आपने कभी सोचा है कि आप का उत्तर ‘हां’ में क्यों नहीं मिला, क्योंकि दुःख तो जीवन का अभिन्न अंग है, किसी न किसी रूप में व्यक्ति के साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर चलता रहता है— कभी कम हो जाता है तो व्यक्ति थोड़ी राहत महसूस करने लगता है—- यदि थोड़ा अधिक हो जाता है, तो कष्ट अनुभव करने लगता है। यह सुख-दुख का उतार-चढ़ाव तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में लगा ही रहता है। फिर भी उसे जीवन का क्रम मानकर, हाथ पर हाथ रखकर व्यक्ति बैठ तो नहीं जायेगा, वह जरूर ऐसा प्रयास करेगा, कि उसके जीवन से दुःख रूपी अशांति दूर हो और सुख रूपी शान्ति का आगमन हो।
लेकिन सुख और दुख की व्याख्या करने मात्र से ही तो जीवन शान्त एवं सुखी नहीं हो सकता, इसके लिए तो कर्म करना ही पड़ेगा और कोई ऐसा उपास ढूंढना पड़ेगा, जिससे व्यक्ति के जीवन में आनन्द की रसधारा सतत प्रवाहित होती रहे।
जीवन में प्रमुखतः चार कष्ट ऐसे होते हैं, जो व्यक्ति के लिए दुःख का कारण बनते हैं। इन चार कष्टों के नाखून इतने तीखें है, कि ये प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में जरूर खरोंच डालते हैं, ये कष्ट हैं- शत्रु बाधा, कलह, तिरस्कार, भय ये चारों स्थितियां विष की बूंदों के समान है, जो अमृत रूपी जीवन को विषमय बना देती हैं। इन चारों स्थितियों के कारण ही आप अपने-आप को दूसरों की तुलना में कमजोर, अशक्त एवं हीन समझने लग जाते हैं, क्योंकि आपके द्वारा कई प्रयास करने के बाद भी इनसे मुक्त होना सम्भव नहीं हो सका।
आपकी इस ‘सुरसा-मुख रूपी समस्या’ के निराकरण के लिए ही तो यह ‘कृत्या साधना’ प्रस्तुत की जा रही है, जिसे सम्पन्न करने के बाद आपके मन से हीन भावना निकल जायेगी और आप के मन में यह विश्वास दृढ़ हो जायेगा, कि आप किसी से कम नहीं हैं। कृत्या को भगवान शिव ने अपनी जटा से प्रकट किया है। जब दक्ष का यज्ञ विध्वंस करना था, उस समय क्रोधित शिव की जटा खुल गयी और उसी जटा से कृत्या प्रकट हुई। कृत्या का स्वरूप अत्यन्त विकराल होता है, इसके अन्दर शक्ति इतनी अधिक होती है, कि पूरे ब्रह्माण्ड को प्रलयग्रस्त कर दे, कृत्या ने दक्ष के यज्ञ कुण्ड को तोड़-फोड़ दिया और महाप्रलय का साकार दृश्य उपस्थित कर दिया, उसके ऊपर दक्ष के मंत्रों का कोई प्रभाव नहीं व्याप्त हो रहा था, क्रोधित कृत्या के सारे शरीर से आग की लपटें निकलती हुई-सी दिखायी दे रही थी, उसे शान्त करना किसी के भी वश की बात नहीं थी, अतः सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, तो उन्होंने कृत्या को शान्त किया।
ऐसी तीव्र शक्ति से सम्पन्न ‘कृत्या’ जिस साधक को सिद्ध हो जाय, उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। कृत्या सिद्ध साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। आपने कभी सोचा है, कि आप का उत्तर ‘हां’ में क्यों नहीं मिला, क्योंकि दुःख तो जीवन का अभिन्न अंग हैं, किसी न किसी रूप में व्यक्ति के साथ-साथ कदम से कदम मिला कर चलता रहता है—- कभी कम हो जाता है, तो व्यक्ति थोड़ी राहत महसूस करने लगता है— कृत्या अपने आपमें पूर्णतः मारण प्रयोग है। एक बार यदि इसका प्रयोग कर दिया जाय, तो सामने वाले व्यक्ति के साथ ही साथ उसके आस-पास के व्यक्ति भी घायल हो जाते हैं, चाहे वह कितना ही बड़ा सिद्ध योगी या तांत्रिक हो। कृत्या चौंसठ प्रकार की होती है। इसमें संहारिणी कृत्या सर्वाधिक उग्र और विनाशकारी होती है। यदि कोई साधक इसका प्रयोग कर दें, तो सामने वाले का बचना तभी सम्भव है, जब वह भी संहारिणी कृत्या प्रयोग जानता हो। संहारिणी कृत्या को खेचरी कृत्या द्वारा ही नष्ट किया जा सकता है।
कृत्या सिद्धि सहायक इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है, कि गृहस्थ साधक इसकी साधना नहीं कर सकता है। मारण प्रभाव से युक्त होने बाद भी कृत्या गृहस्थ साधक के लिए कई सृजनात्मक प्रभावों से भी युक्त हैं-
1- कृत्या साधना को सम्पन्न करने के बाद साधक में आशीर्वाद व शाप देने की अद्भुत क्षमता प्राप्त हो जाती है।
2- कृत्या साधना के द्वारा मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण सिद्ध हो जाता है।
3- कृत्या सिद्ध होने पर साधक आत्मिक रूप से बलशाली व शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला बन जाता है।
4- कृत्या सिद्ध किया हुआ साधक किसी असाध्य रोग से ग्रसित व्यक्ति को यदि कृत्या मंत्र से अभिमंत्रित जल पिला दें, तो वह रोगी पूर्णतः रोग मुक्त हो जाता है।
5- कृत्या सिद्ध करने के बाद साधक पर मारण, वशीकरण या अन्य किसी भी कृत्या के तांत्रिक प्रयोग का असर नहीं होता है।
कृत्या साधना सिद्ध करने के लिए अमावस्या की रात्रि को सर्वश्रेष्ठ व सिद्ध समय कहा जाता है। इस साधना को कृपया पत्रिका के वही साधक करें, जिन्होंने इसे सिद्ध करने की गुरु आज्ञा प्राप्त की है या इससे सम्बन्धित विशेष दीक्षा प्राप्त की है, क्योंकि इस तीक्ष्ण साधना में जरा सी भी गलती साधक के लिए हानिप्रद सिद्ध होगी।
यह साधना 11 दिन की साधना है साधक काली धोती पहने व काले रंग के आसन का प्रयोग करें। इस साधना को करने में निम्न सामग्री आवश्यक है पंच महामंत्रों से अनुप्राणित शिव शक्ति साधना से सिद्ध ओर ब्रह्मप्राणश्चेतना युक्त ‘कृत्या तेजक’ तथा ‘कृत्या माला’। यह साधना रात्रि में 10 बजे के पश्चात् किसी भी अमावस्या को दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके आसन पर बैठें और संकल्प करें कि मैं अपने जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या में सहायता प्राप्त करने के लिए 11 दिन का अनुष्ठान करने का संकल्प लेता हूं।
इसके बाद बाएं हाथ में जल लेकर शरीर पर दस बार देह रक्षा मंत्र बोल कर जल छिड़के-
इसके बाद दशों दिशाओं में बाएं हाथ से अक्षत फेंकते हुए दिशा बन्धन करें, जिससे साधना में कोई व्यवधान न आए-
फिर पूज्य गुरुदेव के चित्र का और कृत्या तेजक का पंचोपचार पूजन कर, मूल मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें।
आसन पर बैठने के बाद बीच में उठें नहीं। साधना काल में यदि कोई आवाज सुनाई दें, तो उसकी ओर ध्यान न दें। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करें।
ग्यारहवें दिन तेजक को अपने गले में पहनें या बांह पर बांध लें। साधक इसे तीस दिन तक अवश्य पहने, जिससे कृत्या का तेज साधक के शरीर में रम सके और साधक सफलता पूर्वक इसका प्रयोग कर सके।
एक माह के बाद समस्त सामग्री नदी में विसर्जित कर दें। इस साधना में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन व एक समय भोजन करना आवश्यक है।
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