माँ दुर्गा के तीनों महान स्वरूपों के बारे में श्री देव्यथर्वशीर्ष में लिखा है कि हे देवी! आप चित्त स्वरूपिणी महासरस्वती हैं, सम्पूर्ण द्रव्य, धन-धान्य रूपिणी महालक्ष्मी हैं तथा आनन्दरूपिणी महाकाली हैं, पूर्णत्व पाने के लिये हम सब तुम्हारा ध्यान करते हैं, हे! महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी स्वरूपिणी चण्डीके, आपको बारम्बार नमस्कार है, मेरे अविद्या, अज्ञान, अवगुण रूपी रज्जु की दृढ़ ग्रन्थी काट कर मुझे शक्ति प्रदान करें।
नवरात्रि की ये नौ रात्रियां अपने आप में तीन आदि शक्तियों अर्थात् महाकाली, लक्ष्मी एवं सरस्वती को शक्ति साधना के द्वारा जीवन में अनुकूल करने की रात्रियां हैं। इन्हीं त्रिशक्तियों से ही जगत की समस्त शक्तियों का उद्भव या संरचण हुआ है। साधक इन तीनों शक्तियों द्वारा अपनी आंतरिक एवं बाह्य आसुरी शक्ति पर विजय प्राप्त कर सकता है। भौतिक जगत में इस शक्ति का सबसे श्रेष्ठ स्वरूप महालक्ष्मी है, जो सीमा-रहित, नित्य निवासिनी, विष्णु की नारायणी शक्ति है और इसी शक्ति के विभिन्न स्वरूप-लक्ष्मी, श्री, पदमा्, पदमालिनी, कमला इत्यादि है।
भौतिक जीवन के लिये सबसे पहले यही महत्वपूर्ण होता है कि उसके जीवन में कोई बाधा, रोग, हीनता ना हो उसके पश्चात् उसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे अर्थात सभी सुख-सुविधा, साधन उसके जीवन में उपलब्ध हो, इसके साथ ही वह ज्ञान, बुद्धि, विवेक, सम्मोहन, आकर्षण से युक्त भी हो। यह प्रत्येक सांसारिक व्यक्ति की इच्छा होती है। त्रि-शक्ति की उपासना हमारे इन्हीं मनोभावों के अनुरूप फल प्रदायी हैं।
त्रि-शक्ति स्वरूप में माँ आद्या शक्ति की चेतना आत्मसात करने से जीवन की जड़ता, नीरसता, हीनता समाप्त होती है और व्यक्ति क्रिया शक्ति युक्त होकर कर्मयोगी स्वरूप में निर्मित होता है, जिससे उसके जीवन में धन-धान्य, ऐश्वर्य, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और वह ज्ञान, विवेक, सहनीशलता, धैर्य, संयम से परिपूर्ण होकर जीवन को सही रूप में जी पाता है और अपने जीवन को अपनी अपेक्षा अनुरूप बना पाने में सफल हो पाता है।
विक्रम सम्वत् 2075 चैत्रीय नवरात्रि के चेतनावान क्षणों में आद्या शक्ति की ओजस्वी-तेजस्वीमय रश्मियों को त्रि-शक्ति दीक्षा से आत्मसात करने से आप शक्ति से युक्त हो सकेंगे और जीवन को असुरमय निर्मित करने में सहायक बाधाओं, कष्टों का निवारण होगा साथ ही जीवन को अपने अनुसार निर्मित करने की योग्यता से युक्त बन सकेंगे, यह दीक्षा साधक के सर्वांगीण विकास में सहायक और उच्चता प्रदायी है।
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