इसी प्रकार यदि इन भावों में पाप ग्रह जैसे शनि, राहु, केतु, सूर्य आदि स्थित हों, तो ये मंगल ग्रह के परिहार है
मंगल दोष वास्तव में एक विनाशकारी दोष है और यह लड़के अथवा लड़की के दाम्पत्य जीवन को क्षीण कर देता है। इस दोष का विचार वर तथा कन्या के विवाह से पूर्व कर लेना चाहिए। ज्योतिष शास्त्रों में मंगल दोषयुक्त वर अथवा कन्या का विवाह बिना मांगलिक कन्या अथवा वर से करने हेतु निषेध बताया गया है और मांगलिक वर का विवाह मांगलिक कन्या के साथ किये जाने का ज्योतिष शास्त्र सम्मत विचार है। किन्तु आज के समय में ऐसा सम्भव है? क्या मांगलिक लड़की अथवा लड़के को मांगलिक जीवन साथी न मिलने से अविवाहित रहना पड़ेगा?
प्राचीन समय में ज्योतिष के दृष्टिकोण से जन्म चक्र की गणना सूक्ष्मता पूर्वक की जाती थी और प्रायः सभी लोगों के जन्मचक्र निर्मित किये जाते थे, किन्तु आज की स्थिति बदल गई है। ज्योतिष गणना कसौटी पर उतरे यह आवश्यक नहीं है, क्योंकि इसमें सूक्ष्मता के साथ-साथ जन्म समय आदि की शुद्धता आवश्यक है।
मांगलिक लड़का अथवा कन्या को मांगलिक जीवन साथी न मिलने से उसके विवाह में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं और उसका विवाह सम्पन्न होना अत्यन्त कठिन हो जाता है। कभी-कभी जन्म चक्र के सही मिलान न होने के कारण और एक की कुण्डली में मंगल का प्रभाव होने के कारण दाम्पत्य सुख क्षीण हो जाता है। यहां तक कि वैधव्य जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
वस्तुतः मांगलिक दोष क्या है? यह भी एक पूर्वजन्म कृत अनन्त कर्मो का फल है, क्योंकि जो संचित और प्रारब्ध के कर्म कहे जाते हैं, उनके शुभ और अशुभ दोनों ही सम्बन्ध, अज्ञात और अविच्छिन्न हैं, जो हमारे जीवन में पूर्वजन्मकृत दोष के रूप में इस तरह के घटनाक्रम जुड़ जाते हैं और हमारा जन्म भी उसी अनुरूप समय काल के अनुसार होता है, जिससे हमें इतना कष्टमय जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
आज के युग में ज्यादातर परिवार, लड़के व लड़कियां पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करने लगे हैं और अपने धर्म एवं रीति-रिवाज को ज्यादा मान्यता नहीं देते हैं, जिससे वे अपनी संस्कृति के गूढ़ ज्ञान के लाभ से वंचित हो गए हैं। उनका जीवन अत्यन्त कष्टप्रद हो गया है, क्योंकि उचित मार्गदर्शन का अभाव होने से उन्हें जीवन के गूढ़ सूत्रों का ज्ञान नही हो पाता है।
अतः ज्यादातर लोग जन्म चक्र नहीं बनवाते हैं अथवा इसे इतना महत्व नहीं देते हैं और विवाह के सम्बन्ध में लोग जन्म चक्र मिलाने की अपेक्षा लड़का तथा लड़की एक दूसरे को पसन्द करते हैं, इसी से सम्बन्ध तय कर देते हैं, किन्तु भविष्य मे उनके दाम्पत्य जीवन में क्या घटित होगा, यह किसी को मालूम नहीं रहता है।
हमारे ऋषियों ने मानव जीवन के विकास से लेकर रक्षा-सुरक्षा आदि तक के सूत्र सूक्ष्मता पूर्वक स्पष्ट किये हैं, जिससे भविष्य में घटने वाली घटनाएं स्पष्ट होती हैं, जिसे व्यक्ति उसका निदान पूर्व में कर लेने में सक्षम हो पाता है। चिकित्सा विज्ञान ने भी पुरूष अथवा महिला के रक्त की जांच करने पर यह स्पष्ट कर दिया है, कि रक्त ग्रुप में आर एच फैक्टर धनात्मक तथा आर एच फैक्टर ऋणात्मक होने से यदि वे दाम्पत्य सूत्र में बंध जाते है अर्थात उनका विवाह होने के उपरान्त उन्हें सन्तान नहीं होती है और साथ ही यदि सन्तान होने की संभावनाएं बनती हैं, तो बच्चे के जन्म पर या जन्म से पूर्व बच्चे के साथ-साथ गर्भवती महिला के जीवन को भी खतरा उत्पन्न हो जाता है।
तात्पर्य यह हुआ, कि दम्पति में यदि एक का रक्त ग्रुप नेगेटिव तथा दूसरे का पोजेटिव हो, तो उनका वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं हो सकता है। इससे स्पष्ट है, कि रक्त ग्रुप धनात्मक तथा ऋणात्मक के लड़के तथा लड़की का विवाह एक दूसरे के साथ नहीं करना चाहिए। रक्तग्रुप में धनात्मक, ऋणात्मक प्रक्रिया भी मंगल दोष को स्पष्ट करती है, क्योंकि मंगल ग्रह रक्त से संबन्धित ग्रह है।
दीक्षा का तात्पर्य है दक्ष होना, सक्षम होना, पूर्ण होना। कार्य सम्पन्न होने के लिए दीक्षा शिष्य की निधि है, जो गुरू द्वारा प्रदत्त शक्तिपात क्रिया के माध्यम से प्राप्त होती है और जिससे शिष्य जिस कार्य हेतु वह दीक्षा प्राप्त करता है, उसमें निपुणता प्राप्त कर लेता है, क्योंकि यह सफलता प्राप्त करने का एकमात्र लघु उपाय है।
दीक्षा जीवन में उन्नति की कुंजी और एक वरदान है। किसी अद्वितीय व्यक्तित्व और सद्गुरू में इतनी क्षमता होती है, जो सहजता से इसे प्रदान कर सकते हैं। दीक्षा के माध्यम से जीवन के सभी आयामों को प्राप्त किया जा सकता है।
मंगली दोष निश्चित तौर पर जीवन में अनेक विपत्तियां, विसंगतिया, न्यूनतायें और अभाव लाता है। शरीर रोग ग्रस्त रहता है और यदि शरीर निर्बल और कृष्काय सा है तो धन दौलत सब बेकार है, इसका कोई प्रयोजन नहीं है। मंगली दोष निवारण दीक्षा एक प्रकार से शिष्य का नया जन्म है। इस क्रिया द्वारा शिष्य के आन्तरिक अर्थात सूक्ष्म तथा बाह्य देह में व्याप्त दोष समाप्त किया जा सकता है। यह दोष दीर्घ काल मे भी समाप्त हो सकता है और अल्पकाल में भी समाप्त हो सकता है। इस दीक्षा को शिष्य सात चरणों में एक-एक चरण क्रमशः प्राप्त कर सकता है।
ज्योतिष मर्मज्ञ तो इस दोष के निवारण के सम्बन्ध में मौन हो जाते हैं और बात स्पष्ट भी है, कि विवाह जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय है और इसे हल्केपन से नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे लड़के अथवा लड़की के पूरे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। मंगली दोष के कारण विवाह में बाधाएं आती हैं और कभी-कभी दोष इतना प्रबल होता है, कि विवाह योग ही नहीं बनता और यदि योग बनता भी है, तो विवाह के होते ही उनका जीवन दुर्भाग्य और बोझ लगने लगता है। उसके जीवन के सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं और समाज में उसे अभिशाप का पात्र माना जाता है और हर समय उसका उपहास उड़ाया जाता है, इस तरह का दुर्भाग्य उसके साथ जुड़ा रहता है।
ऐसी स्थिति में मंगली दोष निवारण दीक्षा प्राप्त करना उस युवक अथवा युवती के जीवन के लिए नवीन सृजन का कार्य करती है।
जीवन के इन दोषों को पूर्णतया से समाप्त करने के लिए यह अति आवश्यक है, कि हम सद्गुरू से ऐसी दुर्लभ दीक्षा प्राप्त कर इन दुर्घटनाओं, दुःख आदि का निवारण करें। मंगली दोष निवारण दीक्षा मस्तिष्क पर पड़ी दुर्भाग्य की रेखा को मिटा देने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है, जिसे प्राप्त कर शिष्य अपना गृहस्थ जीवन को संवार सकते है। इस दीक्षा को प्राप्त करने से शिष्य के समस्त पूर्व जन्मकृत पापों, दोषों का नाश सम्भव है और जो विडम्बना उसे गृहस्थ जीवन में भोगनी होती है, वह नहीं भुगतनी पड़ती है।
प्रत्येक स्त्री चाहती है, कि वह सौभाग्यवती बनी रहे। बड़े बुजुर्ग भी उसे आशीर्वाद देते समय ‘सौभाग्यवती भव्’ कहते हैं। पुरूष भी यही चाहता है, कि उसकी पत्नी स्वस्थ रहे, उसका साथ निभाए और दाम्पत्य जीवन सुखमय हो। और यह तभी सम्भव है, जब प्रत्येक दम्पति को जीवन में भविष्य के लिए सद्गुरू का संरक्षण प्राप्त हो।
वंश वृद्धि के लिए संतान होना आवश्यक माना गया है। वैसे भी विवाह के पश्चात् पति-पत्नी को एक युग्म के रूप में ही देखा जाता है। संतान होने से परिवार भरा-पूरा लगता है और जीवन में पूर्णता का भी आभास होता है। मैंने यह अनुभव किया है कि जिन पति-पत्नियों की कुण्डली में मंगल दोष होता है अर्थात् दोनों में से एक मंगली होता है तो पारिवारिक जीवन में तो तनाव आता ही है साथ ही साथ या तो संतान होती ही नहीं है और यदि होती है तो विवाह के पश्चात् बहुत अधिाक विलम्ब से। इसके अलावा मंगल दोष के कारण गृहस्थ जीवन भी रसमय, सुखमय नहीं हो पाता है। छोटी-छोटी बातों के कारण पति-पत्नी में वैचारिक मत-भेद उभर जाते है, साथ ही यौन जीवन भी पूर्ण रूप से श्रेष्ठ नहीं रहता है।
जीवन में अभाव की पूर्ति के लिए मंगल दोष निवारण दीक्षा प्राप्त करना श्रेयष्कर होता है। चैत्र नवरात्रि और चन्द्र ग्रहण के शुभ अवसर पर आप अपने किन्हीं तीन मित्रें को पत्रिका सदस्य बनाने पर आपको यह दीक्षा उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी। जिससे जीवन में जो दोष हैं वे दूर हो जायें और गृहस्थ जीवन सुखमय बन जाए।
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