प्राचीन काल से आधुनिक काल तक कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं, जिसका कोई शत्रु न हो। मानव जीवन में पग-पग पर शत्रु पैदा होते हैं और जिनके बीच खड़े रहकर अपनी मंजिल की ओर बढ़ना, साधारण मनुष्य के लिए कठिन और दुष्कर होता है, क्योंकि कौन सा शत्रु कब उस पर प्रहार कर दें, कहा नहीं जा सकता, इसीलिए वह दुविधा ग्रस्त होने के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहता है, और इन्हीं सब कारणों से उसे अपने जीवन में दुःख तकलीफ, परेशनी, पीड़ा सहन करनी पड़ती है, वह अपने जीवन में हताश, निराश हो जाता है।
इस वैमनस्यता के युग में आज हर कोई शक्तिशाली बनने का प्रयास करता है। पौराणिक काल से अब तक यही होता रहा है, कि जो साधारण, कमजोर, अस्वस्थ, निर्बल प्राणी होते हैं, उन पर हर कोई प्रहार करने की कोशिश करता है, और किया भी है, पुराने जमाने में वह वर्ग, जो अपने-आप में शक्तिशाली होने के कारण उस समय उच्च वर्ग माना जाता था, जन सामान्य पर अत्याचार कर, उन पर आधिपत्य स्थापित कर उन्हें अपना गुलाम बना लिया करता था।
अगर मानव इसी प्रकार का भय ग्रस्त जीवन जीयेगा, तो वह जीवन में कभी भी उन्नति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता, उसके मन में प्रश्न उठते ही हैं, कि कोई उसके विरूद्ध उन्नति के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करने का षड़यंत्र तो नहीं रच रहा? उसे किसी मुकदमे में फंसा न दे, कहीं वह घर में अशांति उत्पन्न करने की कोशिश न कर रहा हो या व्यापार में हानि न पहुंचा रहा हो अथवा कोई तुम्हारे मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश न कर रहा हो? ऐसे क्षणों में मानव मस्तिष्क के अधिक विचार शील हो जाने के कारण, उसके मन में विभिन्न प्रकार की चिन्ताएं व्याप्त हो जाती हैं, अतः वह ठीक ढंग से कार्य करने में असमर्थ ही रहता है, और शत्रुओं को कैसे परास्त किया जाए निर्णय न ले पाने के कारण, उसका जीवन निराशाजनक एवं संकट ग्रस्त हो जाता है, और यही उसकी त्वरित मृत्यु का कारण भी बनता है।
जीवन के विभिन्न पक्षों में शत्रु भिन्न-भिन्न रूप धारण कर मानव के सामने खड़े हो जाते हैं, केवल वही मनुष्य उन शत्रुओं से मुक्ति पा सकते हैं, जिनमें उन्हें परास्त करने की क्षमता होती है, किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जो उन परेशानियों व बाधाओं से जितना निकलने का प्रयास करते हैं उतना ही उलझते ही चले जाते हैं, इसका कारण उनकी निर्बलता, शक्तिहीनता ही है।
‘ब्रह्मास्त्र प्रयोग’ के द्वारा ऐसे व्यक्ति अपनी निर्बलता, कायरता व शक्तिहीनता को कम कर सकते है, और ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है, शक्तिहीन को शक्तिशाली बनने में कोई बुराई नहीं है, यह तो उन्हें आन्तरिक शक्ति प्रदान करने वाला एक तीक्ष्ण अस्त्र है, जिससे वह अपनी परेशानियों पर पूर्ण विजय प्राप्त कर सके और अपने जीवन में शांति व सुख की प्राप्ति कर सके।
जिन व्यक्तियों के पास ताकत नहीं है, बल नहीं है, कोई शक्तिशाली गुट भी नहीं है, जिसके द्वारा वे उन शत्रुओं से अपना बचाव कर सकें, उनके लिए यह प्रयोग ‘ब्रह्मास्त्र’ को प्राप्त करना ही है, जो उसके जीवन के समस्त शत्रुओं का विनाश करने और उसे पूर्ण श्रेष्ठमय आनन्दयुक्त जीवन देने में सक्षम है।
मानव के सबसे बड़े शत्रु तो उसकी देह के साथ ही अवगुणों के रूप में उससे चिपके रहते हैं, मानव के सबसे बड़े शत्रु तो यही होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह ये सभी उसे हर पल परेशानियां, तनाव, चिन्ता तथा अभावयुक्त जीवन ही प्रदान करते हैं, जो उस पर हर क्षण प्रहार करते ही रहते हैं, जिससे मानव जीवन दुःखदायक हो जाता है, ये शत्रु कभी रोग के रूप में तो कभी आर्थिक संकट के रूप में पग-पग पर आड़े आते हैं। इन उलझनों एवं बाधाओं को दूर करके ही एक श्रेष्ठ सुखमय जीवन प्राप्त किया जा सकता है।
इन बाधाओं, कष्टों, परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है, यदि इस विशिष्ट ‘ब्रह्मास्त्र वगलामुखी साधना’ को एक बार अपने जीवन में सिद्ध कर लिया जाए, क्योंकि ‘ब्रह्मास्त्र प्रयोग’ एक गोपनीय प्रयोग है, जिसे पौराणिक काल में संकट के समय प्रयोग किया जाता था, जो अत्यन्त ही तीक्ष्ण और शीघ्र फलदायक सिद्ध होता था, जिसका प्रहार कभी खाली नहीं जाता था, जिसका प्रभाव अचूक होता था और आज भी अचूक है। इसका प्रयोग कर शत्रुओं पर विजय निश्चित रूप से प्राप्त होती है।
आज के इस युग में जब सभी भौतिकता के पीछे पागलों की तरह दौड़ रहे हैं, दुःखी, पीडि़त व चिन्ताग्रस्त जीवन जी रहे हैं, उनके लिए यह प्रयोग सर्वश्रेष्ठ कहा जा सकता है, क्योंकि यही एक मात्र साधना जीवन के समस्त शत्रुओं का विनाश कर, अभाव मुक्त जीवन प्राप्त कर सकने में समर्थ हैं। शत्रुओं को पराजित कर ईट का जबाब पत्थर से दे सके, इतना शक्तिवान, सामर्थ्यवान, बलशाली वह इस प्रयोग के द्वारा ही बन सकता है।
इस साधना को सम्पन्न कर वायुमण्डल में व्याप्त विशेष प्रकार की ‘प्राण-शक्तियां’ उसे स्वतः ही प्राप्त होने लगती है, जो कि उसके लिए कवच के समान होती है, फिर वह जीवन में दुःखों का सामना नहीं करता, फिर शत्रु उस पर हावी नहीं हो सकते, फिर बाधाएं व उलझने उनको नहीं घेर सकती, फिर वह जीवन में कभी पराजित नहीं हो सकता, क्योंकि इस साधना का मूल आधार ब्रह्म की दिव्य शक्ति है।
ब्रह्मास्त्र सिद्धि 22 अप्रैल या किसी भी मंगलवार को रात्रि 10 बजे के पश्चात् स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर संक्षिप्त गुरू पूजन करें, फिर एक बाजोट पर गहरे पीले रंग का वस्त्र बिछाकर, उस पर रक्त चन्दन से त्रिशूल बनाकर ब्रह्मास्त्र शक्ति युक्त ‘वगलामुखी यंत्र’ को स्थापित कर दें, उस यंत्र का कुंकुंम, अक्षत से संक्षिप्त पूजन कर, धूप और दीप जला कर यंत्र के ठीक सामने रखें, दीपक में तिल का तेल होना चाहिए, इसके पश्चात् हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि मैं अमुक (अपना नाम लें), अमुक (शत्रु का नाम लें) शत्रु से सुरक्षा हेतु इस ब्रह्मास्त्र बगलामुखी साधना सम्पन्न कर रहा हूं, ऐसा कह कर उस जल को जमीन पर छोड़ दें, हाथ को जल से धो लें।
इसके पश्चात् सर्वप्रथम गुरू मंत्र की 1 माला मंत्र जप करें, फिर विद्युत शक्ति युक्त ‘ वगलामखी माला’ से निम्न मंत्र की 7 माला 5 दिन तक नित्य जप करें।
मंत्र जाप की समाप्ति के पश्चात् पुनः गुरू मंत्र की 1 माला जप कर साधना में सफलता के लिए गुरूदेव से प्रार्थना करने और गुरू आरती सम्पन्न करें। छठे दिन समस्त सामग्री को उस बाजोट पर बिछे कपड़े में लपेट कर नदी में विसर्जित कर दें।
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