नारी को सुकोमल हृदय, वात्सल्य और प्रेम की साकार मूर्ति कहा गया है। तभी तो वह अपना पूरा जीवन पिता, पति, पुत्र की सेवा में गुजार देती है। नारी की यही विशेषता उसे संसार के सभी प्राणियों में श्रेष्ठता प्रदान करती है, उसके गौरवपूर्ण पक्ष को प्रदर्शित करती है।
आज की नारी इन सभी विशेषताओं के साथ स्वयं के हुनर, कौशल और सामाजिक भागीदारी में पूरा योगदान कर रही है। अब समय बदल गया है, नारी का नया रूप समाज के सामने प्रस्तुत हो रहा है, जिसमें वह अपने व्यक्तित्व के प्रभाव को समाज के सामने रखने में सफल हो रही है।
ऐसा नहीं है कि वर्तमान में ही नारी ने अपनी योग्यता, कौशल, व्यक्तित्व का परिचय दिया है, सीता, सावित्री, द्रोपदी, मीरा, रानी लक्ष्मीबाई इन सब ने नारी के गौरवपूर्ण पक्ष को नारी समाज के सामने रखा और समाज को यह बताया कि वह किसी भी रूप में दुर्बल्य, कमजोर, दया की पात्र नहीं है, वह समर्थ, सक्षम और निडर है। इनमें से प्रत्येक के जीवन को यदि हम देखें तो यही मालूम पड़ता है कि इन्होंने संघर्ष की आखिरी सीमा तक लड़ा और विजय प्राप्त की।
दृढ़ इच्छा शक्ति से आपूरित इन सभी देवियों ने अपने जीवन में ईश्वरीय शक्ति को विशेष महत्व दिया, सनातन धर्म के अनुकूल इन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया। इसी कारण ईश्वर की विशेष अनुकम्पा रही है। किसी भी स्त्री का पति शराबी, जुआरी गलत क्रियाओं में लिप्त है, तो यह उसके लिये दुर्भाग्य से कम नही। इन स्थितियों में नारी का जीवन नारकीय बन जाता है। साथ ही यदि संतान पक्ष भी मार्ग से भटक जाये तो उसका जीना ही दुष्कर होता है। यदि ससुराल पक्ष लोभी, विकृत मानसिकता, अत्याचारी स्वभाव के हों तो वह सुहागन होते हुये भी उसका जीवन नरकमय होता है।
नारी के सम्मुख समस्यायें अनंत हैं, जिनके निदान हेतु उन्हें दैवीय शक्तियों का आसरा लेना चाहिये, सती सावित्री ने अपने जीवन साथी पति सत्यवान् को मृत्युरूपी यमराज के आगोश से निकालने के लिये पूर्ण आत्मिक शक्ति के प्रभाव से ही क्रिया की और उसे उसमें पूर्ण सफलता भी प्राप्त हुयी और श्रेष्ठ संतानों से भी उसका गृहस्थ जीवन परिपूर्ण हुआ। उक्त सभी क्रियायें दैवीय शक्तियों और स्वयं के श्रद्धा व समर्पण के भाव चिन्तन से ही, सांसारिक गृहस्थ जीवन में अनुकूलता आती ही है।
इसी हेतु सावित्री सुहाग करवा शक्ति दीक्षा व शिव गौरी सुख-सौभाग्य वृद्धि लॉकेट करवा शक्ति के चैतन्य दिवस पर धारण करने से पति-पत्नी के मध्य आत्मिक जुड़ाव स्थापित हो सकेगा, साथ ही परिवार व संतान आरोग्य, सुख-समृद्धि, सौभाग्य युक्त बन सकेगी। सावित्री सुहाग शक्ति की चेतना से आपूरित इस दीक्षा के माध्यम से पति के दीर्घायु जीवन की कामना पूर्ण होती ही है। श्रेष्ठ शुद्ध भाव से दीक्षा ग्रहण करने पर गृहस्थ जीवन की कुशलता, सुख में वृद्धि प्राप्त हो सकेगी।
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