नूतन वर्ष का प्रथम दिवस हम सब के समक्ष नवीन सृजन, परिवर्तन, संकल्प का संदेश लेकर उपस्थित है। नववर्ष पर नयी चेतना, उमंग, जोश, उत्साह, नये लक्ष्य, उद्देश्य, उपलब्धता को आत्मसात करने का चिंतन प्रत्येक व्यक्ति के मन में होता है। हर व्यक्ति यही चाहता है कि वह बीते वर्ष की न्यूनताओं को समाप्त कर इस वर्ष नयी उपलब्धियां प्राप्त करे, कुछ नवीन सृजन कर सके। इसके लिये हम संकल्प लेते हैं, अपने संकल्प पर मनन, चिंतन कर जीवन में धारण करने का, मूर्त रूप देने का प्रयास करते हैं। लेकिन कुछ दूर की ही यात्रा में हम परिस्थितियों के सामने दम तोड़ देते हैं। यहीं पर हमसे सबसे बड़ी चूक होती है।
क्योंकि यहीं से हमारे संकल्प में विकल्प उत्पन्न होने लगता है और जब तक संकल्प में विकल्प है, तब तक कोई संकल्प पूरा नहीं हो सकता है। हमारी संकल्प शक्ति इतनी दृढ़ होनी चाहिये कि सामने कैसा भी विकराल तूफान ही क्यों ना आ जाये, हम अपनी विजय, अपना लक्ष्य, अपने उद्देश्य को पूरा करके ही रहेंगे। जिनकी संकल्प शक्ति इन भावों से समायोजित होती है। सफलता उनके कदम अवश्य ही चूमती है।
बीते वर्ष में भी बहुत से लोगों ने संकल्प लिया, कुछ लोग अपने संकल्प पर बने रहे, कुछ लोगों ने औपचारिकता निभायी और भूल गये, कुछ लोगों संघर्ष किये पर वे असफल रहें, असफलता हमारे जीवन के लिये कोई निराशा की बात नहीं है, हमने एक प्रयास किया, हमने कुछ दूर यात्रा की, ये अलग बात है कि हम सफल ना हो सके। लेकिन हमारे द्वारा किये संघर्ष के द्वारा एक नया अनुभव हमें प्राप्त हुआ, कोई ना कोई ज्ञान तो हम अर्जित करने में सफल रहें। भले ही हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य पूर्ण ना हो सका हो। जीवन तो उनका अंधकारमय है, जो कोई प्रयास ही ना कर सकें, केवल कल्पना के सागर में ही गोता लगा रहें हैं। ऐसे लोगों का सफल होना सदा संदिग्ध ही रहता है।
असफलता एक चुनौती है, एक चैलेंज है, जिसे स्वीकार करना चाहिये, क्या गलती हुई, किन कारणों से हम सफल नहीं हो सके, इन विषयों पर निरीक्षण करना चाहिये और पुनः सुधार कर आगे बढ़ने का प्रयास करें। यह निश्चित है कि हम अपने प्रयासों द्वारा सफलता प्राप्त करेंगे ही पर इसके लिये संघर्ष करना होगा, परिश्रम करना हमें अपनी आदत बनानी होगी। इच्छा के अनुसार परिश्रम करना उचित नहीं है, परिश्रम हमारी आदत में सम्मलित होना चाहिये, हमारे दैनिक जीवन में इसका पूर्ण समायोजन होना अनिवार्य है।
असफल होने के पश्चात् अपनी कमियों को दूर कर दुगने जोश, उत्साह, उमंग, ऊर्जा के साथ पुनः प्रयास करना चाहिये। एक गोताखोर बार-बार गहरे सागर में डुबकी लगाता है और अनेक बार खाली हाथ लौट आता है, क्योंकि मोती को सागर से निकालना इतना सहज नहीं है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर बार वह खाली लौटता है, अन्त में उसके हाथ मोतियों से भरे होते हैं, क्योंकि प्रयास करने वालो की हर बार हार नहीं होती।
परम पूज्य सद्गुरुदेव का जन्मोत्सव 18 जनवरी 2017 को कैलाश नारायण धाम दिल्ली में पूर्ण आनन्द महोत्सव के रूप में हर्षोंउल्लास, उमंग, जोश, उत्साह के साथ सम्पन्न होगा। यह दिवस सही रूप में देखा जाये तो शिष्य-संकल्प दिवस है। गुरु ही जीवन के आधार हैं, उनकी उपस्थिति से ही जीवन में आनन्द, हर्ष, उत्साह, प्रेम है। ऐसे अवसर पर शिष्य के उपस्थित होने से ही सद्गुरुदेव को प्रसन्नता होती है, क्योंकि वो आप लोगो के लिये ही इस धरा पर अवतरित हुये हैं।
आप सभी का हृदय भाव से स्वागत है!
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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