महाकाली और रूद्र- तीनों शक्तियों के रंगों और कार्यों का यह चमत्कारी सम्बन्ध है कि रूद्र को जो संहार रूपी काम करना है। उसे कराने वाली महाकाली रूपी रूद्र शक्ति अपने भयंकर कार्य के अनुरूप काले रंग की होती है। परन्तु वह संहार का काम संहार के लिये नहीं, बल्कि सारे संसार के रक्षण और कल्याण के लिये होता है। इसलिये वह विशुद्ध भाग का संहार करके, शुद्ध भाग को विष्णु के हाथ में सौंप कर कहती है कि- मैं रूद्र की शक्ति विशुद्ध भाग का संहार कर दिया, अब हम दम्पति का काम पूरा हो गया है। अब आप इस शुद्ध भाग को लेकर, अपना जो पालन-पोषण का काम है उसे करो।
भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमदभगवद् गीता में कहा-
परित्रणाय साधूनाम् और तत्पश्चात् कहा-
विनाशाय च दुष्कृताम्
अर्थात् जैसे बीमार की सड़ी हुई एक अँगुली के जहर को सारे शरीर में फैलने से रोकने के लिये वैद्य शस्त्र से काटते (operation) हैं, इसी प्र्रकार भगवान् रूद्र संहार का जो काम करते हैं, वह जगत् के पालन के लिये ही है।
महालक्ष्मी और विष्णु- विष्णु को जो पालन का काम करना है, उसे कराने वाली महालक्ष्मी रूपी विष्णु की शक्ति अपने पालनात्मक कार्य के अनुरूप स्वर्ण वर्ण की होती है। परन्तु वह पालन का काम सिर्फ पालन करके छोड़ देने के लिये नहीं, बल्कि पोषण और वर्धन करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसलिये वह पालन का काम करके, सृजन किये हुये वस्तु को ब्रह्मा के हाथ में सौंप कर कहती है कि- मैंने विष्णु की शक्ति से इस वस्तु का सृजन किया है, अब हम दम्पति का काम पूरा हुआ। आप इसे लेकर अपना कार्य, जो नयी वस्तुओं की रचना अथवा पोषण और वर्धन करने का है, उसे पूर्ण करो।
महासरस्वती और ब्रह्मा- ब्रह्मा को जो सृष्टि रूपी काम करना है, उसे कराने वाली महासरस्वती रूपी ब्रह्म शक्ति अपने सृष्टयात्मक कार्य के अनुरूप सफेद रंग की होती है। परन्तु वह पोषण एवं वर्धन का काम आगे-आगे बढ़ाते जाने के ही मतलब से नहीं है, बल्कि पोषण और वर्धन करने के समय जो बुरे या अनिष्ट पदार्थ भी उसके साथ सम्मिलित हो जाते हैं। उनको दूर हटाकर वह वर्धन के काम के हो जाने के बाद, अनिष्टों के संहार हेतु रूद्र के हाथ में देकर कहती है कि- मैंने अपने पति श्रीहिरण्यगर्भ ब्रह्मा की शक्ति की हैसियत से इस वस्तु का पोषण और वर्धन किया है। इससे अब हम दम्पति का काम पूरा हो गया है। इसके पोषण और वर्धन के समय में इसमें जो त्रुटियाँ आ गयी हों, उनका संहार करने का काम आपका है, इसलिये इनकी न्यूनताओं को समाप्त करना है।
इस प्रकार से एक ही परमात्मा जगदीश्वर महाप्रभु सृष्टि, पालन और संहार इन तीनों कर्मों के चक्र को लगातार चलाते हुये ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र रूप से ही सृष्टि का चक्र गतिशील रहता है और इन तीनों कामों को कराने वाली जगन्माता भगवती महामाया के अन्तर्गत जो सृष्टि शक्ति, पालन शक्ति और संहार शक्ति हैं, उन्हीं के नाम पीताम्बरा ललिताम्बा और महालक्ष्मी है।
हर एक काम में सभी पदार्थों का समावेश रहता है, जैसे आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। इन पंच-भूतों में से प्रत्येक भूत के साथ बाकी चार भूत भी मिले हुये रहते हैं और सत्त्वगुण, रजोगुण, तमोगुण इन तीन गुणों में से प्रत्येक गुण के साथ बाकी दो गुण भी सम्मिलित रहते हैं। इसी से व्यवहार में किसी भूत या गुण का नाम लिये जाने पर मतलब इतना ही होता है कि उस प्रकृत पदार्थ में वह भूत या गुण अधिक है, इसलिये वेदान्त सूत्रों में भगवान् वेदव्यास ने कहा है- वैशेष्यात्तद्वादस्तद्वादः!
इसी प्रकार हर एक काम में बाकी कामों का भी समावेश होता रहता है और हर एक साधन के साथ बाकी साधनों की भी आवश्यकता हुआ करती है, तो भी व्यवहार में प्रत्येक काम या साधन के नाम में उसी पदार्थ का जिक्र किया जाता है जिसका उसमें अधिक समावेश किया गया हो। माता है सर्वोच्च गुरुत्व
मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव ।।
मातृमान् पितृमानाचार्यवान् पुरूषो वेद ।।
इस मंत्र में माता को ही सबसे पहला स्थान दिया गया है। इसका भी यही कारण है कि माता ही आदि गुरु है और उसी की दया और अनुग्रह के ऊपर बच्चों का ऐहिक, पारलौकिक और पारमार्थिक कल्याण निर्भर रहता है। क्योंकि भगवती परमेश्वरी जगदम्बा ही हमें परमात्मा का ज्ञान दे सकती है और यह तो लौकिक व्यवहार की दृष्टि से भी स्वाभाविक और मुनासिब ही है कि बच्चे तो केवल अपनी माता को ही जानते हैं और उस माता से ही उन्हें यह ज्ञान मिलता है कि उनका पिता कौन है। कहने का तात्पर्य यह है कि आद्या शक्ति माँ ही प्रथम गुरु में ज्ञान प्रदान करती है।
शिष्यों और साधको को इस बात को संज्ञान में लेना चाहिये कि- सद्गुरुदेव नारायण ने शक्ति साधना पर सर्वाधिक बल दिया है, चाहे वे महाविद्या साधनायें रहीं हों या शक्ति के किसी भी रूप में—!! सद्गुरुदेव ने सदा शक्ति साधना करने के लिये शिष्यों को प्रेरित किया। क्योंकि शक्ति के माध्यम से ही जीवन में संहार, सृजन और वर्धन (रचना) संभव होता है। शक्ति के बिना साधक, शिष्य, मनुष्य अथवा किसी भी पदार्थ, वस्तु जीव का कोई अस्तित्व नहीं है।
इसी बात का ध्यान रखते हुये संहार, सृजन व वर्धन शक्ति युक्त प्रत्यंगिरा वेगवती नवनिधि दुर्गा साधना को उन साधको के लिये सृजित कर प्रस्तुत किया जा रहा है, जो साधक जीवन के सर्वतोन्मुखी विकास की लालसा रखते हैं, जिनके जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त करना है।
क्योंकि भौतिक जीवन में संहारात्मक (रक्षात्मक) क्षमता जिसके पास है, वही सृजनात्मक चेतना से आप्लावित हो पाता है, वही रचनात्मक (वृद्धि) की क्रिया में पूर्ण सफल हो पाता है। प्रत्यंगिरा आद्या शक्ति प्रचण्ड वेग से शत्रुओं, बाधाओं का नाश करती हैं, नवनिधि अर्थात् महालक्ष्मी भौतिक सुख-सुविधा, समृद्धि, सौभाग्य, आयु, आरोग्य और जीवन को सबल बनाने का मार्ग प्रशस्त करती हैं, साथ ही नवदुर्गा स्वरूप में साधक के जीवन में शक्ति, ऊर्जा, चेतना का संचार कर अभिवृद्धि का आत्मबल प्रदान करती हैं। शक्ति की आराधना केवल भौतिक कामनाओं की पूर्ति हेतु ही नहीं है, शक्ति के आराधक आध्यात्मिक पथ के दूर तक के पथिक होते हैं। अर्थात् शक्ति सम्पन्न साधक कुण्डलिनी जागरण, साधना सिद्धि, ध्यान सिद्धि आदि में पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं।
सद्गुरु आत्म शक्ति चैतन्य दिवस 21 सितम्बर गुरुवार से सृष्टि पालनकर्ता आद्या शक्ति के दिवस प्रारम्भ होंगे और इसकी पूर्णता शुक्र, रस, ओज से युक्त सर्वार्थ सिद्धि नव दिवसों में सम्पन्न होगी।
नवरात्र के चैतन्य दिवसों में आद्या शक्ति पूर्ण वात्सल्यमय स्वरूप में प्रकृति के कण-कण में व्याप्त होकर चैतन्यता प्रदान करती हैं, इस समय ब्रह्माण्डीय रश्मियों में ऊर्जा व तेज की अधिकता रहती है, जो साधनारत साधक के रोम-रोम में समाहित होकर उसे शक्ति से आप्लावित करती है। इस हेतु प्रत्यंगिरा वेगवती ललिताम्बा शक्ति यंत्र, नवनिधि कमल बीज, आद्या शक्ति माला से साधना सम्पन्न करने से जीवन के सभी भावों में सुफल की प्राप्ति होती है।
प्रत्यंगिरा वेगवती नवनिधि दुर्गा साधना प्राप्त करने हेतु पूर्व में ही आपको अपना नाम, गोत्र, अपना फोटो व राशि भेज कर पूरा पता लिखवाना होगा, जिससे आपकी नाम राशि, गोत्र के अनुरूप पूजन संस्कार सम्पन्न् कर विधि-विधान सहित समय से डाक, कोरियर द्वारा आपके पास प्राणश्चः चेतना युक्त सामग्री सुरक्षित रूप से भेजी जा सकेगी। जिससे नवरात्रि के दिव्यतम दिवसों में प्रत्यंगिरा वेगवती नवनिधि दुर्गा आद्या शक्ति दीक्षा की श्रेष्ठतम क्रिया सम्पन्न हो सकेगी।
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