जो अपने दम पर जीये, दुनिया उसी की कहलाती है, जो अपने जीवन में जोखिम उठा कर कार्य हाथ में लेता है, भाग्य उसी का साथ देता है, और वही अपने जीवन में सफल होता है। आप जी रहे हैं और मोहल्ले के बाहर आपको कोई पहचानता ही नहीं है, फिर ऐसा जीवन किस काम का? नये-नये कार्य करने का, नये जोखिम उठाने का उत्साह हर समय होना चाहिये तभी सड़े-गले जीवन से नवीन जीवन का निर्माण हो सकता है।
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो व्यक्ति आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं, उनके ही मार्ग में रूकावटें आती हैं, शत्रु उत्पन्न होते हैं। जो अपने जीवन को एक निश्चित गति पर कोल्हू के बैल की तरह चलने देते हैं, उसके शत्रु कैसे होंगे? जो जीवन से भाग कर छुप जाता है, उसके भी शत्रु कैसे होंगे? शत्रु तो प्रगति के सूचक हैं, इनसे घबरा कर पैर पीछे हटा लिये तो उन्नति कैसे होगी?
इतिहास उठाकर देखें तो हमें यह स्पष्ट मालूम पड़ेगा कि हमने केवल उन्हीं की पूजा की है, जो अपने शत्रुओं से लडे़ हैं और जिन्होंने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की है, चाहे वे राम हों, अथवा श्रीकृष्ण, हनुमान हो अथवा महाकाली, इनमें से प्रत्येक का जीवन असुरो पर विजय से जुड़ा है, अतः आवश्यकता है, कि अपने आपको प्रबल बनाया जाये, शत्रुओं का वीरता से सामना किया जाये और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जाये, संघर्ष कर जीवन में कुछ प्राप्त करने का आनन्द ही अनोखा होता है।
हमारा जीवन संर्घषमय जीवन है, जिसमें पग-पग पर विपत्तियों और बाधाओं का बोलबाला है, यदि हम शांतिपूर्वक जीवन बिताना भी चाहें, तब भी चारों तरफ का वातावरण ऐसा नहीं करने देता। वर्तमान में जीवन जरूरत से ज्यादा जटिल और दुष्कर बन गया है, पग-पग पर कठिनाईयां और बाधायें हैं, अकारण ही शत्रु पैदा होने लगे हैं, और उनका प्रयत्न यही रहता है कि येन-केन प्रकारेण लोगों को तकलीफ दी जाये, उन्हें परेशान किया जाये, इससे जीवन में जरूरत से ज्यादा तनाव बना रहता है।
यह सत्य है कि जीवन की भीषणताओं को समाप्त करने में भगवान भैरव की साधना के समकक्ष कोई अन्य साधना नहीं है, शत्रुहन्ता स्वरूप में उनकी सिद्धि प्राप्त करना वास्तव में जीवन का सौभाग्य ही होता है, श्मशान साधनाओं एवं उग्र साधनाओं में पूर्णता उनकी प्रसन्नता के बिना मिलना कठिन ही नहीं असंभव भी होता है किन्तु इसके पश्चात् भी मानों भगवान भैरव की व्याख्या पूर्ण नहीं होता है। भैरव साधना का एक गोपनीय पक्ष यह भी है कि जहां वे एक उग्र देव हैं वहीं अन्तर्मन में पूर्ण शांत व चैतन्य देव भी हैं जिनकी यथेष्ट रूप से उचित साधना विधि से उपासना करने पर यह संभव ही नहीं है कि उनके साधक के जीवन में किसी प्रकार का कोई भौतिक अभाव रह जाये।
काल भैरव एक ऐसे प्रचण्ड देव हैं जिनकी आराधना, साधना से व्यक्ति के अन्दर स्वतः ही अग्नि उतर जाता है, उसका सारा शरीर शक्तिमय हो जाता है, ओजस्विता एवं दिव्यता से परिपूर्ण हो जाता है और वह अपने जीवन में प्रत्येक प्रकार की चुनौती पर सबंलता से विजय प्राप्त करने की क्षमता से युक्त हो जाता है।
भगवान श्री भैरव की व्याख्या केवल विभेति शत्रुन इति भैरव अर्थात् जो शत्रुओं को भयभीत करने वाले हैं वे भैरव है ही नहीं वरन् बिभर्ति जगदिति भैरवः अर्थात् जो समस्त जगत का भरण पोषण करने वाले हैं, वे भैरव हैं। यह बात और है कि उनकी जनसामान्य में छवि एक भीषण देव के रूप में ही सुस्थापित हुई। जब समाज किसी तेजस्विता को सहन नहीं कर पाता है तो यही क्रिया होती है। जब विवेचन का क्रम स्तम्भित हो जाता है तो एक प्रकार का भोंडापन उपज आता ही है और इन सभी बातों के मूल में जो त्रुटि होती है, वह अपना ध्यान केवल लक्ष्य की पूर्ति तक केन्द्रित रखने के कारण ही होती है।
इसके उपरांत भी इस सत्य से तो कोई इन्कार नहीं कर सकता कि जीवन में भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति करना, भौतिक बाधाओं को दूर करना जीवन का प्रथम एवं अत्यावश्यक सोपान होता है जिसके अभाव में चित्त स्थिर हो ही नही सकता।
प्राचीन ग्रंथों में विवरण मिलता है कि अगर सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी यह साधना सफलता पूर्वक सम्पन्न कर लेता है, तो ऐसे व्यक्ति के जीवन में यदि अकाल मृत्यु या दुर्घटना का योग हो, तो वह स्वतः ही मिट जाता है और उसकी कुण्डली में स्थित कुप्रभावी ग्रह भी शांत हो जाते हैं। जिससे उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त होने लगता है।
ऐसे व्यक्ति का सारा शरीर एक दिव्य आभा से युक्त हो जाता है। मित्रगण हमेशा उसके चारों ओर मंडराते रहते हैं और उसकी हर बात का पालन करने के लिये तत्पर रहते हैं। शत्रु उनके समक्ष आते ही समर्पण मुद्रा में प्रस्तुत हो जाते हैं और उसकी हर शर्त स्वीकार करते हैं। वह कभी भी युद्ध, विवाद, मुकदमे आदि में पराजित नहीं होता।
काल भैरव काल के देवता हैं, अतः उनकी साधना सम्पन्न करने वाले साधक को स्वतः ही भूत-भविष्य वर्तमान का ज्ञान होने लगता है, जिससे वह पहले से ही अपने भविष्य के लिये उचित योजनायें बना लेता है। वह पहले से ही जान जाता है कि यह व्यक्ति मेरे लिये उपयोगी होगा कि नहीं, यह कार्य मेरे लिये उचित होगा या नहीं आदि। साथ ही साथ धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, वैभव उसके जीवन में उसके साथ-साथ चलते हैं। इस साधना से व्यक्ति के अष्ट पाश नष्ट होते हैं और वह पहली बार सामान्य मनुष्य जीवन से ऊपर उठ कर देवत्व की ओर अग्रसर होता है।
उपरोक्त दिवस की चैतन्यता के अनुरूप साधना चिन्तन स्वरूप में जो किसी भी गृहस्थ साधक द्वारा अवश्यमेव प्रयोग में लाने योग्य है। इस विधि की विशिष्टता है, कि जहां एक ओर से दुर्बलता, हीनता आदि की स्थितियों को समाप्त करने की साधना है वहीं दूसरी ओर पूर्ण भौतिक सुख- समृद्धि, बल, शक्ति प्रदायक साधना भी है।
इस साधना की विशेषता यह है कि यह साबर मंत्रों की चेतना शक्ति से आपूरित है। और इस साधना में प्रयोग आने वाली साधना सामग्री को शिव साबर के चैतन्य, संहारक मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठित किया गया है। जिससे इस साधना का महत्व कई गुना बढ़ गया है।
भैरव साधनायें कलियुग में जहां शीघ्र फलदायक है, वहीं साबर तंत्र की यह विशेषता है कि सीधे-सरल मंत्रों के कारण त्रुटि की संभावना नहीं होती जिससे साधक शत प्रतिशत सफलता प्राप्त करता ही है।
यह साधना 3 दिसम्बर अथवा किसी भी गुरूवार को रात्रि दस बजे के बाद काले वस्त्र पहन, साधना में प्रवृत्त हो। दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठना आवश्यक है। साबर मंत्र सिद्ध महा भैरव यंत्र व शत्रु दमन माला का सामान्य पूजन कर एक तेल का बड़ा सा दीपक जलायें और निम्न मंत्र से अभ्यर्थना करें-
इसके पश्चात् अक्षत, कुंकुम, पुष्प व जल हाथ में लेकर दीपक के समक्ष छोड़ निम्न मंत्र उच्चरित करें-
फिर मंत्रोच्चारण के साथ दीपक को प्रणाम करें-
अपने मन की इच्छाओं व उनमें आ रही बाधाओं का उच्चारण के साथ भगवान भैरव से उनकी पूर्ति की प्रार्थना कर शत्रु दमन माला से निम्न मंत्र की 2 माला मंत्र जप दीपक की लौ पर ध्यान केन्द्रित करते हुये ही करें।
मंत्र जप के पश्चात् पुनः दीपक के सम्मुख निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
श्री भैरव नमस्तुभ्यं सत्वरं
कार्यसाधक उत्सर्जयामि ते दीपं त्रयस्व भवसागरात्
मंत्राणामक्षर हीनेन पुष्पेण विकलेन वा पूजितोऽसि
मयादेव! तत्क्षमस्व मम प्रभो
ध्यान रखें, कि दीपक को बुझाना नहीं है अपितु वह जब तक जले उसे जलने देना है। दूसरे दिन सभी साधना सामग्रियों को नदी में विसर्जित कर दें।
जीवन को श्रेष्ठ रूप से जीने के लिये प्रगति में रूकावट बनी बाधाओं का निस्तारण आवश्यक है। क्योंकि बाधाओं की समाप्ति के बाद ही प्रगति के द्वार खुलेगें। और आज के भौतिकतावादी समाज में ईर्ष्या तथा हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। आज का समाज ईर्ष्यालु विचार का आदी हो गया है। भले ही वह सामने प्रशंसा करें, पर ऐसे अनेक शत्रु होते हैं जो अन्तःस मन में ईर्ष्या का भाव रखते हैं। वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति के लिये सबसे अधिक चिंता का विषय अप्रत्यक्ष शत्रु ही हैं। जिनके कुचक्रों से व्यक्ति का जीवन तहस-नहस हो जाता है। गुप्त तंत्र बाधा, ग्रह दोष, पितृ दोष, पाप-ताप, अष्ट पाश, भूमि-वास्तु दोष और अप्रत्यक्ष शत्रुओं से व्यक्ति बच नहीं पाता इनका प्रहार भी अत्यन्त कष्टदायक होता है जिससे व्यक्ति आर्थिक रूप से दीन-हीन हो जाता है। अपने जीवन में ऐसे अनेक शत्रुओं से निजात पाकर हमेशा-हमेशा के लिये प्रगति, आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने हेतु साबर तंत्र सिद्ध महाभैरव दीक्षा प्राप्त कर साधना सम्पन्न करने से प्रगति, गृहस्थ श्रेष्ठता, धन लक्ष्मी, आयु वृद्धि होती ही है।
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