यौवन का तात्पर्य है ताजगी, पुष्प पूरा खिलने से पहले जिस स्वरूप में होता है उस स्वरूप को निहारने का मन बार-बार करता है, उसमें जो बहार होती है, उसे तो देख कर ही आनन्द आ जाता है और फिर जब वह पुष्प सुगन्धित भी हो, तो फिर उसका कहना ही क्या? रूप माधुर्य और यौवन की छटा भी ऐसी ही है।
रूप गोरेपन में, तीखे-नाक नक्श में और यौवन केवल जवानी की आयु से सम्बन्धित नहीं है, यह तो भीतर उत्पन्न हुये विविध भावों का शरीर के माध्यम से प्रकटीकरण है, जो कितना ही छिपाओं, छिप नहीं सकता, जीवन के दिन रूकते नहीं है, लेकिन यदि इसमें ताजगी नहीं है, रूप नहीं है, आनन्द नहीं है, माधुर्य नहीं है, प्रेम नहीं है, पीड़ा नहीं है, तो फिर जीवन के दिन काटने के समान है। यह जीवन पूर्ण आनन्द के साथ जीया जा सकता है। जिसमें काम और रति का संयोग होकर नित्य नवीनता और मधुरता रहे।
यह आवश्यक है कि आपका जीवन दूसरों से अलग हो, इसमें प्रातः काल की शीतलता हो, भीतर ही भीतर तेज हो, वृद्धि के अणु हों, सुगन्ध हो। अनंग उपनिषद् कामदेव को पुरूष शक्ति का स्वरूप तथा रति को स्त्री शक्ति का स्वरूप माना गया है और इस सम्बन्ध में जितने ग्रन्थ, काव्य रचनायें लिखी गई हैं, उतनी रचनायें शायद ही किसी अन्य विषय के सम्बन्ध में लिखी गई हों।
संस्कृत के काव्य हों अथवा तंत्र के ग्रंथ, उनमें विवरण तो बहुत अधिक दिया गया है लेकिन यह साधना सिद्ध रूप से कैसे की जा सकती है, इसका वास्तविक स्वरूप क्या है, और इसे जीवन में कैसे उतारा जाये, इसका वर्णन बहुत कम दिया गया है।
हर कोई पुरूष जन्म से सुन्दर और आकर्षक नहीं हो सकता और हर स्त्री पूर्ण सौन्दर्यता से युक्त नहीं हो सकती, लेकिन क्या ऐसा संभव है, कि इस रूप से सिद्ध साधना की जाये कि कामदेव स्वयं पुरूष के भीतर स्थित हो जाये तथा रति स्त्री के भीतर स्थित हो जाये, जिससे रूप और यौवन आकर्षण भीतर ही भीतर बन कर प्रस्फुटित हो।
जो असंभव है, अप्राप्त है, उसे ही तो संभव करना, प्राप्त करना ही साधना सिद्धि है, और कामदेव अनंग साधना तो आधार है जीवन का। जीवन से काम को अलग कर देने का तात्पर्य है-पुष्प में से उसकी सुगन्ध को, उसकी बहार को हटा देना, उसके बिना फिर पुष्प का तात्पर्य ही क्या है? सुगन्ध और ताजगी ही तो आधार है। इसी प्रकार काम जीवन की सुगन्ध है, जिसे गलत समझना जीवन के मूलभूत आधार का निरादर करना है।
कामदेव रति साधना कौन करें?
इन सब स्थितियों में कामदेव अनंग साधना सम्पन्न करनी चाहिये। यह आनन्द पर्व साधना है, इसमे किसी प्रकार की संकोच नहीं करना चाहिये, क्योंकि तन, मन, मस्तिष्क और हृदय, सबका सम्पूर्ण मिलन, समन्वय, आधार है कामदेव साधना में सिद्धि का।
अनंग उपनिषद् ग्रंथ तो इस सम्पूर्ण विषय पर लिख गया एक मात्र ऐसा ग्रन्थ है, जिसकी प्रामाणिकता के बारे में संदेह ही नही किया जा सकता। प्राचीन ऋषियों ने इस विषय पर इस महान् ग्रन्थ की रचना की, इसमें नये-नये प्रयोग जोड़ कर वेदोक्त साधनाओं के समान बराबर का स्थान दिया है। क्योंकि यह साधना भी उतनी ही आवश्यक है, जितनी जीवन में अन्य साधनायें।
यह सही है कि जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिये काम पर विजय प्राप्त करनी चाहिये, लेकिन सम्पूर्णता तथा मोक्ष की प्राप्ति काम से बच कर नहीं हो सकती, इस पर विजय प्राप्त करने के लिये इसमें सिद्धि प्राप्त करनी होगी तभी पूर्णता आ सकेगी जीवन में।
इस साधना में रति अनंग यंत्र, रति प्रीति सप्तसुख मुद्रिका, कामदेव सम्मोहन माला के अतिरिक्त पुष्प मालायें, कपूर, इत्र अगर, कुंकंम, आंवला, चंदन, पुष्प, पीला, सफेद वस्त्र, वृक्षों के पत्ते, काला, लाल व पीला रंग अर्थात् गुलाल और अबीर आवश्यक है।
इस साधना में आठ प्रकार के कामदेव की पूजा सम्पन्न की जाती है, जिससे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो। अनंग उपनिषद् ग्रन्थ में कथन है कि साधना से पूर्व ही साधक को वृक्ष के पत्ते, डालियां ला कर उन्हें जल से धो कर निम्न मंत्र से पूजन करना चाहिये।
अर्थात् हे वृक्ष देव, मैं उस कामदेव की पूजा करता हूं, जिनकी पूजा से सब प्रकार के शोक नष्ट हो जाते हैं और कामदेव रति उन शोक इत्यादि को नष्ट कर नित्य आनन्द से भर देते हैं।
अब साधक अपने सामने चावल की आठ ढ़ेरी बना कर उस पर आठ सुपारी स्थापित कर आठ कामों का पृथक पूजन करें, ये आठ काम हैं- काम, भस्म शरीर, अनंग, मन्मथ, बसन्तसखा, स्मर, इक्षुधनुर्धर एवं पुष्पबाणइनका पूजन क्रम निम्न प्रकार से है।
अब अपने सामने रखे हुये रति अनंग यंत्र तथा रति प्रीति मुद्रिका श्लोक का 5 बार पढ़ कर पुष्प माला चढ़ायें।
इसके साथ प्रसाद और सुगन्धित पुष्प भी अर्पित करें तथा घी का दीपक जला कर दायीं और रख दें। इस साधना का आधार काम गायत्री शक्ति है।
यह मंत्र अत्यन्त ही प्रभावशाली है। पूजन क्रम के पश्चात् कामदेव सम्मोहन माला से काम गायत्री मंत्र का पांच माला मंत्र जप करना चाहिये। मंत्र जप के समय मुद्रिका बायीं हाथ की मुठ्ठी में दबा कर रखें।
इस प्रकार पांच माला मंत्र जप के पश्चात् अपने सामने कामदेव तथा रति को पुष्पांजलि अर्पित करते हुये प्रणाम करना चाहिये कि जगत को रति प्रीति प्रदान करने वाले, जगत को आनन्द कार्य प्रदान करने वाले देव, आपको प्रणाम करता हूं तथा आप मेरे शरीर में स्थायी वास करें एवं मेरी वांछित इच्छाओं को फल प्रदान करते हुये कामान्दामेश्वरी साधना पूर्ण करें।
साधना के पश्चात् साधक मुद्रिका को बायीं हाथ के अनामिका या मध्यमा में धारण कर लें, तथा प्रतिदिन पूजन के समय मुद्रिका, अक्षत बायीं हाथ की मुठ्ठी में बंद कर काम गायत्री मंत्र का 5 मिनट जप कर अक्षत को सद्गुरूदेव के चरणों में अर्पित कर मुद्रिका पुनः धारण कर लें, और यंत्र-माला को जलाशय में विसर्जित कर दें।
इस साधना को वर्ष में एक बार अवश्य करनी चाहिये, जिससे गृहस्थ जीवन में आनन्द, प्रेम, काम शक्ति की निरन्तरता बनी रह सके।
भारतीय संस्कृति में सौन्दर्य को ही जीवन का श्रृंगार कहा गया है। सौन्दर्य का तात्पर्य ही होता है, जो सभी गुणों से युक्त हो, जिसमें आनन्द, प्रेम, मधुरता, बाहरी और आन्तरिक सुन्दरता का समावेश हो साथ ही श्रेष्ठ संस्कारों से परिपूर्ण भी हो, वही जीवन को सुचारू रूप से जी सकेगा।
क्योंकि आज के जीवन में जो उत्साह, उमंग, जोश, साहस होने चाहिये उसका अभाव जीवन में बढ़ता ही जा रहा है। जिससे शायद ही कोई व्यक्ति अछूता हो, गृहस्थ जीवन में काम, रस की न्यूनता से व्यक्ति कामदेव रति आनन्द से वंचित रह जाता है। जिसके प्रभाव से चाहे वह स्त्री हो या पुरूष मानसिक रूप से कुंठित हो जाते हैं, उनके घर-परिवार बिखरने लगता है। तलाक, मारपीट, दूसरे पुरूष-स्त्री से अनैतिक संबध जैसे निदंनीय कृत्य समाज में आम बात होने लगे हैं। एक-दूसरे के प्रति आत्मिक प्रेम, आनन्द, रस, विश्वास, सम्मान, यौन सुख की अतृप्ति ही इसकी मुख्य कारण होती हैं। जिससे दो परिवार के सदस्य बिखर जाते हैं, ऐसी किसी भी स्थिति का निवारण जीवन की प्रथम आवश्यकता है।
पति-पत्नी का माधुर्य सम्बन्ध, प्रेमी-प्रेमिका का एक-दूसरे के प्रति सम्मान व अटूट विश्वास, आपसी सामंजस्य से युक्त परिवार, आज्ञाकारी संतान, अपने कार्य क्षेत्र में सम्मानित पद और प्रभावी व्यक्तित्व ही जीवन का मूल सौन्दर्य है, इन सभी रसों से आप्लावित होने हेतु कामदेव रति अनंग माधुर्य काम शक्ति दीक्षा व रति प्रीति सप्तसुख मुद्रिका धारण करने से पौरूषता और सौन्दर्यता की प्राप्ति हो सकेगी। और गृहस्थ जीवन को सुचारू रूप से गतिशील करने में पूर्णतः समर्थ होंगे।
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