सामान्यतः सभी के जीवन का यह सपना भी होता है कि उसका स्वयं का मकान, उसके सुख-सुविधा के अनुसार हो। इसके लिये वह निरन्तर प्रयासरत भी रहता है, और जैसे-तैसे अपना स्वयं का मकान खरीद अथवा बनवा पाता है। ऐसी स्थिति में वह वास्तुमय सुक्रियाओं की ओर ध्यान नहीं दे पाता। अनेक लोगों को तो पुश्तैनी जमीन अथवा मकान में ही एडजस्ट करना पड़ता है।
लेकिन उनके लिये असमंजस की स्थिति तब आ जाती है, जब वे अपने मकान को वास्तु शास्त्र की दृष्टि से देखना प्रारम्भ करते हैं। जैसा कि वास्तु शास्त्र में वर्णित है कि-
अब कोई अपने निर्मित मकान के मुख्य द्वार की दिशा में परिवर्तन कैसे करे? क्योंकि फ्लैट अथवा भू-खंड की स्थिति ही ऐसी होती है कि वह उसका मुख्य द्वार निश्चित दिशा की ओर ही दे सकता है। निश्चित स्थान पर रसोई, निश्चित स्थान पर स्नान-घर। बाहर एक ड्राईंग रूम होता है और भीतर एक या दो बेड रूम, अब कोई ऐसा तो नहीं कर सकता कि वास्तु शास्त्री के अनुसार बाहर के कमरे को बेड रूम बना दे व अन्दर के कमरे को ड्राईंग रूम या आवागमन मार्ग से हटकर अपना मुख्य द्वार बना लें। वास्तु शास्त्र के नियम शास्त्रोचित है, लेकिन बने बनायें मकान में व्यक्ति क्या करें?
यह निश्चित है, कि घर दीवारों से नहीं बनते, दीवारो से मकान बनते हैं। घर तो उसे कहते हैं, जहां रहने से उसे सुख और शान्ति प्राप्त हो, घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो, गुरु, देवी- देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो।
घर ही एक ऐसा स्थान है, जहां सुख प्राप्त हो सकता है। यदि आपका कोई विरोधी है, तो यह आवश्यक नहीं कि वह शारीरिक वार ही आप पर करे। तंत्र ग्रंथों में ऐसे कई प्रयोग हैं, जिनके द्वारा वह घर की शान्ति ही भंग कर सकता है। तंत्र के माध्यम से घर पर ऐसे गणों का, शक्तियों का प्रहार कर सकता है, कि किसी के भी घर में कलह का वातावरण उपस्थित हो जाये, भाई-भाई में द्वेष हो जाये, पति-पत्नी विपरीत विचारों के हो, बालक योग्य न हो, घर में हर समय अभाव बना रहे।
आज-कल भूमि की कमी के कारण कई लोग, श्मशान, कब्रिस्तान अथवा ऐसा कोई स्थान जहां पर पूर्व में कभी शव दहन किया गया हो, या वहां पर किसी की आकस्मिक मृत्यु हुयी हो, कोई अदृश्य शक्ति, मलिन शक्ति का वास हो, वहां पर भवन का निर्माण करते हैं, अथवा ऐसे स्थान पर किराये पर रहते हैं, जो स्थान आसुरी शक्तियों के प्रभाव में हो। हालांकि यह पूरी धरती ही हजारों वर्षो के युद्ध के कारण पूरी रक्त-रंजित है, ऐसे में यदि विश्लेषण किया जाये तो, कुछ स्थान को छोड़कर कोई भी स्थान पूर्णतः शुद्ध व चैतन्य नहीं है, जिसके कारण भूमि दोष, भूत-प्रेत, आसुरी शक्तियों का प्रकोप, गणों का असंतुष्ट होना, नजर दोष अनेक ऐसे कारण होते हैं, जिसके कारण विकास की गति अवरूद्ध तो होती ही है, साथ ही कलह, रोग-शोक, आधि-व्याधि के भी जकड़ में व्यक्ति आ जाता है।
ऐसे स्थान पर रह कर कोई भी व्यक्ति चाहे वह बल, बुद्धि, चातुर्य से कितना ही परिपूर्ण हो, उन्नति नहीं कर सकता, अस्सी कमाता है और सौ खर्चे उत्पन्न हो जाते हैं, अतः हर व्यक्ति के लिये यह आवश्यक है कि उसका घर श्रेष्ठ हो, स्वर्ग तुल्य हो जहां प्रसन्नता, प्रेम, स्नेह, शान्ति और लक्ष्मी का स्थायित्व हो। देवी-देवताओं का पूजन होता हो, अतिथि प्रसन्नता अनुभव करें, लक्ष्मी की निरन्तर वृद्धि होती रहे। श्रेष्ठ कार्य घर में सम्पन्न होते रहें। ऐसे ही तो घर स्वर्ग समान होते हैं।
हर घर में आदर्श स्थिति नहीं हो सकती, लेकिन एक संतुलन तो बना ही रहता है, घर में यदि दरिद्रता, दुख हो तो धीरे-धीरे कम होने चाहिये, यदि ऐसा नहीं होता तो कहीं ना कहीं कुछ कमी अवश्य है, ऐसा इसलिये होता है, कि उस घर में कुछ ऐसे विपरीत ग्रहों, गणों, दुष्ट शक्तियों का प्रभाव होता है। जो घर की श्री वृद्धि का निरन्तर भक्षण करती रहती हैं। कुछ ऐसे तांत्रिक प्रभाव होते हैं, जो हर समय पीड़ा व्याधि पहुंचाते हैं। इसके निवारण के बिना उस परिवार की उस वंश की सम्पूर्ण उन्नति सम्भव ही नहीं है।
क्या आपने मकान खरीदने अथवा बनवाने के पूर्व विचार किया है, कि आपका घर दूषित है या नहीं? आपके घर पर किस प्रकार के ग्रहों के प्रभाव है, विपरीत ग्रहों के प्रभाव, दुष्ट आत्माओं के प्रभाव और गणों के असंतुष्ट होने पर घर में अशान्ति, दरिद्रता ही रहती है। आप जो निरन्तर साधना करते रहते हैं, गुरु भक्ति करते हैं, उससे उनका प्रभाव क्षीण अवश्य हो जाता है, लेकिन जब तक घर का ही पूर्ण रूप से शुद्धिकरण न हो, श्रेष्ठ देवताओं का निवास न हो, तब तक कुछ भी उत्तम नहीं हो सकता है।
वास्तु मण्डल के विधान अनुसार इसमें मुख्य रूप से 45 देव स्थान हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1- शिखी 2- पर्जन्य 3- जयन्त 4- कुलिशायुध 5- सूर्य 6- सत्यल 7-
भृश 8- आकाश 9- वायु 10- पूषा 11- वितथ 12- गृहक्षत 13-
यम 14- गन्धर्व 15- भृंगराज 16- मृग 17- पितृ 18- दौवारिक 19-
सुग्रीव 20- पुष्पदन्त 21- वरूण 22- असुर 23- शेष 24- पाप हर
25- रोगहर 26- अहि 27- मुख्य 28- भल्लाट 29- सोम 30- सर्प
31- अदिति 32- दिति 33- अप 34- अपवत्स 35- अर्यमा 36-
सावित्र 37- सविता 38- विवश्वान् 39- जयन्त 40- विबुधाधिप
41- मित्र 42- राजयक्ष्मा 43- रुद्र 44- पृथ्वीधर 45- ब्रह्म।
इन सभी देवों का वास प्रत्येक घर में होने से ही अनुकूलता आती है व तब ही घर में सुख-समृद्धि, सम्पन्नता आ सकती है।
इस हेतु विश्वकर्मा वास्तु पूजन और वास्तु दोष समाप्ति के लिये विशिष्ट मंत्रोद्धार क्रियाओं से उक्त सभी देव शक्तियों को विशिष्ट यंत्र में चैतन्य कर स्थापित करना चाहिये। क्योंकि प्रत्येक देव गण की स्तुति करना संभव नहीं है।
वास्तु कृत्या यंत्र- इस यंत्र द्वारा घर की सभी नकारात्मक शक्तियों का शमन होता है और ग्रह दोष, भूमि दोष, प्रेत-पिशाच दोषो से छुटकारा मिलता है, जिससे वहां पर स्थित गण व कुल देवी-देवता से भी अनुकूलता मिलती है और किसी भी विपरीत शक्ति से भवन और परिवार की रक्षा करते हैं साथ ही घर में सुख-शान्ति, समृद्धि, सम्पन्नता, सुसंस्कार की वृद्धि होती है, घर में अनुकूल वातावरण मिलने से बच्चों का अध्ययन में मन लगता है व एकाग्रता बढती है, स्मरण शक्ति मजबूत होती है।
विश्वकर्मा विग्रह- ब्रह्मा जी ने ही सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है, उनके ही अंश रूप में भगवान विश्वकर्मा सम्पूर्ण जगत में निर्माण की गतिशीलता प्रदान करते हैं, अतः इनकी आराधना व स्थापना से साधक के जीवन में नूतनता व श्रेष्ठता में वृद्धि होती है, निर्माण का तात्पर्य है, वह सब कुछ जो हम अपने जीवन में कर्मों के द्वारा अर्जित करते हैं। तांत्रोक्त नारियल- तांत्रोक्त नारियल को भवन के मुख्य द्वार पर लटकाना चाहिये, जिससे मलिन और आसुरी शक्तियों का प्रवेश भवन में ना हो, साथ ही इसके द्वारा नजर दोष से भी बचाव होता है,
वास्तव में यह एक सम्पूर्ण विधान है, अपने पूरे भवन को सुरक्षा से आबद्ध करने का, जिसे प्रत्येक साधक को करना ही चाहिये। जिससे वे सफलता के उच्चतम स्थिति तक पहुंच सके।
17 सितम्बर रविवार विश्वकर्मा शक्ति दिवस पर स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अपने पूजा स्थान में एक बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाकर किसी ताम्रपात्र में वास्तु कृत्या यंत्र, विश्वकर्मा विग्रह व तांत्रोक्त नारियल को स्थापित करें।
वास्तु देवता का आवाहन करें-
भगवन्! देव देवेश! ब्रह्मादि देवतात्मक् ।
तव पूजां करिष्यामि प्रसादं कुरु मे प्रभो ।।
वास्तु देव का ध्यान करें-
पूजितोऽसि मया वास्तो! होमाद्यैरर्चनैः शुभैः ।
प्रसीद पाहि विश्वेश! देहि मे गृहजं सुखम् ।।
यंत्र, विग्रह का पूजन गंध, अक्षत, पुष्प, धूप तथा दीप से करें और तात्रोक्त नारियल पर कुंकुम चढ़ायें। फिर उक्त मंत्र का 108 बार जप करें।
मंत्र जप पश्चात् यंत्र व विग्रह को पूजा स्थान में स्थापित कर दें, और तात्रोक्त नारियल को मुख्य द्वार पर लटका दें। ये विधान प्रत्येक व्यक्ति को सम्पन्न करना चाहिये। जिससे उसके भू-भवन में अनुकूल स्थितियां बनी रहें।
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