भगवान शिव की चुनी हुई अमोघ साधनायें, अचूक फल प्राप्त करने हेतु शिव कल्प में सम्पन्न करें तो निश्चित रूप से शिव कृपा अनुभूत होती ही है। पूरे वर्ष में 365 दिन होते है, कुछ दिवसों को गुरु स्तुति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है, कुछ दिवसों को शक्ति साधना के रूप में सिद्धि दिवस समझा जाता है, इस प्रकार अलग-अलग देवताओं के अलग-अलग सिद्धि दिवस होते हैं, उन दिवसों पर यदि साधना सम्पन्न की जाये तो फल मिलता ही है। महाशिवरात्रि का दिवस भगवान शिव का सिद्धि दिवस होता है।
भगवान शिव की आराधना में लाखों करोड़ों श्लोक लिखें गये हैं और यदि साधक भगवान शिव का निरन्तर स्मरण करता है तो उसके सभी कार्य सफल होते ही हैं। भौतिक और आध्यात्मिक रूप से उसे पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त होती ही है। प्रत्येक साधक कोई मंत्र जप करे या नहीं करे लेकिन शिव का पंचाक्षरी मंत्र ‘ऊँ नमः शिवाय’ का उच्चारण तो अवश्य ही कर सकता है। इस ‘नमः शिवाय’ मंत्र में ही भगवान् शिव के स्वरूप सदाशिव, शिव, अर्द्धनारीश्वर, शंकर, गौरीपति, महामहेश्वर, अम्बिकेश्वर, पंचानन, महाकाल, नीलकण्ठ, पशुपति, दक्षिणामूर्ति, महामृत्युजंय का सार निहित है। ऐसे भगवान शिव जो कि शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवों के देव आदि देव है। उन महोदव की वन्दना तो ब्रह्मा, विष्णु भी करते हैं। उनकी वन्दना में प्रार्थना श्लोक उनके पूरे स्वरूप को स्पष्ट करता है।
भगवान्! आप सुव्रत और अनन्त तेजोमय हैं, आपको नमस्कार है। आप क्षेत्राधिपति तथा विश्व के बीज-स्वरूप और शूलधारी हैं, आपको नमस्कार है। आप हम सभी भूतों के उत्पत्ति स्थान और वेदोक्त सभी श्रेष्ठ यज्ञ आदि कर्मों को सम्पन्न कराने वाले, समस्त द्रव्यों के स्वामी है, आपको नमस्कार है। आप विद्या के आदि कारण और स्वामी है, आपको नमस्कार है। आप व्रतों एवं मंत्रों के स्वामी है, आपको नमस्कार है। आप अप्रमेय तत्व हैं। आप हमारे लिये सर्वत्र कल्याणकारक हों। आप जो हैं, वहीं है अर्थात् अगम्य हैं, आपको नमस्कार है।
महापंडित रावण लोक श्रुतियों में भले ही एक राक्षस और विकृत छवि का पुरूष हो किंतु विद्वानों, तंत्रज्ञो के मध्य रावण एक प्रखर शिव भक्त, प्रकांड विद्वान, योगी और तपस्वी के रूप में ही श्रद्धा से स्मरण किया जाता है। लोक मान्यताओं में ही रावण की छवि जो भी हों लेकिन वे भी उसकी शिव भक्ति से अभिभूत रहे हैं। एक अद्भुत शिवयोगी जिसने अपने जीवन में साक्षात् भगवान शिव के दर्शन प्राप्त किए, अद्भुत काव्य के दर्शन प्राप्त किए, अद्भुत काव्य और स्तोत्र रचें। उसकी प्रामाणिकता पर कोई संदेह कैसे कर सकता है?
महापंडित रावण ने ऐसी ही दुर्लभ विधि खोज निकाली थी। सामान्य शिव पूजन पर शिव पूजन का ऐसा तांत्रोक्त और दुर्लभ विधान खोज निकाला था, जिसके कारण वह अपने बल, पराक्रम, शौर्य, तपस्या, भक्ति के साथ-साथ ऐश्वर्य के स्वामी के रूप में आज तक विख्यात है। उसके शौर्य की गाथा पुराणों और शास्त्रों में बिखरी पड़ी है। क्या बिना मंत्र बल के ऐसा सब कुछ जीवन में कोई व्यक्ति संभव कर सकता है? उसने तंत्र का बल जोड़ा भी तो मंत्र के सृजक भगवान शिव से और इसी से उसे जीवन में किसी भी वस्तु की, कभी भी कोई कमी नहीं रही।
एकाकी शिव प्रायः योगी रूप में ही प्रकट हुए है, शिव योगीराज है, योगाधिश्वर है, उनका रूप विलक्षण होते हुए भी प्रतीक पूर्ण है। उनकी स्वर्णिम लहराती जटा उनकी सर्वव्यापकता की सूचक है, जटा में स्थित गंगा कलुषता-नाश तथा चन्द्रमा अमृत का द्योतक है, गले में लिपटा सर्प कालस्वरूप है, इसके फलस्वरूप शिव आराधना कर विजय पायी जा सकती है, इस सर्प अर्थात् काल को वश में करने से ही ये ‘महामृत्युजंय’ कहलाये।
त्रिपुण्ड योग की तीन नाडि़यें- इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना की द्योतक है, तो ललाट मध्य स्थित तीसरा नेत्र आज्ञा चक्र का द्योतक होने के साथ-साथ भविष्यदर्शन का प्रतीक है। उनके हाथों में स्थित त्रिशूल तीन प्रकार के कष्टों- दैहिक, दैविक, भौतिक-के विनाश का सूचक है, तो त्रिफल युक्त आयुध सात्विक, राजसिक, तामसिक-तीन गुणों पर विजय प्राप्ति को प्रदर्शित करता है, कर स्थित डमरू उस ब्रह्म निनाद का सूचक है जिससे समस्त वाड्मय निकला है, कमण्डल, समस्त ब्रह्माण्ड के एकीकृत रूप का द्योतक है, तो व्याघ्रचर्म मन की चंचलता के दमन का सूचक है। शिव के वाहन नंदी धर्म के द्योतक है, जिस पर वे आरूढ़ रहने के कारण ही धर्मेश्वर कहलाते हैं, उनके शरीर पर लगी भस्म संसार की नश्वरता की द्योतक है।
इस बार महाशिवरात्रि का पूजन, अर्चन, अभिषेक, हम साधक-शिष्य सद्गुरुदेव के साथ नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक में सम्पन्न करेंगे। सभी शिष्य और साधकों को इस महान् शिविर में कैलाश सिद्धाश्रम की ओर से हृदय भाव से आमंत्रित है।
आरती गायन कर महादेव को प्रसन्न नहीं किया जा सकता, शिवलिंग पर जल दूध चढ़ाकर महादेव को वशीभूत नहीं किया जा सकता है, उपवास कर महादेव को जाग्रत नहीं किया जा सकता, जप कर महामृत्युजंय को सिद्ध नहीं किया जा सकता, उन्हें अपने हृदय प्राणों में पूर्ण रूप से जोड़ने की क्रिया पूर्ण विधि-विधान सहित महाशिवरात्रि को गणपति पूजन, गौरी पूजन, गुरु पूजन, शिव पूजन, अभिषेक द्वारा ही पूर्ण रूप से अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। जिससे महादेव की अमृत वर्षा आपको पूरे वर्ष आनन्द से आप्लावित करती रहे। इसी हेतु महाशिवरात्रि महापर्व सद्गुरुदेव और वन्दनीय माता जी के सानिधय में नर्मदा नदी के उद्गम स्थल और द्वादश ज्योतिर्लिंग स्वरूप अमरकंटक की दिव्य तपोभूमि पर शिवगौरी शक्ति महाशिवरात्रि महोत्सव 15,16,17 फ़रवरी 2015 को प्रत्येक साधक द्वारा अमृत सिद्धि प्राप्ति हेतु स्व रूद्राभिषेक सम्पन्न होगा साथ ही शिव-गौरी अखण्ड सौभाग्य शक्ति दीक्षा, मृत्युजंय शक्ति दीक्षा, और खड्ग रावण कृत स्वर्ण खप्पर दीक्षा प्रदान की जायेगी। जिससे आने वाला नूतन विक्रम सवंत् 2072 आपके लिए पूर्ण आनन्द, रस, उल्लास युक्त फ़लदायक और मृत्युजंय लक्ष्मी युक्त हो सके और आप अपनी कामनाओं को पूर्णता दे सकेंगे।
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