आपके पास ईर्ष्या, गुस्से और निराशा के लिये समय नहीं होना चाहिये, याद रखें कि आप भगवान के स्वरूप हैं जो आप बनना चाहते हैं वह बन सकते हैं। निश्चय ही भविष्य आपके हाथ में ही है।
हर समय सकारात्मक विचारधारा बनानी ही होगी, मै कर सकता हूं, करने की क्षमता परमात्मा अपने आप देगा। जब आप यह पक्का विचार कर लेते हैं तो निश्चय ही सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं।
सफलता के बाद मिलने वाली खुशी की ओर ही अपना ध्यान न रखें। सफलता एक यात्रा है, मंजिल नहीं। सफलता तो निरन्तर करते रहने में है।
आप अपना लक्ष्य बनायें कि आप क्या प्राप्त करना चाहते हैं? उसके लिये कब, क्या और कैसे करना है? इतना सोचकर काम में डट जायें काम लगातार लक्ष्य सामने रखकर करते रहें।
आप अपनी शरीर रचना और शारीरिक शक्ति को बदल नहीं सकते लेकिन माइंड पॉवर की मदद से पूर्ण सफलता प्राप्त कर बुलंदियों की ऊचांई पर पहुंच सकते हैं।
कभी भी सन्तुष्टि भाव नहीं रखें अन्यथा आप एक तालाब बनकर रह जायेंगे। नदी और समुद्र बनने के लिये निरन्तर गतिशील होना आवश्यक है।
बहस करने से आप किसी से जीत नहीं सकते लोग हमेशा अपनी बात ही कहना चाहते हैं। अच्छे श्रोता बनेंगे तो लोग आपको अधिक चाहेंगे।
कोशिश करें कि बहस न हो, झगड़ा न हो, गुस्से से बोलते हुये अपने माथे पर टेन्शन न लायें मुस्कराते हुये बात सुनें। इस तरह आप लोगों को खुशी देंगे तो बदले में खुशी ही आयेगी।
जब भी कोई बात सुनें उस समय सामने वाले की आखों में ध्यान रखते हुये ध्यान से सुनें और सोच समझ कर जबाब दें।
हमेशा दूसरों में जो भी अच्छाई है, उसे देखने का प्रयास करें। अच्छे कार्य के लिये मित्रों, अधीनस्थों परिवार के सदस्यों को काम्पलीमेन्ट अवश्य दें।
मनुष्य जब से उत्पन्न हुआ है, वह प्रेम और काम्पलीमेन्ट का ही भूखा है।
ईश्वर आपके अन्दर स्वप्न बनाता है तो वह अवश्य जानिये कि ईश्वर की अवश्य इच्छा है कि आपकी इच्छायें पूर्ण हों। आपको तो केवल काम करना है।
मनुष्य का मस्तिष्क का पॉवरफुल कम्पुयटर है जो इसमें डालेंगे वही बाहर आयेगा। आपकी पांच इन्द्रियां हैं, देखना, सुनना, बोलना, स्वाद, गन्ध और स्पर्श। इन्हीं से सब कुछ मस्तिष्क में जाता है।
मस्तिष्कि एक थिंकिग मशीन है जो कभी सोती नहीं। जो आप सोचेंगे बोलेंगे वही तो आप बनेंगे। जब कोई काम ड्यूटी समझकर करते है तो जिन्दगी गुलाम बन जाती है और जब कोई काम अपना समझ कर करते हैं तो काम में आनन्द आता है।
सत्य ही शिव है, शिव ही गुरू है—- तो फिर देर किस बात की? इसी क्षण हमें प्रकाश की ओर ले जाने की क्रिया और प्रेरणा गुरूदेव हमें प्रदान करें।
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