प्रेम करने वालों ने इतना कब सोचा होगा? वह तो बस खोये तो खो ही गये, अब सच्चाई बताये कौन? फिर तो कुछ-कुछ पढ़ा जा सकता है गहराती हुई आंखों में, छुपी मुस्कराहटों से, और माथे पर बिखर आई किसी लट को हौले से उंगली के सहारे कानों के पीछे समेटती अदाओं से, अगर खामोशी पढ़नी आती हो तो! नाम सुनते ही चौंक कर देखना कि कोई उसके छुपे धन को तो नहीं छीन रहा, यह भाषा होती है किसी प्रेमी या प्रेमिका की— पर प्रेमिका शब्द आते ही व्यक्ति यों चौंक जाता है जैसे उससे कोई घोर पाप हो गया है, और वह झेंप कर आसपास कनखियों से देखने लगता है कि कहीं उसे किसी ने देख तो नहीं लिया। प्रेमिका के विषय में सारा चिन्तन एकांगी और वासना पूर्ण रहा है। प्रेमिका का तात्पर्य केवल देह तक नहीं सीमित होता। प्रेमिका तो एक पूर्ण स्वस्थ और सुरूचि सम्पन्न पुरूष के जीवन की, यदि कहा जाय रत्न जडि़त मुद्रिका है, तो गलत नहीं होगा।
प्रेमिका का तात्पर्य है जो केवल अपनी देह और भाव- भंगिमाओं से ही नहीं वरन अपने हृदय की सारी आन्तरिकता और मधुरता से किसी पर रीझ जाय, वह इस तरह से आपके जीवन के एक-एक पल पर छा जाय और इतने अधिक आग्रह से हर पल को समेट ले कि सारा मन भींग जाय। सचमुच लगे कि कोई है जो केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अपनी आन्तरिकता से मुझसे प्रेम करती है। आन्तरिकता की अनुभूति ही हृदय तक उतर कर पूर्ण तृप्ति देती है। इस जगत की स्त्री का प्रेम तो एक बार मात्र दैहिक या छल से भरा हो सकता है लेकिन अप्सरा का नहीं। अप्सरा तो एक ऐसी नारी है जो सख्त दिल वाले को भी प्रेमी बना कर छोड़े, कठोर से कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी रीझना सीख जाय। उसे फिर उसके सिवाय कोई न भाय, सोते जागते उसी की बातें, उसी की चाहते, आंखें खोई-खोई सी अधमुंदी हो जायं, उनमें कशिश और गुलाबी रंगतें उतर आंए, और ये सब पुरूष के जीवन में उतार देती है ‘अप्सरा’ उसकी प्रेमिका बनकर।
मैंने रंजिनी अप्सरा की साधना की और वह मंत्रों के विशेष प्रभाव से पहली बार में ही मेरे सामने उपस्थित हो गई। सचमुच रंजिनी अपने नाम की ही तरह रंजिनी है, खूबसूरत बड़ी-बड़ी आंखें और भोलेपन के साथ कोमलता से देखने की उसकी वह अदा कि मुझे लगा ही नहीं कि मैं पहली बार उससे मिल रहा हूं, कुछ शर्म को ओढ़कर और कुछ शर्म को छोड़कर वह आगे बढ़ी, आंखों को हल्का सा झुका कर और चाल में लज्जा की थिरकन भर कर मेरे हाथों को थाम लिया। नर्म और शीतल स्पर्श से मैं जगा और अपने को समझाया कि मैं स्वप्न नहीं देख रहा हूं। एक अनिन्द्य सौन्दर्य मेरे सामने इसरार लेकर खड़ा है। उसकी बड़ी-बड़ी आंखे बोल रही थी कि मेरे सांचे में ढले सौन्दर्य को निहारो! सचमुच सिर से पांव तक वह सांचे में ढली थी। पीछे की ओर खींच कर बांधे घने बाल, उसके छोटे से गोल मुखड़े को और भी खिला रहे थे। पीछे घुटनों तक जाती घनी चोटी जो पूरी की पूरी फूलों और गहनों से सजी थी, ऐसा लगा कि पृष्ठ का श्रृंगार उसने वेणी को फूलों से भर कर दिया हो। गोरे माथे पर छोटी सी दिप्दिप् करती सुनहरी बिन्दी और नाक में लगी हीरे की कनी के बीच में उसकी आंखे, दोनों झिलमिलाहटों से भी अधिक झिलमिला रही थी।
स्वस्थ, कपोल, छोटा सा चिबुक, पतले और कुछ नीचे झुकते अधर और नर्म और गुलाबी कानों में लटकते स्वर्ण के कुण्डल, छोटी और ऐसी कोमल गर्दन जिस पर जाती नसों की धड़कने धुकधुक करके सहमी हिरनी की तरह भाग रही थीं। कंधों और बांहों के सौन्दर्य को बिना छुपाये बस वक्षस्थल को ढांक रखा था लाल रंग के रेशमी और सुनहरे कढ़े एक वस्त्र से और पीछे पीठ पर बंधी वस्त्र की छोटी सी गांठ यों लग रही थी, ज्यों खुले तट पर कोई गुलाबी मोती आकर गिर गया हो। नाभि के नीचे घुटनों तक जंघाओं को कसे वस्त्र, जो उसकी कटि और गहरी नाभि का सौन्दर्य मुखरित कर रहा था। लाल रंग के वस्त्रों में उसका यौवन पता नहीं उसके गोरे रंग को धधका रहा था या मुझे, लेकिन उसने अपने अंग-प्रत्यंग को नख से शिख तक जिस प्रकार से सजा रखा था, वह उसके यौवन को श्रृंगारित करने के साथ-साथ उसकी सुरचिप्रियता को भी बता रहा था।
पांवों की एक-एक उंगलियों तक का श्रृंगार उसने मन लगा कर किया था। मैं एकटक मुग्ध होकर उसके श्रृंगार और श्रृंगार से भी अधिक उसकी सुरूचिप्रियता को देख रहा था, उसके व्यवहार को परख रहा था।
उसने जिस तरह से आगे बढ़कर मेरे हाथों को थामा था, उससे उसने अपना समर्पण और प्रेम को बिना कुछ कहे ही कह डाला था। उसके अंग-अंग में कांति के साथ सुगन्ध भी आ रही थी। साधना के पहले ही दिन साधना सफल होने पर किसी भी अप्सरा को केवल भविष्य के लिये वचन बद्ध किया जाता है। उसका पुष्पों का हार, ताम्बूल, इत्र देकर स्वागत किया जाता है, तो मैंने भी पहले दिन ऐसा ही किया।
साधना के दो दिन बाद तक मैं कहीं और व्यस्त रहा व रंजिनी का आवाहन कर अपनी साधना की सफलता को नहीं परख सका। तीसरे दिन एकान्त में अवसर मिलने पर जब मैं अकेलापन अनुभव कर रहा था, तब मैंने उसके आवाहन मंत्र का निश्चित संख्या में उच्चारण कर उसे बुलाया। रंजिनी अपने वचन के अनुसार मेरे सामने आकर अपनी मादक गंध के साथ बैठ गई, कुछ छेड़ने के और कुछ मोहित होने के मिले-जुले भाव लेकर वह हौले-हौले पलकें उठाकर मेरी ओर देखती रही और अपने पांव के अंगूठे से गुपचुप रहकर जमीन कुरेदती रही। मैंने निगाह उठाकर उसकी ओर देखा, आंखों में उलाहना भरी थी, जो सीधी मेरे अंदर तक उतरती चली गई। मेरे कुछ बोलने से पहले बोली-दो दिन हुये तुम्हें तो मेरे लिये समय ही नहीं था। मैं उसकी आंखों में एकटक देखा और आंखों ही आंखों में मुस्करा दिया। उसके शिकायत भरे स्वर की नर्मी से मेरे मन का तनाव कहीं हवा हो गया।
‘प्रेमिका’ का अर्थ तो मैं रंजिनी की निकटता प्राप्त होने से ही समझ सका और रंजिनी ने भी सभी बंधन तोड़ कर प्रेमिका की तरह ही मेरे साथ व्यवहार करना शुरू कर दिया। बाद में तो उसको बुलाने के लिये किसी आवाहन मंत्र की भी कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ी। वह हर पल मेरे साथ रहने लग गई। जब मैं सभी के बीच में रहता था तो वह अदृश्य रह कर मेरे साथ रहती थी और जहां जरा सा एकान्त हुआ वह झट अपने पूरे श्रृंगार के साथ मेरे सामने आकर, मेरे साथ मेरी मित्र बनकर, कभी अपने रूप और यौवन से मुझे मुग्ध कर देती थी, तो कभी तनाव में देखने पर अपनी बातचीत की अदा से बातों को कहीं और घुमा कर, और इतने पर भी मैं न मानूं तो मुझे छेड़-छाड़ कर अपनी मादक गंध से मेरे रोम-रोम को सुगन्धित कर जब तक मुझको हंसा नहीं देती थी, तब तक अलग नहीं होती थी। धीरे-धीरे मैं उसके व्यवहार से इतना भीग गया कि उसके बिना नहीं रह पाता था और यही हाल उसका भी था।
रंजिनी अप्सरा की साधना साधारण अप्सराओं की साधना की अपेक्षा कुछ परिवर्तन से की जाती है। सुगन्धित द्रव्य एवं विविध आभूषणों में तीव्र रूचि रखने वाली इस सौम्य अप्सरा की साधना सांय के प्रथम प्रहर में ही की जाती है, जिसमें साधक के लिये आवश्यक है कि वह अपने साधना स्थल को भलीभांति सजा संवार कर रखे। यदि संभव हो, तो वह कमरे में केवड़े की बाल लाकर स्थापित करे अन्यथा केवड़े के जल का छिड़काव सारे कमरे में कर दें। इस साधना में हल्के हरे रंग का विशेष महत्व है। साधक के लिये वस्त्रों का कोई बंधन नहीं, वह अपनी रूचि के अनुकूल वस्त्र धारण कर सकते है और स्त्रियां जैसे चाहे श्रृंगार कर इस साधना में बैठ सकती हैं, किन्तु आसन और सामने लकड़ी के बाजोट पर बिछाया जाने वाला वस्त्र हल्का हरा होना आवश्यक है।
यह साधना आप मोहनी एकादशी 29 अप्रैल को सांय 6 बजे से 9 बजे के मध्य सम्पन्न करें। चंदन अथवा केवड़े की सुगन्ध वाली अगरबत्ती जलाकर वातावरण को शुद्ध करें और रंजिनी अप्सरा के आवाहन व प्रत्यक्षीकरण का विशिष्ट उपाय शुभांगी रंजिनी चेतना युक्त ‘अप्सरा यंत्र’ स्थापित कर ‘रति वैजन्ती माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें। यंत्र पर किसी सुगन्धित पुष्प की पंखुडि़यों की वर्षा करें और हिना का इत्र लगायें। दीपक की इस साधना में कोई आवश्यकता नहीं है। जब मंत्र जप के उपरान्त अप्सरा प्रकट हो तो उसके साक्षात् उपस्थित होने पर उसे कोई आभूषण भेंट करें अन्यथा सामने स्थापित यंत्र पर पहले से लाकर रखी कोई सुगन्धित पुष्प माला चढ़ायें। अप्सरा साधना व्यक्ति को सिद्ध तो प्रथम बार में ही हो जाती है लेकिन वातावरण में व्याप्त किन्हीं दूषित प्रभावों के कारण इसका प्रत्यक्षी- करण नहीं हो पाता है जिसके लिये हताश अथवा निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं।
यह साधना पांच दिनों की है जो सप्ताह के किसी भी दिन प्रारम्भ की जा सकती है और श्रेष्ठ साधकों का एक मत से कहना है कि वास्तव में ही यह अप्सरा प्रथम बार में आकर सिद्ध हो ही जाती है।
यह अप्सरा साधक को हर क्षण नित्य नूतन रूप से प्रसन्न रखती है तथा उसे अपना साहचर्य प्रदान कर जीवन में आनन्द, उमंग, उत्साह भर देती है। साधक श्रेष्ठ सम्मोहक व्यक्तित्व बन जाता है, अन्य लोग उसकी ओर आकृष्ट हुए बिना नहीं रह पाते। भौतिक जीवन में वह निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर होता है।
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