मनुष्य मर ही नहीं सकता और वह आसानी से अपने जीवन के सौ साल पूरे कर सकता है, यदि उसे चिन्ताए न हो, व्यक्ति बीमार रोगग्रस्त हो ही नहीं सकता, यदि उसे चिन्ताए न हो, व्यक्ति असहाय और वृद्ध हो ही नहीं सकता, यदि उसे चिन्तायें व्याप्त न हों।
यदि सही रूप में देखा जाय तो हमारा सारा जीवन चिन्ताओं और आशंकाओं से भरा हुआ है। पग पग पर हमें चिन्तायें खाये जा रही है, स्वास्थ्य की चिन्ता, व्यापार जमाने की चिन्ता, व्यापार बढ़ाने की चिन्ता, ऋण समाप्त करने की चिन्ता, पैसों को सुरक्षित बचाये रखने की चिन्ता, संतान की चिन्ता, बीमारी की चिन्ता, राज्य कोप की चिन्ता, स्थानान्तरण की चिन्ता, पुत्री के विवाह की चिन्ता- और यदि देखा जाय तो हमारे जीवन में चिन्तायें ही चिन्तायें हैं और इन चिन्ताओं से पार पाने का कोई उपाय नहीं है।
या तो हम अपने जीवन में चिन्ताओं को दूर कर दें, चिन्ताओं को समाप्त कर दें या फिर चिन्तायें हमें समाप्त कर देगी। असमय में ही बुढ़ापा आ जाना बाल झड़ने लगना, कम उम्र में ही कनपटियों पर बाल सफेद होना, कई प्रकार के रोग व्याप्त होना, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक आदि बीमारियों से जूंझना आदि इन चिन्ताओं की वजह से ही है, चिन्ताओं की वजह से हमारा सारा जीवन भार स्वरूप रह गया है। हमारे जीवन में जो आनन्द उमंग और उत्साह होना चाहिए, वह समाप्त हो गया है। वास्तविक हंसी और अट्टाहास करना हम भूल गये है, यदि हम मुस्कराते भी है, तो नकली मुस्कराहट के साथ, यदि हम हंसते भी है तो फीकी हंसी के साथ, इसका कारण यह है, कि हमारे जीवन का जो स्त्रोत है, वह समाप्त हो गया है, हमारे जीवन का जो आनन्द है वह सूख गया है, हमारे जीवन का जो रस है वह चुक गया है।
और आज यदि हम आंख खोल कर चारों तरफ देखें तो बीमार असहाय कमजोर, और मरे मरे से लोग दिखाई देते हैं, उनके आंखों की चमक समाप्त हो गई है, उनके होठों पर मुस्कुराहट खत्म हो गई है, उनके जीवन का आनन्द रहा ही नहीं और इसीलिए वे जीवन के मध्यकाल में ही समाप्त होने लगे हैं।
और आप भी बहुत तेजी के साथ मृत्यु की ओर अग्रसर हो रहे हैं, क्योंकि यदि आप यह पढ़ते समय एक दो मिनट के लिये आंखे बंद करके विचार करें और सोचे तो सैंकड़ो चिन्ताएं आपके आस पास खड़ी अनुभव होंगी और जब तक ये चिन्ताए है, तब तक आपके जीवन में आनन्द आ ही नहीं सकता।
निश्चित रूप से ये चिन्ताए मिट सकती है, निश्चित रूप से तुम्हारा जीवन आनन्द और मस्ती से सराबोर हो सकता है, तुम्हारे होंठों पर गीत गुनगुनाये जा सकते हैं तुम्हारी आंखों में चमक आ सकती है, तुम्हारे शरीर में यौवन की कान्ति दिखाई दे सकती है, तुममें उमंग, जोश और प्रफ्रुल्लता आ सकती है, क्योंकि मैं तुम्हारी इन सारी चिन्ताओं को दूर करने की क्रिया बताने जा रहा हूं, मैं वह दीक्षा बताने जा रहा हूं जो अपने आप में महत्वपूर्ण है, जिसे देवताओं ने भी सिद्ध की है, और ऋषियों ने इसके माध्यम से पूर्ण आयु प्राप्त की है, इसके माध्यम से बुढ़ापे को दूर धकेला है और अपने जीवन का चिर यौवन मय बनाये रखा है और यह दीक्षा नृसिंहत्व शक्ति साधना जो अपने आप में भव्य, अद्वितीय और अलौकिक है।
स्त्रियों के लिये तो यह साधना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इस दीक्षा के द्वारा वे अपने जीवन में चिन्ता मुक्त हो सकती है, असमय में आने वाले बुढ़ापे को दूर धकेल सकती है, जीवन में तरोताजा बन सकती है और जीवन का असली आनन्द ले सकती है।
नृसिंह का स्वरूप अपने आप में विचित्र है, इसका आधा भाग मनुष्य का है, तो आधा भाग शेर का और यह एक संकेत है कि मनुष्य इस दीक्षा के द्वारा शेर के समान बलशाली, ताकतवान और हिम्मतवान बन सकता है, उसमें साहस और क्षमता आ सकती है, वह जोश और उमंग से आप्लावित हो सकता है, आवश्यकता है इसको पूर्णता के साथ आत्मसात करने की आवश्यकता है इस दीक्षा में विश्वास पैदा करने की और तन्मयता के साथ अपने गुरु आज्ञा के पालन की।
जब हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से पूरी पृथ्वी कांपने लगी, जब उसके अत्याचार प्रहलाद पर जरूरत से ज्यादा बढ़ गये, जब वह किसी के नियंत्रण में नहीं आ रहा था क्योंकि उसे अमृत्यु का वरदान था, तब प्रहलाद की चिन्ताएं दूर करने के लिये, समस्त प्राणियों की चिन्ताओं को समाप्त करने के लिये वैशाख शुक्ल चतुर्दर्शी को नृसिंह ने प्रगट होकर सारे लोगों को चिन्ताए दूर की, और हिरण्य कश्यप का अपने नाखूनों से वध करके प्रहलाद को पूर्ण चिन्तामुक्त किया।
सिंहत्व को धारण कर निर्भीकता, निडरता और आत्मविश्वास को प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि दैविक शक्ति के माध्यम से ही देहिक क्षमता में वृद्धि होती है जिससे आप अपने जीवन को पूर्ण क्षमता और आनन्द के साथ सभी कठिनाईयों का संहार करने हेतु आप अपने किन्ही तीन मित्रों को पत्रिका सदस्य बनाने पर आपको नृसिंहत्व शक्ति दीक्षा और साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी। जिससे आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।
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