सृष्टि का आधार ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी शिव शंकर हैं। ये त्रिदेव ही सृष्टि के आदि, मध्य एवं अंत हैं। ये अजन्मा एवं निराकार हैं, यह न तो जन्म लेते हैं और न ही इनकी मृत्यु होती है। सृष्टि के आरम्भ काल में यही अपनी बीज शक्ति से सृष्टि को जन्म देते हैं एवं अंत में उसे अपने में समाहित कर लेते हैं, भक्तों की पूजा एवं अर्चना को स्वीकार कर रूप देने के लिये ये साकार रूप धारण करते हैं। इन्होंने अपनी शक्ति को नारी रूप प्रदान किया है जिसे उमा, लक्ष्मी एवं सरस्वती के नाम से पूजा जाता है। उमा शिव की पत्नी है, लक्ष्मी विष्णु की और ब्रह्मा की संगिनी देवी सरस्वती हैं। मनुष्य को पाप से दूर रहकर धर्म का मार्ग चुनने की प्रेरणा देने हेतु समय-समय पर लीला करते हैं।
भगवान शिव के अनेक रूप हैं। उनका एक स्वरूप पवित्र अमरनाथ शिवलिंग के रूप में अमरनाथ की पावन भूमि पर स्थापित है। भगवान शिव की लीलायें अद्भुत हैं। उनकी लीला की अनूभूति अमरनाथ की पवित्र गुफा में प्रत्यक्ष होती है।
शास्त्रों में वर्णन है कि एक बार भगवती पार्वती के मन में अमर क्रिया का ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा उत्पन्न हुयी। उन्होंने महादेव से अमर क्रिया का ज्ञान प्राप्ति के लिये आग्रह किया। देवी के हठ पर विवश होकर शिव ने अमरत्व का ज्ञान देने का निश्चय किया।
अमरत्व एक गोपनीय विद्या है, जो कोई सामान्य विद्या नहीं थी। इस विद्या का ज्ञान प्राप्त करने वाला अमर हो जाता है। देवताओं को भी इस विद्या का ज्ञान नहीं है। जिससे उनका पुण्य क्षीण होने पर उन्हें भी अपना पद रिक्त करना पड़ता है और उन्हें पुनः पुण्य संचित के लिये जन्म लेना पड़ता है। इसलिये भगवान शिव ने अमरत्व ज्ञान प्रदान करने के लिये अमरनाथ की गुफा का चयन किया। पार्वती जी को कथा सुनाने के लिये इस गुफा में लाते समय शिव जी ने चंदनबाड़ी नामक स्थान पर माथे से चंदन उतारा। पिस्सू टॉप नामक स्थान पर पिस्सूओं को, अनन्त नाग स्थान पर नागों को एवं शेषनाग नामक स्थान पर शेषनाग को ठहरने के लिये आज्ञा प्रदान की। पश्चात् शिव और पार्वती अमरनाथ गुफा में प्रवेश कर गये।
इस गुफा में शिव-पार्वती को अमरत्व का ज्ञान प्रदान करने लगे। मध्य में देवी पार्वती को नींद आ गयी और वह सो गयी जिसका शिव जी को पता नहीं चला। शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। इस समय दो सफेद कबूतर अमरत्व ज्ञान का श्रवण कर रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे। शिव को लगा कि पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं। इस तरह दोनों कबूतर ने अमर होने का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया।
अन्त में शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया जो सो रही थीं। शिव जी ने सोचा कि पार्वती सो रही हैं तब इसे सुन कौन रहा था। शिव की दृष्टि तब कबूतरों पर पड़ी। भगवान शिव को क्रोध आ गया। कबूतरों पर क्रोधित हुये, उन्हें मारने के लिये तत्पर हुये। इस पर कबूतरों ने शिव जी से प्रार्थना की कि हे प्रभु! हमने आपसे अमर होने का ज्ञान प्राप्त किया। आप तो संसार के पालन हार हो, यदि आप ही हमारा संहार करेंगे, तो फिर अमरत्व ज्ञान का क्या अर्थ? भगवान शिव स्वभाव से ही दयालु और करूणामयी हैं ही। जिससे सारा संसार परिचित है, उन्होंने कबूतरों को यह वरदान दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव-पार्वती के प्रतीक रूप में निवास करोगे। माना जाता है कि आज भी इन कबूतर जोड़ो का दर्शन शिव भक्तों को यहां प्राप्त होता है। जो आदिकाल से महोदव-गौरी के प्रतीक रूप में निवास कर रहें हैं।
अमरनाथ शिवलिंग हिम से निर्मित होता है। यह शिवलिंग अन्य शिवलिंग से भिन्न है। जो आषाढ़ पूर्णिमा पर अमरनाथ गुफा में हिमपात से स्वयं शिवलिंग रूप में निर्मित होता है और श्रावण पूर्णिमा के दिन पूर्ण आकार में आ जाता है। कहा जाता है पूर्ण आकार में आने के पश्चात् स्वतः ही धीरे-धीरे यह शिवलिंग पिघल कर समतल हो जाता है। इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है।
अमरनाथ की गुफा में हिम वर्षा से निर्मित शिवलिंग ठोस होता है। जबकि आस-पास जमा बर्फ कच्चा होता है और शीघ्र ही पिघल जाता है। अमरनाथ की पवित्र गुफा में प्रवेश कर शिव भक्तों को महादेव के ज्ञान, चेतना, शक्ति का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। जो किसी भी साधक, ऋषि-मुनि, आम जनमानस के लिये अति सौभाग्य का विषय है। इससे महादेव के प्रति आस्था प्रगाढ़ होती है। यह क्रिया ईश्वरीय शक्ति होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, जो अन्यतम है, जो अद्भुत है।
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