जिस शंख का मुख दक्षिण भाग की ओर खुलता है, उसे दक्षिणावर्ती शंख कहते हैं। वैसे समुद्र से विभिन्न रंगों व आकारों के शंख आसानी से प्राप्त हो जाता हैं, परन्तु इनमें से अधिकतर शंख वामावर्ती ही होते हैं। दक्षिणावर्ती शंख कभी-कभी मछुआरों के हाथ लग जाता है, तंत्र साधनाओं में इसका अत्यधिक महत्व है। इसे लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति समुद्र से ही होती है और लक्ष्मी की भी उत्पत्ति समुद्र से ही मानी गई है। इसलिए इसको ‘लक्ष्मी सहोदर’ माना जाता है।
वे साधक सौभाग्यशाली ही होते है जिसके घर में दक्षिणावर्ती शंख होता है, उसके घर में लक्ष्मी का निवास बना रहता है। दरिद्र व्यक्ति के हाथ में भी अगर दक्षिणावर्ती शंख आ जाता है, तो उसके जीवन में समृद्धि और सम्पन्नता कुछ ही दिनों में प्राप्त होनी प्रारम्भ हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को अचानक और अप्रत्याशित रूप से धन प्राप्त होने लगता है। यश, मान-सम्मान की जीवन में कोई कमी ही नहीं रहती।
शंख जितना बड़ा होगा, उतना ही अधिक फलदायक होता है। कम से कम जिस शंख में आधा या पाव किलो पानी समा सके, ऐसे शंख पर साधना करने पर पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
दक्षिणावर्ती शंख समुद्र से निकलते समय निर्मल होता है। यह शंख महत्वपूर्ण और प्रभावयुक्त तभी होता है, जब यह मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो और विशेष मंत्रों से सम्पुटित चैतन्य दक्षिणावर्ती शंख का ही प्रयोग साधना में शीघ्र फलदायक होता है।
दक्षिणावर्ती शंख को लाल वस्त्र बिछा कर उस पर स्थापित करे और उसी लाल कपड़े में लपेट कर हमेशा ही रखना चाहिए। अब शंख के विभिन्न उपयोग प्रस्तुत हैं-
इस शंख की संरचना ही कुछ इस प्रकार से हुई है, कि इसमें जल रखने पर उस जल में शंख के सहयोग से कुछ विशेष प्रतिक्रिया होती है, जिससे वह जल विशेष प्रभावयुक्त हो जाता है।
1- यदि बड़े आकार वाले दक्षिणावर्ती शंख में रात्रि को सोने से पूर्व जल पूरा भर कर रख दें, तथा प्रातः उस जल को अपने स्नान करने वाले पानी में मिलाकर स्नान करें। आप स्वयं अनुभव करेंगे कि कुछ दिन ऐसा करने से व्यक्ति को यदि किसी प्रकार के चर्म रोग हों तो वह समाप्त हो जाते हैं।
2- यदि किसी व्यक्ति के शरीर पर सफेद दाग हो तो वह दक्षिणावर्ती शंख में बारह घण्टे तक जल भरकर रखें, फिर जल को शरीर पर हुए सफेद दागों पर लगाएं और ऐसा कुछ समय तक करें, तो कुछ सप्ताह में ये सफेद दाग समाप्त हो जाते हैं तथा वहां नई चमड़ी निकल आती है।
3- यदि किसी साधक के पेट में तकलीफ हो या आंतो में सूजन हो या जख्म हो, तो दक्षिणावर्ती शंख में इस प्रकार बारह घण्टे तक जल रखे और बारह घण्टे बाद जल का एक चम्मच नित्य पान करने से पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं।
4- बारह घण्टे वाला शंख जल यदि आधे भाग में सामान्य जल से मिलाकर प्रातः काल आंखों पर छबके मारने से आंखें निरोग, स्वस्थ और तन्दुरूस्त हो जाती हैं। कुछ समय इसके नियमित अभ्यास से नजर का चश्मा भी उतर जाता है और आंखें सामान्य हो जाती हैं।
दक्षिणावर्ती शंख लक्ष्मी का विशेष प्रिय आभूषण है। जिसके घर में या पूजा स्थान में इस शंख की स्थापना होती है, उसके यहां लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। इस प्रकार के शंख को यदि अपने कारखाने में या फैक्टरी में स्थापित किया जाए, तो स्वतः ही उसकी दरिद्रता समाप्त हो जाती है और आर्थिक उन्नति होने लगती है। इस शंख को विशेष रूप से दारिद्रय निवारक कहा जाता है, तथा इसके स्थापन मात्र से ही व्यापार वृद्धि होने लगती है।
1- यदि तनाव के कारण या किसी भी प्रकार से आपके चहरे पर झुर्रियां आ गई है तो प्रातः स्नान के बाद शरीर को सूती वस्त्र से पोंछ लें, फिर शंख को अपने चेहरे पर हल्के-हल्के घिसे तो धीरे-धीरे चेहरे की झुर्रियां समाप्त होनी प्रारम्भ हो जाती हैं और चेहरे की कान्ति बढ़ जाती है।
2- इस शंख को पूरे शरीर पर हल्के हल्के फेरा कुछ ही दिनों तक फेरा जाए, तो पूरा शरीर स्वस्थ, सुन्दर एवं लावण्यमय बन जाता है।
3- मानसिक तनाव के कारण चेहरे पर कभी-कभी आंखों के नीचे काले काले दाग बन जाते हैं, जिससे चेहरे की सुन्दरता समाप्त हो जाती है। यदि इस शंख को नित्य प्रातः 5 बजे उठकर आंखों के नीचे धीरे-धीरे फेरा जाए और इस प्रकार कुछ दिनों तक करें तो ये दाग समाप्त हो जाते हैं।
आकर्षण साधना वस्तुतः सम्मोहन का ही एक स्वरूप है जिसमें दो व्यक्तियों के बीच उपस्थित मतभेद समाप्त हो जाता है, उनका मन एक दूसरे के अनुकूल हो जाता है।
1- यदि आपके ऑफिस में आपके साथ कार्य करने वाले व्यक्ति आपका सहयोग नहीं करते हैं।
2- यदि आपके कार्यालय में छोटी-छोटी बात से अनबन हो जाती है।
3- यदि आपके अधिकारी आपसे बिना वजह नाखुश रहते हैं।
4- यदि आपके अपने किसी मित्र या स्वजन से अनबन हो गई है तो आप इस आकर्षण साधना को सम्पन्न कर आपस में अनुकूलता स्थापित कर सकते हैं।
यह साधना आप 4 मई को सम्पन्न करने का विशेष दुर्लभ योग स्वाति नक्षत्र के साथ निर्मित हो रहा है इस दिन दक्षिणावर्ती शंख स्थापना दिवस के साथ बुद्ध पूर्णिमा भी है, तांत्रोक्त दृष्टि से यह योग विशेष सिद्धिदायक है। साधक प्रातः काल उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर अपने सामने ‘दक्षिणावर्ती शंख’ को रखें और उस पर कुंकुंम लगाएं। इसके समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
अब दायें हाथ में लक्ष्मी आकर्षण युक्त ‘वैजन्ती माला’ ले लें तथा बाएं हाथ से अक्षत का एक एक दाना शंख में अर्पित करते जाएं। प्रत्येक बार अक्षत अर्पित करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
इस प्रकार नित्य 5 माला जप करना है और कुल 11 दिन तक करना है। टूटे हुए अक्षत के दानों का प्रयोग न करें। नित्य मंत्र जप पूरा हो जाए तो चावल के दानों को उसी शंख में रखकर लाल कपड़े में लपेट कर रख दें, जिससे अक्षत का एक भी दाना गायब न हो। बारहवें दिन शंख को अक्षत समेत बांध कर किसी नदी में विसर्जित कर दें।
यह शंख लक्ष्मी प्राप्ति, आर्थिक उन्नति, व्यापार वृद्धि आदि में विशेष रूप से सहायक है। कर्जा उतारने में तो यह प्रयोग अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं प्रभावयुक्त होता है। किसी भी पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर इस शंख को लाल वस्त्र पर स्थापित करें। फिर शंख पर कुंकुंम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाये। अब दायें हाथ से अक्षत का एक एक दाना शंख में अर्पित करते जायें और प्रत्येक अक्षत के साथ निम्न मंत्र का उच्चारण करते रहें।
दो घण्टे तक मंत्र का जप करें। अगले दिन पुनः इसी मंत्र का जप करें। इस प्रयोग में दिन की कोई निर्धारित अवधि नहीं है। जब तक शंख पूरा भर जाए, तब मंत्र प्रयोग बंद कर दें और चावल के दानों के साथ शंख को लाल वस्त्र में बांध कर अपने घर के पूजा स्थान में रख दें या कारखाने, फैक्ट्री अथवा व्यापारिक स्थान पर स्थापित कर दें।
यह सौभाग्यशाली शंख वहां जब तक रहेगा, तब तक इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में निरन्तर आर्थिक उन्नति होती रहेगी। साधक पर किसी भी प्रकार का कोई ऋण है,तो भी इस साधना से उतर जाता है और साधक हर दृष्टियों से उन्नति करता हुआ पूर्ण भौतिक सुख प्राप्त करता है।
यदि किसी शत्रु ने दुकान या व्यापार पर कोई प्रयोग कर दिया है अथवा टोने-टोटके से व्यापार बांध दिया है अथवा परिवार पर किसी प्रकार का तांत्रिक प्रयोग करवा दिया है तो इस प्रयोग द्वारा वह सभी प्रयोग दूर हो जाते है तथा जीवन में पुनः अनुकूलता प्राप्त हो जाती है।
किसी पूर्णिमा के दिन प्रातः 11 बजे से पूर्व अपने सामने सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर प्राण प्रतिष्ठायुक्त लघु दक्षिणावर्ती शंख स्थापित कर दें। उसकी पीठ पर कुंकुंम से निम्न यंत्र का अंकन करें। फिर दिन भर उस शंख को उसी स्थान पर खुला रहने दें। दूसरे दिन उसी समय शंख को साफ जल में धोकर, वह जल किसी लोटे में ले लें। इस जल को यदि घर में, दुकान में, कार्यालय में अथवा अपने शरीर पर छिड़कें तो वहां पर किया हुआ टोना-टोटका दूर हो जाता है तथा जो भी तांत्रिक प्रयोग शरीर पर या व्यापार पर हुये हो, वे समाप्त हो जाते है।
जीवन में हम देखते है कि बहुत परिश्रम करने के बाद भी बहुत कम सफ़लता मिल पा रही है, व्यापार में दिन-रात मेहनत करते रहते हैं और समय आने पर उसका जो लाभ होना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है। व्यक्ति अपनी तरफ़ से परिवार में कोई कलह या मन मुटाव नहीं चाहते है, परन्तु फि़र भी प्रयत्न करने के बावजूद भी परिवार में जो सुख-शांति और आनन्द होना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है।
तब मस्तिष्क में यह प्रश्न आता है, कि जब थोड़ा सा परिश्रम करने से दूसरे व्यक्ति व्यापार में लक्ष्मी प्राप्त करके आराम से जिन्दगी व्यतीत करने में सफ़ल हो जाते है और हम नहीं कर सकते है, तो जरूर इसके पीछे कोई न कोई रहस्य है, कोई न कोई कारण है, जिसे हम भली प्रकार नहीं समझ पाते है।
मेरी अनुभव में प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में एक बार यह दक्षिणावर्ती शंख साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिये जिसे उसके जीवन में आ रही निरन्तर बाधाओं को समाधान हो सके। तथा जीवन में आनन्द, सुख, समृद्धि प्राप्ति हो सके।
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