गुरुदेव द्वारा मुझे पत्रिका का सम्पादक का कार्य सौंपा गया है, यह कार्य मैं पूर्ण निष्ठा व लग्न से करूंगा और इस जिम्मेदारी को पूर्ण करने हेतु मैं पूरी श्रेष्ठता के साथ कार्यरत हूं। आपको पत्रिका से, शिविर से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की कोई समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो आप निसकोंच मुझे पत्र, ई-मेल, या फोन के द्वारा सम्पर्क कर सकते है। मैं पूरी कोशिश करूगा आपकी समस्या का समाधान करने के लिये।
5-6-7 मार्च को महाशिवायै त्रिवेणी धन लक्ष्मी शक्ति महोत्सव में हम सभी प्रयागराज इलाहाबाद में एकत्र हुये जहां की पावन भूमि पूर्णतः चैतन्यता से भरपूर है वहां पर भगवान शिव एवं मेरे पिता के माध्यम से शिविर में साधकों को शिष्यों को अपनी कृपा दृष्टि से, स्पर्श से, दीक्षाओं के माध्यम से चेतना प्रदान कर रहे थे सम्पूर्ण भारतवर्ष का यह एक अद्वितीय शिविर था जो युगो-युगों तक साधकों के हृदय पटहल पर अंकित रहेगा। अनेक साधक दीक्षाओं को पाकर आरोग्यमय हुये तथा उनका चेहरा प्रफुल्लता से दमक रहा था अपनी-अपनी सभी समस्याओं से निजात पाकर साधकों में शिवत्व भाव की स्थापना की अनूभूति अनेको साधकों शिष्यों से ने प्राप्त की सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी ने अपने प्रवचन के माध्यम से हमे बताया कि हम अपने प्राणों को आलोकित कर सकते है यह सब हो सकता है हम अपने अन्दर सद्गुरु की चेतना को प्रवेश कराये और ध्यान की गहराईयों में उतर कर ज्ञान के उस प्रकाश को प्राप्त करें जहां सभी अन्धकार तिरोहित हो जाते है। हमें अपनी चेतना को अन्दर ही ओर प्रयोग करना है न कि बाहर की ओर।
जीवन में भौतिक सम्पूर्णता के लिये आवश्यक है आध्यात्मिक लक्ष्य, क्योंकि भौतिक पूर्णता का जो लक्ष्य है, वह आध्यात्मिक मार्ग से ही गुजरता है, यानि व्यक्ति जब दैवीय शक्ति, ऊर्जा, चेतना से युक्त होता है, तब वह भौतिकता को पूर्णता से जी पाता है, वर्तमान में जो लोग बिना आध्यात्मिक शक्ति के जीवन व्यतीत कर रहें है, वे अपने जीवन का सही ढंग से नहीं जी पा रहें हैं, वे तो सिर्फ अपनी वासनाओं को शांत करने में संलग्न है, यहां पर ध्यान देने योग्य तथ्य है वे सिर्फ अपनी वासनाओं को शांत कर रहें हैं, पूर्ति नहीं। वासना यदि सात्विक हो तो इच्छा कहलाती है और यदि तामसिक हो तो असुरी प्रवृत्ति, जिसकी वर्तमान में अधिकता है और वासनाओं को शांत करने का मतलब है, कि वह शांति कभी भी भंग हो सकती है यानि व्यक्ति की वासना उम्र के किसी भी पड़ाव में जाग्रत हो सकती है, यदि वासना मृत्यु के निकट या प्रौढ़ा अवस्था में जाग्रत हो तो यह सबसे विकट स्थिति होती है, इसलिये अपनी इच्छाओं का दमन या शांत ना करके उसे पूर्ण करना ही जीवन है, जैसा कि मैंने पहले वर्णन किया है कि इच्छायें सात्विक होनी चाहिये, सात्विक इच्छाओं को पूर्ण किया जा सकता है तामसिक को नहीं। इसी लिये सात्विक इच्छाओं को लेकर जीवन जीना ही वास्तविक जीवन होता है तभी व्यक्ति दैवीय शक्ति से युक्त हो सकता है और जब व्यक्ति दैवीय शक्ति से युक्त हो तो उसके जीवन में बाधाये उत्पन्न हो भी कैसे सकती है। दैवीय शक्ति पल-प्रतिपल साधक के समक्ष अप्रत्यक्ष रूप में उपस्थित होती है।
जो व्यक्ति भगवती जगदम्बा की भक्ति करता है क्या वह वास्तव में पूर्णता, आत्म ज्ञान, स्वर्ग आनन्द प्राप्त करना चाहता है। शक्ति अर्थात् मां ही पराविद्या है, पूर्ण आत्मज्ञान है और वह जब अपरोक्ष अनुभूति के रूप में होती है तब वह सरस्वती का रूप धारण करती है और उसे प्राप्त करने के लिये महालक्ष्मी रूप की साधना आवश्यक है। जो जिज्ञासु साधक है उन्हें यह आत्म मंथन करना पड़ेगा कि वे इस मार्ग पर कितना बढ़ना चाहते है। पूर्ण शांति, पूर्ण आनन्द हेतु आवश्यक है कि महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती से युक्त चैतन्यता को साधक के रोम-प्रतिरोम में उतारने की क्रियायें, नवरात्रि के नूतन दिवसों व जगत् जननी भगवती माता जी के जन्मोत्सव महापर्व पर सद्गुरुदेव श्री कैलाश श्रीमाली जी के सानिध्य में रीवा नगर, रीवा (म-प्र-) में नवार्ण शक्ति सि) माँ भगवती जन्मोत्सव 07, 08 अप्रैल 2016 को सम्पन्न होगा। जब साधक अपने जीवन में पूर्ण तन्मयता से क्रियाशील होता हुआ शिविर में संलग्न होता है तो अपने जीवन के सम्पूर्ण अनिष्ट, भय, धन हीनता, शत्रुबाधा, ऋण मुक्ति, दीन-हीन मलिन स्थितियों से निजात प्राप्त कर, जीवन की नव-निर्माण क्रिया के माध्यम और सद्गुरुदेव की कृपा से धन-वैभव, सौभाग्य, श्रेष्ठता प्राप्त करता ही है।
गुरु ही आत्मा का दर्पण है। कैसे? आपके अच्छे या बुरे जैसे विचार होंगे उसी के अनुरूप अच्छा या बुरा आपको अपना गुरु दिखाई देगा। यदि आप अन्दर से दयालु एवं सरल प्रवृत्ति के है तो आपको अपने गुरु भी दयालु व सरल दिखाई देंगे, जैसे-जैसे आपके विचारों में पवित्रता आती जायेगी, आत्मा का रूप निखरेगा और आपको अपना गुरु भी उच्च रूप में दिखाई देगा। गुरु ही वह स्वच्छ, निर्मल तथा कभी न टूटने वाला दर्पण है जिसमें आप अपनी आत्मा का सही रूप देख सकते हैं, संवार सकते हैं, अर्थात् आत्म साक्षात्कार कर सकते हैं। गुरु तो प्रेम है सुगन्ध का झौंका है, गुरु तो अपने भाव अपनी दृष्टि से ही प्रकट कर देते है, उनका स्पर्श मात्र जीवन को बदल देता है, उनका स्वरूप दर्शन दिव्यतम है, वे युग पुरोधा है, पुरूषोत्तम है, उन्हें स्मरण करने मात्र से रोम-प्रतिरोम जाग्रत हो जाता है। इसी हेतु हनुमान जयंती से युक्त चैत्रीय पूर्णिमा के विशेष चैतन्य दिवस पर सद्गुरु जन्मोत्सव सिद्धिदात्री महामाया की चैतन्य भूमि पर लक्ष्मी-नारायण और शिव-शक्ति श्री शक्तियों से युक्त साधनात्मक क्रियायें प्रवचन, साधना, दीक्षा, हवन, अभिषेक, अकंन, पूजन सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी के सानिध्य में महामाया अम्बे सिद्धदात्री सद्गुरु जन्मोत्सव 19-20-21 अप्रैल को दशहरा मैदान टाउन हॉल, धरमजयगढ़, रायगढ़ (छ-ग) में सम्पन्न होगा। ऐसे दिव्य अवसर पर प्रत्येक समर्पित साधक अपने पूरे मन के भावों को अर्पित कर, अपनी भौतिक कामनाओं की पूर्णता के साथ बल, बुद्धि, लक्ष्मी, सम्पन्नता, आयु वृद्धि, धन वैभव और शिव स्वरूप सद् गुरुदेवमय शक्तियों से युक्त हो जिससे साधक सभी सुखों से और हर दृष्टि से सद्गुरूमय बनने की ओर अग्रसर होता ही है।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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