22 अप्रैल को हनुमान जयंती दिवस है साथ ही समस्त साधकों के लिए यह एक दुर्लभ प्रयोग है। यदि इस दिन श्री हनुमानजी से सम्बन्धित साधना सम्पन्न करेंगे तो शीघ्र ही सफलता प्राप्त कर सकते है। मैं बचपन से ही महाबली राम भक्त का उपसक रहा हूं और जीवन में जब भी कोई विपत्तिया परेशानी आती है मैं श्रद्धा-पूर्वक श्री हनुमानजी को स्मरण कर हनुमान साधना सम्पन्न करता हूं।
हनुमान साधना सिद्ध होने पर हनुमान की कृपा पूर्ण रूप से अपने भक्त पर होती है, इनका सहारा तो भगवान राम को भी विजय के लिए लेना पड़ा था, महाभारत युद्ध में जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण को पूछा कि इस युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए क्या किया जाय तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को हनुमान साधना करने की सलाह दी थी और अर्जुन ने साधना कर अपने रथ की ध्वजा पर हनुमान को विराजमान किया जिससे वह महाभारत जैसे युद्ध में पूर्ण विजय प्राप्त कर सके थे।
यह एक दिवसीय साधना है, यह साधना आप हनुमान जयंती को या किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार की रात्रि को साधक स्नान कर लाल धोती पहन कर लाल आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाये।
मंत्र से पूर्व हाथ में जल लेकर अपनी इच्छा प्रकट करते हुये सकंल्प लें। मैं अमुक कार्य सफलता हेतु यह साधना सम्पन्न कर रहा हूं। फिर वह कार्य कितना ही कठिन क्यों न हो उस में पूर्ण अनुकूलता प्राप्ति होती है। साधक को मंत्र जप से पूर्व हनुमान जी के चित्र के सामने गुड़ का भोग लगा दे और सामने महावीर शक्ति से युक्त बजरंग बाहु हनुमान जी के चित्र के सम्मुख स्थापित कर, सामने तेल का दीपक लगा दे और फिर इस बाहु का संक्षिप्त पूजन लाल पुष्प, अक्षत चढ़ाते हुये करे और फिर मूंगा माला से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र बजरंग बाहु पर अपनी दृष्टि केन्द्रित करते हुये जाप सम्पन्न करें। मंत्र समाप्त होने तक साधक अपने आसन से उठे नहीं।
मंत्र जप पूर्ण होने पर वही पर विश्राम करें और दूसरे दिन वह गुड़ बच्चो को प्रसाद के रूप में देना चाहिए। मंत्र जप के समय प्रयोग समाप्ति के बाद बाहु को अपने दाये हाथ में बांध लें। और मूंगा माला से नित्य 1 माला मंत्र जाप कर गले में धारण कर लें। 51 दिन तक करने के पश्चात् माला को नदी या तालाब में विसर्जित कर दें, जिससे जीवन में श्रेष्ठता, धन-धान्य, मान-सम्मान, सम्पन्नता, यश की प्राप्ति हो सकेगी।
इसी मंत्र साधना के द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान के साक्षात् दर्शन किये और अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की। इसी साधना से संत तुलसीदास को भगवान श्री राम के प्रत्यक्ष दर्शन हुये थे और इसी साधना के द्वारा योगिराज निर्भयानन्द जी ने पूरे पहाड़ को ही अपने मूल स्थान से उठा कर नैनीताल के पास रख दिया था।
संत तुलसी दासजी ने हनुमान चालीसा की रचना की थी, मगर अनुभव में यह आया है कि हनुमान चालीसा सही अर्थों में मंत्र स्वरूप बन गई है, साधक मंगलवार को हनुमान चालीसा का 7 बार पाठ करनें पर दिन भर के सभी कार्य निर्विघ्नता रूप से पूर्ण हो सकेगें।
इसके अलावा कुछ विशेष कार्यों की सिद्धि हेतु हनुमान चालीसा में से लेकर जो प्रयोग दिये गये हैं, उनको किसी भी मंगलवार को साधक स्नानादि से निवृत्त होकर लाल आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पूजा स्थान में बैठ जायें। फिर अष्ट सिद्धि नवनिधि शक्ति से युक्त हनुमान यंत्र को तांबे के पात्र में स्थापित कर उसका पंचोपचार पूजन करें। नीचे दिये हुये प्रयोगों मे से किसी एक प्रयोग के श्लोक का 21 बार पठन 11 दिनों तक करें। जिससे जीवन में आने वाली बाधाओं का पूर्ण रूप से निवारण हो कर अनुकूलता प्राप्त हो सकेगी।
बुद्धि-हीन तनु जानि के, सुमिरो पवन-कुमार ।
बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस-बिकार।।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा।
लाय संजीवन लखन जियाये, श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
संकट ते हनुमान छुड़ावें, मन क्रम बचन ध्यान जो लावें।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावे। सोई अमित जीवन फल पावे।।
भूत पिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावें।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।
जीवन में संकट आने पर किसी भी मंगलवार की रात्रि को यह साधना सम्पन्न कर सकते है, यह साधना पुरूष या स्त्री कोई भी अपने घर या हनुमान जी के मन्दिर में सम्पन्न कर सकते है। अघोर संकट, बाधा, तकलीफ या बीमारी के लिये उपरोक्त प्रयोग अत्यन्त महात्वपूर्ण है जिनका एक-एक प्रयोग अणु-परमाणु की तरह है, जिससे सम्पन्न कर अपने जीवन में सभी दृष्टि से भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते है। प्रयोग समाप्ति के उपरान्त हनुमान यंत्र को नदी में विसर्जित कर दें।
नमो अंजनी नंदन वायुपूतम्। सदा मंगलागार श्रीरामदूतम।
महावी वीरेश त्रिकाल वेसम्। घनानदं निर्द्वन्द्व हर्ता क्लेशम्।।1।।
किये काज सुग्रिव के आप सारे, मिला राम को शोक सन्देह टारे।
गये लांधि वारीश शंका न खाई, हता पुत्र लंकेश लंका जराई।।2।।
चले जानकी मातु को शीश नाया, मिले वानरों से हिये हरष छाया।
सिया का संदेश प्रभु को सुनाया। हिये हरषि श्रीराम ने कंठ लगाया।।3।।
संजीवन जड़ी लाये नागेश काजे, गई मूर्च्छा राम भ्राता निवाजे।
कहे दीन मेरे हरो दुःख स्वामी, नमो वायपुत्रम्, नमामि नमामि।।4।।
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