अपने जीवन को हर दृष्टि से श्रेष्ठमय बनाने की क्रिया प्रारम्भ करने हेतु यह विशेष दीक्षा उन्हीं समर्पित साधको को प्रदान की जायेगी | जिससे उनका आने वाला समय सफलतादायक, मनोकामना पूर्ति दायक हो सके |
क्रीं शत्रु विनाशय दीक्षा
इस तीव्र प्रतिस्पर्धा के युग में व्यक्ति प्रत्येक क्षण उन्नति के लिए प्रयासरत रहता हे। किन्तु विघटनकारी तत्वों के द्वारा जीवन की शांति, सौहार्द भंग होता रहता है। एक सरल और शांत प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिये इस युग में शांति पूर्वक जीवन यापन की कल्पना करना व्यर्थ है। आज ऐसा एक भी व्यक्ति नही हैं, जिसका कोई शत्रु ना हो और शत्रु का तात्पर्य किसी मानव जाति से ही नही, वरन् काम, क्रोध, रोग, शोक, व्याधि, पीड़ा भी मनुष्य के शत्रु ही कहे जाते हैं, जिनसे व्यक्ति हर क्षण त्रस्त रहता हे।
व्यक्ति अपने जीवन के समस्त शत्रुओं को परास्त करने में समर्थ हो सके। चाहे वह शत्रु आन्तरिक हो या बाहरी उन पर विजय प्राप्त कर जीवन को सुरक्षित कर लेना ही बुद्धिमत्ता हे, क्योंकि सुरक्षित जीवन में ही हम विकास के लिए संघर्ष कर सकते हें।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर क्रीं शत्रु विनाशय दीक्षा दीक्षा और साधना आपके जीवन में संचारित की जा सकेगी।
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