विचार संक्रमण की क्रिया का ज्ञान प्राप्त हो जाने से साधक किसी भी व्यक्ति के मस्तिष्क में उठने वाले विचारों को जान लेता है और अपने विचारों का प्रक्षेपण सामने वाले के मस्तिष्क में कर अपनी इच्छानुसार कार्य सम्पन्न करा सकता है।
योगीजन इस चक्र को हत् चक्र भी कहते है। जीवात्मा का निवास इसी चक्र में माना गया है साधक जब इसमें प्रवेश करता है, तो साक्षात् बल के दर्शन हो जाते हैं और वह एक अनिवर्चनीय आनंद में खो जाता है।
अनाहत चक्र का प्रतीक बारह पंखुडियों वाला कमल है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकम्पा, दयालुता क्षमा भाव और सुनिश्चय का प्रतीक है। अनाहत चक्र का रंग हरा है व इसका मूल बीज मंत्र यं है। इस चक्र के 12 दलों के बीज मंत्र हैं- कं, खं, गं, घं, डं-, चं, छं, जं, झं, ञं, टं, ठं। इन दलों के जाग्रत होने पर निर्विकल्प समाधि की प्राप्ति होती है। इसके प्रतीक छवि में दो तारक आकार के ऊपर से ढ़ाले गये त्रिकोण हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर संकेत करता है और दूसरा नीचे की ओर।
जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनायें, भक्ति, शुद्धता, ईश्वर, प्रेम और निष्ठा प्रकट होने लगती है। परन्तु यदि हमारी चेतना सांसारिक कामनाओं के क्षेत्र में डूब जाती है। तब हमारी भावनायें भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं और ईर्ष्या, द्वेष, छल-कपट, उदासीनता और हताशा के भाव हमारे ऊपर हावी हो जाते हैं।
अनाहत चक्र पर ध्यान कर इसे संतुलित करने से आत्मा स्वः की स्थिति से निकल कर महः में पहुंच जाती है। कालज्ञान प्राप्त होता है, टेलीपैथी और हिलीपैथी साधना स्वतः सिद्ध हो जाती है, जिससे साधक किसी भी व्यक्ति के मस्तिष्क में व्याप्त विचारों को पढ़ सकता है। परकाया प्रवेश की क्रिया इस चक्र के द्वारा ही संपन्न होती है। अष्टगंध व्यक्ति के शरीर से स्वतः प्रवाहित होने लगता है। साधक की आत्मा का परब्रह्म से प्रथम साक्षात्कार होता है। व्यक्ति त्रिकालदर्शी हो जाता है।
अनाहत चक्र हमारी भावनात्मक ऊर्जा का केन्द्र है। यह चक्र स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है व वित्तिय सफलता को आकर्षित करता है। यह चक्र वहीं अवस्थित है, जहाँ भगवान का वास होता है, जैसा कि रामायण में भी हनुमान जी द्वारा प्रभु राम का वास अपने हृदय में बताया है। बच्चो में यह अच्छी तरह से विकसित होता है और यही कारण है कि वे इतनी बहुतायत से प्यार करने में सक्षम होते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हमारा विकास होता है, बढती उम्र के साथ-साथ प्रेम के भाव में कमी व ईर्ष्या, द्वेष, लालच जैसे भाव में बुद्धि लिप्त होने लगती है और इसका कारण है अनाहत चक्र का अपने मार्ग से विचलित हो जाना। अनाहत चक्र पर ध्यान करने से व्यक्ति समाज और स्वयं में सुसंस्कार व संतुलन की स्थापना करता है। यहाँ पर ध्यान करने से वाकपटु, बुद्धिमान, लेखन में महारथी, काव्यामृत रस के आस्वादन में निपुण योगी तथा सफल चित्रकार या अभियंता जैसे गुणों से युक्त होते हैं।
अनाहत चक्र साधक को सृजनशील बनाता है और वे हर क्षण कुछ न कुछ नया रचने में गतिशील रहते हैं। इस चक्र को महाभारत में श्री भीम का चक्र भी कहा गया है। इस चक्र के सुचारु रूप से संचालित होने से दृढ़ संकल्प शक्ति की प्राप्ति होती है, इच्छा पूर्ति के लिये अनाहत चक्र पर नित्य ध्यान करना चाहिये, हमारा अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से हमारी इच्छा पूर्ण होगी।
अनाहत चक्र का प्रतीक पशु हिरण है, जो अत्यधिक ध्यान देने और सतर्कता के लिये जाना जाता है। इस चक्र के देवता शिव और पार्वती है, जो चेतना व प्रकृति के प्रतीक है। हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। रात्रि में सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने के लिये सबसे उपयुक्त समय माना गया है।
इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति के भीतर प्रेम व संवेदना का जागरण होता है। इस चक्र के जाग्रत होने पर साधक सम्पूर्ण रूप से गुरु-प्रेम में लीन हो जाता है। व्यक्ति के समक्ष ब्रह्माण्ड का ज्ञान स्वतः ही प्रकट होने लगता है और साधक गुरु ज्ञान से ओत-प्रोत हो जाता है।
वह अत्यन्त आत्मविश्वासी, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित-व्यक्तित्व का धनी बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त हितैषी एवं निःस्वार्थ भावना से मानवता प्रेमी व सर्वप्रिय बन जाता है।
स्वभावतः पुरूषों का यह चक्र अव्यवस्थित व कमजोर होता है, क्योंकि यह चक्र प्रेम व भाव से जुड़ा है, भावनात्मक रूप से जीने के कारण महिलाओं का यह चक्र प्रबल होता है। इसीलिये इनको पुरूषों की तुलना में हार्ट सम्बन्धित बीमारियां कम होती हैं, इस चक्र के कमजोर व असंतुलित होने से हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, अस्थमा, पथरी, गॉल ब्लेडर, किड़नी से सम्बन्धित बीमारियां आदि व्यक्ति को घेर लेती हैं। एलर्जी, थकान, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आना फेफड़ों से सम्बन्धित रोग भी इसी चक्र के असंतुलित होने के कारण उत्पन्न होते हैं।
उदासीन व्यक्तित्व, किसी पर भरोसा न होना, किसी को माफ न कर पाना, निराशा, संदिग्धचित्त हो जाना, लोभी हो जाना, किसी से प्रेम न करना स्वार्थी हो जाना व नकारात्मकता इस चक्र के बंद या अव्यवस्थित होने के प्रमुख लक्षण है।
संतुलित अनाहत चक्र व्यक्ति को दया, प्रेम, बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता, सरलता, संयम आदि गुणों से परिपूर्ण करता है व हमें दृढ़ संकल्प व्यक्तित्व बनने में सहायक होता है।
प्रकृति द्वारा चिकित्सा- अनाहत चक्र वायु प्रधान चक्र है, इसीलिये वायु द्वारा इसे सुदृढ़ किया जा सकता है। खुली हवा में बैठना, भ्रमण करना, बाग-बगीचों में प्रतिदिन समय व्यतीत करना, पेड़-पौधों को रोंपना कुछ देर सुबह घास में घूमना आदि।
योगाभ्यास द्वारा- ऊष्ट्रासन के नियमित अभ्यास के द्वारा हम अनाहत चक्र को संचालित होने में जो रूकावटें या बाधायें हैं, उन्हें दूर कर इसे सुचारू कर सकते है। यह आसन सदा युवा बनाये रखने में सहायता करता है व व्यक्तित्व को जीवन्त रखता है।
गौमुख आसन (Cow Pose)- शरीर को लचीला बनाने में मदद करता है, दमा (Asthma) से ग्रस्त व्यक्ति के लिये भी लाभकारी हैं। यह आसन फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाता है, जिससे श्वास सम्बन्धी रोग में लाभ मिलता है।
सेतुबंध आसन (Bridge Pose)- इस आसन का नियमित अभ्यास भी फेफड़ों को चुस्त रखता है। इसी के साथ-साथ भुजंगासन भी हृदय व फेफड़ों के लिये लाभकारी आसन है।
याद रखें कि इन आसनों का अभ्यास अपनी-अपनी शारीरिक क्षमतानुसार धीमी गति के साथ आरम्भ करें।
ध्यान द्वारा- चित्त को एकाग्र एवं शांत कर कुछ देर ध्यान लगाने से भी चक्र को सक्रिय किया जाता है, इसमें हरा रंग जो इस चक्र का रंग है, उसे आँखें बंद कर महसूस करना होता है व यं शब्द का मंद आवाज में बारह बार धीरे-धीरे उच्चारण करना होता है, हमें महसूस करना होता है कि हमारा मन एवं आत्मा प्रसन्न, सफल, शुद्ध, परम आनंदित एवं सुव्यवस्थित है। यह अभ्यास नियमित रूप से इच्छानुसार समय अवधि के लिये कर साधक अपने अनाहत चक्र को सुगम रूप से संचालित कर सकते हैं।
संतुलित आहार द्वारा- अनाहत चक्र का रंग हरा है इसलिये भोजन में हरी सब्जियाँ, फल जैसे पालक, गोभी, खीरा, ककड़ी, ब्रोकली आदि का सेवन लाभकारी रहता है व हरे रंग के खाद्य इस चक्र को स्वस्थ रखने में सहायता करते है।
साधना द्वारा- अनाहत चक्र के आराध्य भगवान शिव व माता पार्वती है, उनकी पूजन, आराधना, साधना से अनाहत चक्र जाग्रत किया जा सकता है।
शक्तिपात दीक्षा द्वारा- कई साधक अपने जीवन में कुण्डलिनी चक्र के कारण व्यक्तिगत व साधनात्मक जीवन में कठिनाई व असहाय अनुभव करते हैं, असंतुलित कुण्डलिनी सम्बन्धित साधना व गुरुदेव द्वारा शक्तिपात दीक्षा प्राप्त कर इस चक्र को सक्रिय व नियंत्रित कर नियमित रूप से संचालित किया जा सकता है।
अनाहत चक्र के अधिष्ठाता देव भगवान शिव व माता गौरी हैं, जिनकी साधना, आराधना द्वारा अनाहत चक्र को पूर्णतः जाग्रत व सक्रिय किया जा सकता है। इस सम्बन्धित साधना हेतु आप जोधपुर कार्यालय में सम्पर्क कर साधना सामग्री व साधना विधान, मंत्र प्राप्त कर सकते हैं। साधना के पूर्व शक्तिपात दीक्षा को आवश्यक रूप से ग्रहण करना चाहिये, जिससे हम उस चेतना शक्ति को पूर्ण रूप से अपने देह में स्थापित कर सकें।
विनीत श्रीमाली
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