दुर्लभोपनिषद में अंकित यह श्लोक अपने आप में अनेक विचारणीय तथ्य लिये हुये है। जिसने भी अपने जीवन में दुर्लभोपनिषद का अध्ययन किया है, इन श्लोकों पर चिन्तन किया है, इसकी महत्ता को समझा है। वह समझ सकता है कि जीवन में गुरु की महत्ता क्या होती है? गुरु-कृपा की चेतना क्या होती है? और उससे बड़ी बात गुरु से दूर रहने की पीड़ा क्या होती है?
इस श्लोक में गुरु को पूर्ण देवालय कहा गया है और जब शिष्य अपने गुरु में सभी देवताओं के प्रतिबिम्ब देखने के योग्य बन जाता है, तब वह वास्तविक चिंतन को समझने लगता है। उसके आत्म चक्षु जाग्रत हो जाते हैं, फिर वह आत्मिक रूप से गुरु को अनुभव कर पाता है। एक प्रकार से दुर्लभोपनिषद का प्रत्येक श्लोक, प्रत्येक शब्द आत्म चक्षु जाग्रत करने की क्रिया है।
गुरु के चरण-रज जहां-जहां पड़ते हैं, गुरु ने जहां भी जन-कल्याण हेतु ज्ञान, चेतना प्रदान की है, शास्त्रों ने उस स्थल को पूर्ण देवमय तीर्थ कहा है। उसे हजारों-हजारों तीर्थों, धामों से कहीं अधिक प्राणवान, चेतनावान बताया है। यही कारण है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व जहां भी हमारे ऋषियों-मुनियों ने साधना, तपस्या, ज्ञान का प्रवाह किया वह स्थान आज भी दिव्यतम है। सभी मनुष्य ऐसे स्थानों पर जाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु आराधना करते हैं, कामना करते हैं। साथ ही विज्ञान ने भी स्वीकार किया है कि ऐसे स्थानों पर, वहां के वायु मण्डल में अद्भुत्, विशिष्ट तरंगों व ऊर्जा का प्रवाह होता है।
ऐसा ही दिव्यतम चेतनामय स्थल लूनी धाम, जोधपुर जो सद्गुरुदेव नारायण का आत्मिक प्रिय स्थल है, जिस भूमि पर उनके दिव्यतम सानिध्यता की सुगन्ध आती है। जहां का कण-कण उनके प्राणशः चेतना से आपूरित है। सद्गुरुदेव नारायण द्वारा निर्माण कराये गये तथा उनकी प्राणश्चेतना से आपूरित नारायण-लक्ष्मी मंदिर के इसी दिव्यतम भूमि पर सहस्त्र लक्ष्मी प्राप्ति दीपावली महोत्सव सम्पन्न होगा। जो वास्तविक रूप से शिष्यों के लिये देवालय स्वरूप में है। सद्गुरुदेव नारायण की आत्मिक चेतना युक्त देव भूमि पर साधना कर शिष्य-शिष्यायें नारायण-लक्ष्मी के भाव को आत्म स्वरूप में आत्मसात कर भोग-योग की पूर्णता प्राप्त कर सकेंगे। ज्ञान, ऊर्जा प्राप्त करने हेतु श्रेष्ठ समर्पित साधक के पांव ठिठकेगें नहीं, वर्ष के श्रेष्ठतम महापर्व की पूर्णता प्राप्ति हेतु जोधपुर लूनी धाम आना श्रेयस्कर रहेगा।
अक्टूबर माह (कार्तिक मास) पूर्ण रूपेण गृहस्थ शक्ति लक्ष्मी मास होता है, अतः इसका प्रत्येक दिवस हर तरह की सुलक्ष्मियों को आत्मसात करने का मुहूर्त है, इसीलिये इस कार्तिक मास में परिवार के प्रत्येक सदस्य को लघु स्वरूप में मंत्र जाप, साधना व दीक्षा अवश्य ही ग्रहण करना चाहिये, जिससे आने वाला नूतन वर्ष सुसंस्कारों व सुमंगलमय निर्मित हो सके। हृदय भाव से आप सभी का स्वागत है—!!
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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