाते समय मूर्ति के स्पष्ट सुन्दर दर्शन होते हैं। पूजन के पश्चात् मूर्ति पर चढ़ा दुग्धादि पंचामृत प्रसाद स्वरूप में श्रद्धालुओं द्वारा ग्रहण करने से जीवन में सुस्थितियां निर्मित होती है।
श्रीरामेश्वरम् मन्दिर के पूर्व समुद्र की ओर जाने पर समुद्र-तट पर महाकाली-मन्दिर स्थित है। समुद्र में ही अग्नितीर्थ माना जाता है। कहा जाता है कि किसी कल्प में श्रीजानकी जी की अग्नि परीक्षा यहीं हुई थी।
मन्दिर के अन्दर 22 पवित्र नदियों के जल कुण्ड स्वरूप तीर्थ हैं और समुद्र का अग्नितीर्थ तथा उसके पास अगस्त्य-तीर्थ ये मिला कर 24 तीर्थ है। इसमें से अग्नि-तीर्थ सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। सर्वप्रथम श्रद्धालु प्रथम दिन समुद्र-स्नान ही करते है। इन तीर्थों में माधव-तीर्थ और शिव-तीर्थ सरोवर है।, महालक्ष्मी-तीर्थ और अगस्त्यतीर्थ बावलियां है। सभी 24 तीर्थ कूप है जो कि- माधव तीर्थ, गवय तीर्थ, गवाक्ष तीर्थ, नल तीर्थ, नील तीर्थ, गन्धमादन तीर्थ, ब्रह्महत्याविमोचन तीर्थ, गंगा तीर्थ, यमुना तीर्थ, गया तीर्थ, सूर्य तीर्थ, चन्द्र तीर्थ, शंख तीर्थ, चक्र तीर्थ, अमृतवापी तीर्थ, शिव तीर्थ, सरस्वती तीर्थ, सावित्री तीर्थ, गायत्री तीर्थ, महालक्ष्मी तीर्थ, अग्नि तीर्थ, अगस्त्य तीर्थ, सर्व तीर्थ, कोटि तीर्थ। स्कन्दपुराण में इन्ही सभी तीर्थों की उत्पत्ति का विस्तार से बताया गया है। इनके जल से स्नान मार्जन का अत्यधिक माहत्म्य है।
रामेश्वरम् को ‘उत्सव नगरी’ कहा जाता है। यहां बराबर उत्सव चलते ही रहते हैं। चैत्र महीने में मीनाक्षी- सुन्दरेश्वर- विवाहोत्सव होता है, जो दस दिन तक चलता है। इस समय रथ-यात्रा होती है। मीनाक्षी को धन प्रदाता लक्ष्मी स्वरूपा माना गया है और श्रीसुन्दरेश्वर को ज्योर्तिमय स्वरूप कहा गया है। इन दोनों के परिणय अवसर को शिवरात्रि स्वरूप ही माना गया है जिस तरह से भगवान सदाशिव महादेव और माता गौरी के विवाह दिवस को शिवरात्रि पर्व कहते हैं वैसा ही महान उत्सव इस चैत्र मास की नवमी से प्रारम्भ हो रहा है और हम सभी का श्रेष्ठतम सौभाग्य है कि ऐसे ही दिव्यतम दिवसों पर आने वाले नूतन वर्ष को पूर्ण श्रेष्ठमय बनाने के लिए सद्गुरुदेव के सानिध्य में समुद्र स्नान के बाद सभी चौबीस तीर्थ कुण्डों के जल से साधकों का अभिषेक होगा साथ ही महामृत्युजंय रूद्राभिषेक, नवग्रह चैतन्य युक्त नव चण्डी हवन, विघ्नहर्ता गणपति दीक्षा, काल भैरव दीक्षा, मीनाक्षी धन लक्ष्मी दीक्षा, श्रीसुन्दरेश्वर शक्ति साधना के साथ योगा, प्राणायाम, प्रवचन की श्रेष्ठतम क्रियायें सम्पन्न होगी। पूज्य सद्गुरुदेव की आज्ञा से सर्वथा पहली बार रामेश्वरम् में दीर्घायु जीवन प्राप्ति सर्व सुख धन प्रदाता रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग शिविर का आयोजन 14, 15 मार्च को सत्संग भवन, गोस्वामी मठ-2, सीता तीर्थ के पास, रामेश्वरम् में सम्पन्न होगा।
दक्षिण भारत रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की तपोभूमि पर जहां पर स्वयं श्रीराम-लक्ष्मण जानकी और भक्त हनुमान ने शिवलिंग को स्थापित कर प्रतिष्ठ किया था ऐसे दिव्य ज्योतिर्लिंग जो की द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक है। साधक को अपने जीवन में अवश्य ही ऐसे श्रेष्ठ और तेजमय शिवलिंग के दर्शन अपने सद्गुरुदेव के सानिध्य में अवश्य करने चाहिए जिससे उसके जन्मों के पाप-दोषों का शमन हो सके।
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