तंत्र विद्या के जानकार यह अच्छी तरह से जानते हैं कि जिसने अपने जीवन में नव चण्डी साधना को अपने शरीर में स्थापित कर दिया तो उसके जीवन में कोई भी कार्य रूकता नहीं है, वह अपना जीवन अविरल गति से चलाता हुआ अपने आप में शक्ति को स्थापित कर देता है और जहां शक्ति स्थापित होती है वहां साधक के चेहरे का ओज, विचारों की प्रवृत्ति और कार्यशैली ही बदल जाती है। जीवन में कार्य अवरूद्ध होते है तो मनुष्य में हताशा निराशा आती है और उसे अपना जीवन रसहीन लगने लगता है। जीवन का कोई अर्थ नहीं है। सब मानसिक चिन्ताओं को पूर्ण रूप से हटाने हेतु इस यंत्र को धारण करने से किसी भी प्रकार का भय व्यक्ति को ग्रस्त करता ही नहीं है। दुर्गाष्टमी 27 मार्च को प्रातः 7:11 से 8:55 तक कभी भी अपने पूजा स्थान में बैठकर यंत्र का सक्षिप्त पूजन कर अपने गले में धारण करें।
मंत्र
।। ऊँ ह्रीं नवचण्डी शक्ति प्राप्यर्थे ह्रीं फट्।।
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