ऋतु बहुत अद्भुत शब्द है। ऋतु का अर्थ होता हैः स्वाभाविक, प्राकृतिक, जैसा है वैसा। मैं वही कहूंगा। जैसा है वैसा। लेकिन फिर भी कहने वाला तो मैं ही रहूंगा। और जैसा मुझे दिखाई पड़ता है, वह मुझे ही दिखाई पड़ेगा, उसमें भूल हो सकती है। मैं सत्य प्रवचन करूंगा, लेकिन मैं ही करूंगा- मैं जैसा हूं। जिस बात को सत्य समझूंगा, बोल दूंगा, लेकिन वह असत्य भी हो सकता है। मुझे जो सत्य दिखाई पड़ता है, जरूरी नहीं है कि सत्य हो ही। मुझे जो असत्य मालूम पड़ता है, जरूरी नहीं कि असत्य हो ही। मुझसे भूल हो सकती है। मेरी आंखें बाधा डालेंगी, मेरी दृष्टि भी तो विकार पैदा करेगी।
मन पर नियंत्रण करने के लिए भी मन का ही उपयोग करना पडे़गा। मन से बाहर जाने के लिए भी मन का उतना ही उपयोग करना होता है जितना कि मन के अन्दर आने के लिए। जो मन में उतरने के लिए करता है उसके लिए मन अज्ञान का आधार बन जाता है, और जो मन के बाहर जाने के लिए उपयोग करता है उसके लिए मन ज्ञान का आधार बन जाता है। जितना सद्गुरु से एकाकार होते जाओगे, उतना ही तुम अपने आप को खुश और आनन्दित पाओंगे। सद्गुरु की चेतना को आत्मसात करने से जीवन को निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर किया जा सकता है। क्योंकि सद्गुरु की चेतना को गुरु के द्वारा दिये गये ज्ञान का प्रचार प्रसार के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है। जितना तुम ज्ञान का विस्तार करोंगे उतना ही तुम में सद्गुरु की चेतना का प्रवाह तीव्र हो सकेगा। इसीलिए अपने नगर, गांव, शहर में संगठन के द्वारा गुरु ज्ञान का प्रसार करे और अधिक से अधिक व्यक्तियों को पत्रिका सदस्य बनाये जिससे कि उनके भी जीवन में पाप-ताप दोषों का शमन हो सके। और आपको भी धर्म युक्त गुरु कार्य करने का लाभ प्राप्त हो सके।
मन तुम्हारे कार्य में बाधा डालेगा इससे बाहर जाने के लिये। इसलिए तुम अपने मन से प्रार्थना करो कि मेरे ज्ञान का नाश मत करो और फिर अपने सद्गुरु से। यह बड़ा अद्भुत है। आपने कभी ऐसा किया नहीं होगा। परन्तु जिसने भी किया है सफल हुआ है। अगर अब आपके होठ सिगरेट मांगने लगें तो प्रयोग करना देखना। अपने होठ से प्रार्थना करना कि मेरे होठ, प्रार्थना करता हूं कि सिगरेट मत मांगो। और अगर यह प्रार्थना हार्दिक है तो होठ तुरन्त शिथिल हो जाएंगे और मांग बंद कर देंगे। कामवासना उठे तो अपनी कामवासना के केन्द्र से कहना कि मेरे कामवासना के केन्द्र, कामवासना मत मांगो। मुझे सहायता करो, मदद करो और आप तुरन्त हैरान होंगे कि आपकी प्रार्थना के साथ ही काम-केन्द्र थम जाएगा। लेकिन प्रार्थना हमने आज तक नहीं की है। तुम इस शरीर की गुलामी करते हो! शरीर के पीछे-पीछे चलने से, शरीर की मान कर सब तरह की मूढ़ताएं करने में कभी संकोच नहीं लगता। लेकिन जिस शरीर को आपने मालिक बना लिया है, अब आप उसको प्रार्थना से ही अपना सकते हैं।
सांसारिक सुख, वैभव, विलास आनन्द, प्रेम, सौन्दर्य गृहस्थ के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियां कुछ ऐसे ग्रन्थों द्वारा दी गई है, जो कि सामान्य व्यक्ति को भ्रमित करती है, कुछ ग्रन्थों में बार-बार वैराग्य, सांसारिक सुख से घृणा, जीवन सुख के प्रति विपरीत भाव वर्णित किया गया है, जो कि मिथ्या ही कहा जा सकता है। ग्रहण के समय की जाने वाली विशेष साधनाओं में सिद्धि प्राप्त होने की संभावना सर्वाधिक होती है, अन्य साधनाओं में किसी प्रकार की भूल-चूक हो सकती है, लेकिन ग्रहणकाल में साधना करने से ऐसी कोई संभावना नहीं रहती। इसीलिये तो योग्य व्यक्ति जिस कार्य को भी हाथ में लेते हैं, उसे चाहे हजार बार प्रयत्न क्यों न करना पड़े, उसे पूरा करके ही रहते हैं, ऐसे ही व्यक्तियों को योग्यतम फल प्राप्ति होती है, ऐसे ही व्यक्ति सुखों को प्राप्त कर पाते है क्योंकि वह श्रेष्ठ अवसर का लाभ उठाते हुये निरन्तर कार्यशील रहते है। जो ज्ञानी होते हैं, जो विद्वान होते है, जो उच्चकोटि के योगी, सन्यासी होते हैं, वे ग्रहण के क्षणों से चूकते नहीं, वरन् ऐसे क्षणों के लिए प्रतीक्षारत रहते हैं, जिससे कि अल्पकाल में ही वे अपने मनोरथों को पूर्ण साकार रूप प्रदान करने में सक्षम हो सकें। बड़े से बड़ा तांत्रिक भी इन क्षणों का उपयोग करने से नहीं चूकता, क्योंकि ये ही क्षण होते हैं – विशिष्ट तंत्र क्रियाओं में सफलता, सम्पन्नता, सिद्धि एवं श्रेष्ठता और अद्वितीय व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिये।
वीणा का एक तार छेड़ दूं। वीणा के तार से एक ध्वनि पैदा होगी, उसे सुनते रहें, सुनते रहें, सुनते रहें। धीरे-धीरे ध्वनि खोती जाएगी, र्निध्वनि प्रकट होने लगेगी। सुनते रहें। ध्वनि न्यून हो जायेगी। लेकिन जब ध्वनि क्षीण हो रही है, तब जानना कि अनुपात में साथ ही र्निध्वनि प्रखर हो रही है। जब ध्वनि मिट रही है, तब र्निध्वनि का आगमन हो रहा है। फिर थोड़ी देर से ध्वनि खो जाएगी, तब क्या शेष रह जाएगा? अगर कभी ध्वनि का पीछा किया है, तो आपको पता चल जाएगा कि ध्वनि र्निध्वनि में ले जाती है। शब्द निःशब्द में ले जाते हैं। संसार मोक्ष में ले जाता है। अशांति भी शांति में ले जाती है। जो इतना विनम्र है कि सत्य बोलने में भी कहता है, परमात्मा मेरी रक्षा करना, जो इतना विनम्र है कि इस उपनिषद को रचता है और कहता है कि हम सिर्फ व्याख्यान कर रहे हैं उस उपनिषद पर जो सदा से है, वह पहली ही घोषणा में कहता है, मैं परमहंस हूं। बड़ा विपरीत मालूम पड़ेगा। लेकिन ध्यान रहे, जो इतने विनम्र हैं, वे ही इतनी स्पष्ट घोषणा कर सकते हैं। विनम्रता ही कह सकती है अपनी गहराइयों में कि अहं ब्रह्मास्मि ही हूं, नहीं तो नहीं। घमंड़ कभी इतनी हिम्मत नहीं जुटा सकता कहने की कि मैं ही अहं ब्रह्मास्मि हूं।
डर से कुछ नष्ट नहीं होता, सिर्फ कुछ समय के लिये दब जाता है। और जब डर की स्थिति बदल जाती है तो बाहर आ जाता है। तो तुम्हें समाज में दिखाई देने लगेगा लोग जो डर के कारण अच्छे हैं। उनका अच्छा होना नपुंसक ब्रह्मचर्य जैसा है। वे जबरदस्ती अच्छे हैं। अच्छा होना नहीं चाहते, अच्छे का उन्हें स्वाद ही नहीं पता। वे सिर्फ बुरे से डरे हैं और घबरा रहे हैं, और भीतर कांप रहे है। इस घबराहट के कारण लोग अच्छे है। डर से कभी कोई धर्म नहीं हुआ। डर ही तो अधर्म का मूल है। प्रेम धर्म का मूल है। डर का अर्थ है, हम तुम्हें काटेंगे, बदलेंगे। प्रेम का अर्थ है, तुम जैसे हो हम तुम्हें वैसा ही स्वीकार करते है। और वास्तव में डर काट-काट कर भी नहीं बदल पाता और प्रेम बिना काटे बदल देता है। तुम अपने जीवन में गुरुतत्व का जरा भी उपयोग नहीं करते। हम कभी सार और असार में फर्क नहीं करते। धीरे-धीरे हम भूल ही जाते है कि हमारे भीतर वह बैठा है जो जहर और अमृत को अलग कर सकता है।
जीवन में ऐसे ही अनेक-अनेक डर रूपी स्थितियों को समाप्त करने और जीवन में प्रेम रूपी आह्लाद की प्राप्ति के लिये भगवान सदाशिव महादेव और माता गौरी के दिव्य परिणय दिवसों से अधिक कोई भी स्थिति श्रेष्ठ नहीं है और इस प्रेम रूपी अमृतत्व का रस पीने के लिये हर सांसारिक व्यक्ति लालायित रहता है। ऐसा ही यह महाशिवरात्रि के पर्व पर प्राप्त होने वाला अमृत तत्व का भाव जिससे कि शिव भक्त अपने जीवन के समस्त पाप दोषों का शमन कर सकें और स्वयं को शिव-गौरीमय लक्ष्मी युक्त बनाने की क्रिया की ओर अग्रसर हो सके। इसी हेतु महाशिवरात्रि महापर्व पर द्वादश ज्योतिर्लिंग और नर्मदा के उद्गम स्थल पर महादेव की तेजमय भूमि अमरकंटक में शिव-गौरी शक्ति महाशिवरात्रि महोत्सव 15,16,17 फ़रवरी को सम्पन्न किया जायेगा। जिससे सद्गुरुदेव के सानिध्य में साधक अपने समस्त पाप ताप दोषों का शमन कर अपने जीवन को शिव-स्वरूप गुरु के सानिध्य में नूतन चेतना से जीवन में जोश, आनन्द और शक्ति से युक्त कर सकेगा। जब सद्गुरुदेव और वन्दनीय माता जी का साहचर्य प्राप्त हो और इस संयोग से गौरी शक्ति, विघ्नहर्त्ता गणपति, पराक्रमी कार्त्तिकेय, ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ—-की श्रेष्ठता प्राप्ति होती ही है।
महाशिवरात्रि पर्व की पूर्णता के साथ ही वर्ष का श्रेष्ठतम तांत्रोक्त पर्व होलिकाष्टक प्रारम्भ होता है जिसकी प्रतीक्षा सभी योगी, संन्यासी, तांत्रिको और विशेष रूप से गृहस्थ साधकों को रहती है। दीपावली, होली, ग्रहण काल ये कुछ ऐसे सर्व श्रेष्ठ सिद्ध मुहूर्त होते है जिसमें प्रत्येक प्रकार की साधनाओं में सिद्धियां प्राप्त होती ही है। शास्त्रों में होली महोत्सव का विशेष महत्व बताया गया है, जो हर दृष्टि से मनुष्य के जीवन को पूर्णरूपेण सुनहरे रंगों से सरोबार करने का पर्व है। श्रेष्ठ मुहूर्त पर विशेष तांत्रोक्त क्रियायें सम्पन्न की जायें तो साधक का जीवन श्रेष्ठमय बनता ही है और उसकी बाधाओं का शमन होता ही है। प्रत्येक व्यक्ति को होली पर्व पर विशेष साधनायें अपने गुरु के सानिध्य में सम्पन्न करनी चाहिए जिससे उसका आने वाला सम्पूर्ण वर्ष बाधा रहित रहे। इसी हेतु पूज्य सद्गुरुदेव की आज्ञा से तंत्र सिद्धि होली महोत्सव का आयोजन 04-05 मार्च को जोधपुर की तपोभूमि कैलाश सिद्धाश्रम में सम्पन्न होगा। इस महोत्सव में भक्त हनुमान को जो अष्ट सिद्धियां प्राप्त थी, अणिमा-महिमा, गरिमा, लघ्मिा, ईशित्व, वशीत्व, प्राप्ति, प्राकाम्य के फलस्वरूप ही राम भक्त हनुमान बल, बुद्धि, ज्ञान शक्ति से युक्त हुये। इसीलिये उन्हें महावीर कहा जाता है। ऐसी ही महावीरमय स्थितियों की प्राप्ति हेतु नवनिधि अष्ट सिद्धि दीक्षा और तंत्र सिद्धि दीक्षा प्राप्त कर सकेगे।
आद्या शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों में रामेश्वरम् अपने आप में पूर्ण चैतन्य युक्त एवं सिद्धिप्रद ज्योतिर्लिंग है। सांसारिक व्यक्ति जीवन की सुवृद्धि हेतु संघर्ष करता है तो उन सब में विजय प्राप्ति हेतु दिव्य ज्योतिर्लिंग धाम में दर्शन, अर्चन, साधना, पूजा करता है उससे निश्चित रूप से उसका परिवार शिवमय बनने की ओर अग्रसर होता है। ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम् शिव का ही पूर्ण चैतन्यमयी स्वरूप है, किसी भी कार्य में विजयश्री और सफलता के लिये सृष्टि के पूर्णता कर्त्ता महादेव की आराधना का चिंतन भाव होना आवश्यक है। अपने जीवन के मानसिक, शारीरिक और आर्थिक सभी कष्टों से मुक्ति पाकर जीवन में सुख-समृद्धि, धन यश, आयु वृद्धि प्राप्त करता ही है। कई-कई जन्मों के पापों के शमन के साथ-साथ भक्त शिव स्वरूप बनने की ओर अग्रसर होता है इसके प्रभाव से जीवन में सभी रूपों में धर्म, अर्थ, काम की पूर्णता के साथ साधनात्मक उच्चता भी आनी प्रारम्भ होती है। सद्गुरुदेव स्वामी सच्चिदानन्द जी महाराज के पूर्ण आशीर्वाद से ऐसे दिव्य पवित्र स्थान पर नूतन वर्ष के प्रारम्भ में धन प्रदाता रामेश्वरम् शिव-गौरी ज्योर्तिंलिग साधना महोत्सव 14, 15 मार्च को सत्संग भवन, गोस्वामी मठ-2, सीता तीर्थ के पास, रामेश्वरम् में सम्पन्न होगा। आप सभी यहां की पावनतम भूमि पर सद्गुरुदेव का सानिध्य प्राप्त कर अपने जीवन को सत् प्रकाश और ज्योतिर्मय युक्त बना सकेंगे।
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