भगवती तारा साधना करना अत्यधिक फलदायी है, वर्तमान समय में अपने जीवन को परिपूर्ण बनाये रखने के लिये, जीवन को प्रत्येक विपत्तियों से सुरक्षित रखने के लिये तथा मुख्य रूप से घर में सम्पन्नता बनाये रखने के लिये। इन तीन तत्वों की पूर्ति के लिये भगवती तारा की साधना महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। पूर्ण विधान से साधना सम्पन्न करने वाले साधक को जीवन पर्यन्त आर्थिक रूप से कमी का एहसास नहीं होता है, साधक की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण होती ही है।
तारा साधना आश्विन शुक्ल पंचमी या किसी भी रविवार को रात्रि 9 बजे के पश्चात् प्रारम्भ करनी चाहिये। तारा साधना वर्ष में दो बार अवश्य करनी चाहिये। साधक पहले से ही शुद्ध होकर गुलाबी वस्त्र पहनकर गुलाबी आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें। बाजोट पर गुलाबी वस्त्र बिछा दें और उस पर गुलाबी रंग से रंगे चावलों की तीन ढेरियां बना दें, इन ढ़ेरियों पर एक-एक लौंग रखें। तथा तारा धनदा अष्ट तारिणी शक्ति से सिद्ध दस महाविद्या यंत्र व भगवती तारा बाहु बीच की ढेरी पर गुलाब के पुष्पों के साथ स्थापित करें।
फिर दोनों हाथ जोड़कर श्रद्धायुक्त हृदय से भगवती तारा का ध्यान करें-
प्रत्यालढ़ पदार्पितांघ्रिशवहृद् घोरादृहासा परा,
खड्गेन्दीवरकर्तृं खर्परभुजा हूं कारबीजोद्भवा।
खर्वानील विशालपिंगल जटा जूटैकनागैर्युताः,
जाड्यं न्यस्य कपालिके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारा स्वयम्।।
दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग मंत्र बोल कर जमीन पर छोड़ दें-
अस्य श्रीतारामंत्रस्य अक्षोभ्य ऋषिः, बृहती छन्दः तारा
देवता, ह्रीं बीजं, हुं शक्ति, स्त्रीं कीलकं, अष्टतारिणी
ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।
विनियोग करने के पश्चात् भगवती तारा व यंत्र माला का संक्षिप्त पूजन करें पश्चात् अष्ट सिद्धि माला से निम्न मंत्र की 5 माला नित्य 7 दिन तक जप करें।
मंत्र जप के पश्चात् घी के दीपक से गुरू आरती और जगदम्बा आरती सम्पन्न करें।
सात दिन तक नियमित साधना क्रम को अपनायें पश्चात् यंत्र, चित्र, माला, लौंग एवं पूजा में प्रयुक्त पुष्पादि को बाजोट पर बिछे कपड़े में लपेट कर मौली से बांध दें और किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें।
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