ग्रहण काल के महत्व से आज का प्रत्येक साधक परिचित है, जीवन को एकदम से परिवर्तित कर प्रकाश की ओर गतिशील होने की क्रिया ग्रहण की चैतन्यता में ही की जाती है। इस दिवस पर अनेक महत्वपूर्ण साधनायें, दीक्षायें सम्पन्न कर साधक अपनी वर्षों की मनोकामना पूर्ण कर सकता है। ऐसे चेतनामय दिवसों पर श्रेष्ठ साधक अक्षुण्ण सफलता के लिये योजनाबद्ध तैयारी पूर्व में ही कर लेते हैं।
आप जानते हैं कि ग्रहण काल में सम्पन्न की गई कोई भी साधना, मंत्र जप, दीक्षा सौ गुना अधिक और अक्षुण्ण फलदायी होती है, जो साधक सामान्य दिनों में नहीं प्राप्त कर पाता, इसलिये इन दिवसों पर तो वे भी साधक साधना, दीक्षा सम्पन्न करते देखें गये हैं, जो वर्ष भर किसी भी साधनात्मक क्रिया में सम्मलित नहीं हो पाते। वे भी इस विशिष्ट दिवस पर सूर्य की चेतनामय रश्मियों को आत्मसात कर भौतिक और आध्यात्मिक इच्छाओं को पूर्ण कर सकते हैं।
वास्तविक रूप से जीवन में श्रेष्ठ उन्नति अनुकूल और चेतनामय क्षणों का पूर्ण रूप से लाभ प्राप्त करने पर ही निर्भर होता है। साथ ही उन तेजस्वी क्षणों का आकलन कर विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करने वाला व्यक्ति सफलता के उच्च पायदान पर पहुंचता ही है।
शास्त्रों में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब महापुरूषों ने ग्रहण काल की महत्ता का प्रमाण दिया। भगवान कृष्ण को इनके गुरू सांदीपन ने ग्रहणकाल की चैतन्यता में विशेष साधनात्मक क्रिया और दीक्षा सम्पन्न करायी। जिसके कारण वे सभी भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त कर योगेश्वर कहलायें। इसी प्रकार भगवान राम के लंका विजय प्राप्ति में ग्रहण काल का महत्वपूर्ण योगदान है। ये तो हुये अवतारी पुरूष जिनके विशाल व्यक्तित्व के लिये ग्रहणकाल की महिमा को दर्शाना शायद आम जनमानस को संदेह हो। परंतु वर्तमान में सद्गुरूदेव निखिल के ऐसे अनेक साधक, शिष्य हैं, जिनके सफल, श्रेष्ठ, साधना सिद्धि युक्त जीवन में ग्रहणकाल का अमूल्य योगदान रहा।
महाशिवरात्रि कल्प की चैतन्यता युक्त सूर्य ग्रहण और शिव खप्पर सिद्धि दिवस पर जीवन के अभाव युक्त ग्रहण से सदैव के लिये निवृत्त होने हेतु 08, 09, और 12, 13, 14 मार्च को स्वर्ण खप्पर युक्त सूर्य तेजिस्वता प्राप्ति ग्रहण शक्ति दीक्षा महोत्सव कैलाश नारायण धाम दिल्ली में सम्पन्न होगा। साथ ही धन वैभव तेजस्विता प्राप्ति स्वर्ण गौरी लक्ष्मी दीक्षा, शत्रु संहारक कपाल भैरव विजयश्री दीक्षा, त्रिवेणी संगम के ज्योर्तिंमय पवित्र जल से त्रयम्बकेश्वर महामृत्युंजय स्वः रूद्राभिषेक ग्रहण काल के चैतन्य बेला में परमपूज्य सद्गुरूदेव स्वः प्रत्येक साधक को सम्पन्न करायेंगे। जिससे जीवन की मृत्यु तुल्य स्तिथियों का शमन होगा साथ ही सूर्य की तेजस्वी शक्ति को आत्मसात कर साधाक वैभव, सम्पत्ति, सुख-समृद्धि, आरोग्य, आयु वृद्धि, यश, पद, प्रतिष्ठा युक्त जीवन में तीव्रता से भौतिक और आधयात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफ़ल होगें।
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