सद्गुरूदेव कैलाश जी बाह्य रूप से साधनात्मक दृष्टि से जितने गंभीर, अनुशासन प्रिय, निष्ठावान, दृढ़ निश्चयी, कर्मशील हैं। अंदर से उतने ही शांत, मधुर, दयालु, हास्य प्रिय, करूणामय हैं, साथ ही उतने ही साधना, हवन, रूद्राभिषेक अन्य श्रेष्ठतम साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न कराते हुये वे साक्षात् महाकाल स्वरूप में नजर आते हैं, जिनकी एक दृष्टि से अनेक-अनेक जन्मों का पाप समाप्त हो जाता है।
असहनीय रोग, भूत-प्रेत, पिशाच दोष, मलिन तंत्र प्रयोग तो इनके सामने टिकते ही नहीं है, ऐसा कहकर मैं अपने भक्ति भाव को प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं कर रहा हूं। भगवान निखिल ने स्वयं अपने एक प्रवचन में कहा है- कि वे तंत्र क्षेत्र में अद्वितीय विद्वान हैं।
यह तो उनकी ही माया का स्वरूप है, जो सामान्य पुरूष की तरह सारे क्रिया-कलाप करते हुये सांसारिक माया का आवरण डाले हुये हैं, जिनकी मधुरता, प्रेम, सरलता को देखकर लोग भ्रमित हो जाते हैं। माया के इस जटिलतम स्वरूप को देखकर भ्रमित होना भी स्वाभाविक है। लेकिन सुचारू रूप से कार्य पूर्णता अथवा सृष्टि नव निर्माण के लिये यह आवश्यक भी है। क्योंकि कभी भी, किसी भी महापुरूष ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुये समाज का निर्माण नहीं किया, और ना ही ऐसा हो सकता है। अवतारी पुरूषों ने समाज के मध्य, कांटों के मध्य, बुराईयों से जूझते हुये, हजारों जख्म सहते हुये समाज को नयी दिशा दी है। चाहे सारा संसार बैरी हो गया हो, चाहे समाज उन्हें कितना भी प्रताडि़त करे, वे कभी भी अपने कर्तव्य, धर्म से पीछे नहीं हटते।
आप सभी जानते हैं, कि गुरु कोई शरीर अथवा हाड, मांस का पुतला नहीं होता, देहधारी गुरु के भीतर जो गुरुत्व होता है, वही मूल रूप से गुरु है, गुरु अपने दिव्य धाम से शिष्यता के स्तर पर आते हैं, जिससे समाज का कल्याण हो सके, गुरुत्व शक्ति ही स्वयं को प्रदर्शित करने के लिये मानव शरीर को अपना आवरण बनाती है, उस देह में तो मूल रूप से गुरुत्व शक्ति ही समाहित होती है, जो अनन्त काल से चली आ रही है, प्रत्येक युग में उनका रूप अलग-अलग होता है। उसी गुरुत्व शक्ति को पहचानने वाले ही वास्तविक गुरु कृपा प्राप्त कर पाते हैं।
अंर्तराष्ट्रीय कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार ने इस दिव्य चैतन्य गुरु जन्मोत्सव पर्व 18 जनवरी को परम पूज्य सद्गुरुदेव जी के साथ उनके सानिध्य में कैलाश नारायण धाम दिल्ली में पूर्ण हर्षोल्लास, आनन्द के साथ सम्पन्न करने का मानस बनाया है। शिष्यत्व भावों को सद्गुरुदेव चरणों में अभिव्यक्त कर अपनी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का यह एक स्वर्णिम अवसर है।
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