देश-विदेश में शोध एजेंसियों के अध्ययन अनुसार मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिशन का प्रभाव शरीर के कई अंगो पर पड़ता है। अधिक समय तक मोबाइल को कान से लगाकर रखने से इससे निकलने वाली विद्युत चुंबकीय तंरगें दिमाग के ऊत्तकों को क्षतिग्रस्त करती हैं। शोध एजेंसियों की रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल फोन प्रयोग न करने दें, ब्रिटेन के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सदस्य डा- गेरार्ड हायलैंड के अनुसार मोबाइल फोन से नॅान थर्मल रेडिएशन निकलती है। ये किरणे धीरे-धीरे हमारे कोशिकाओं के स्वरूप को क्षतिग्रस्त कर देती है। बच्चों के लिए ये ज्यादा हानिकारक है क्योंकि बच्चों का इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) पूर्ण रूप से विकसित नहीं होता है। डॅा- हायलैंड के अनुसार माइक्रोवेव्स का कोशिकाओं पर उसी प्रकार प्रभाव पड़ता है, जिस प्रकार रेडियों की तरंगों में व्यवधान आने पर प्रसारण गड़बड़ा जाता है। ये किरणें कोशिकाओं की मजबूती तथा उनकी वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
छोट बच्चें, विद्यार्थी और मोबाइल भारत में मोबाइल फोन का प्रयोग करने वाला एक बड़ा वर्ग युवाओं और बच्चों का है। 8-10 वर्ष का बच्चा भी अपने पैरेंट्स से मोबाइल के मॅाडल्स के फीचर्स के बारे में बात करता है। उस पर गेम खेलता है, वीडियोज देखता है, गाने सुनता है। मोबाइल ऐप इंस्टाल करता है और जब वह उसमें नए-नए विकल्प तलाश कर उनके बारे में बताता है तो पैरेंट्स खुश होकर यह बताते हैं कि उनका बच्चा कितना बुद्धिमान है। बाजार में उपलब्ध मॅाडल्स या नए आने वाले मोबाइल्स की जानकारी भी अधिकतर बच्चों को ही होती है।
लेकिन बच्चों में मोबाइल के प्रति अत्यधिक लगाव शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके बाल मस्तिष्क को भी विकृत व दूषित बना रहा है। मोबाइल, टी-वी- के कारण बाल अपराधों में भीषण वृद्धि हुई, इसका कारण यही है कि टी-वी चैनल पर प्रकाशित धारावाहिक, मोबाईल फोन व इन्टरनेट पर उपलब्ध अश्लील, हिंसात्मक वीडियोज बच्चों के अवचेतन मन पर अंकित हो जाते हैं, जिसकी दुष्प्रेरणा से बच्चों के विचारों में अशुद्धता और अपराध की प्रवृत्ति विकसित होने लगती है। मोबाइल फोन के कारण खेल-कूद, व्यायाम आदि से बच्चे दूर होते जा रहें हैं, जिसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर स्पष्ट रूप से पड़ता ही है। मोबाइल फोन किशोर बच्चों के एकाकी प्रवृत्ति में बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया आदि का उपयोग, एक समय से पूर्व अश्लील कंटेट, वीडियोज, फोटोज आदि से बच्चे गलत दिशा की ओर बढ़ने लगते हैं। जिससे उनका शारीरिक-मानसिक विकास रूक जाता है, इससे उनकी शिक्षा पर इसका काफी गहरा प्रभाव होता है। जो समय अध्ययन और नई जानकारियां प्राप्त करने के लिए होना चाहिए, वह सोशल मीडिया, मूवीज आदि में व्यय होता है, जिससे आपका बच्चा पढ़ने में पीछे हो सकता है। उसकी स्मरण शक्ति और एकाग्रता में कमी आ सकती है।
मोबाइल के ज्यादा उपयोग से सबसे पहले मायोपिया ( दृष्टि दोष) प्रारम्भ होता है। चमकती स्क्रीन पर अधिक समय तक नजरें टिकायें रहने से यह समस्या होती है। आंकड़ों के अनुसार 12 वर्ष के हर 10 बच्चों में 6 बच्चे इसकी जकड़ में आ रहें हैं। इसमें बच्चों को सिर दर्द की भी समस्या हो सकती है। चिकित्सकों के अनुसार 8 से 15 वर्ष के बच्चे मोबाइल एडिक्शन के चलते डिप्रेशन, एंजाइटी, अटैचमेंट डिसआर्डर और मायोपिया जैसी बीमारी की जकड़ में आ रहे हैं। मनोचिकित्सा संस्थान रिनपास व सीआइपी – रांची के आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक माह इस तरह से पीडि़त 200 से अधिक बच्चे आ रहें हैं।
बच्चों को मोबाइल फोन से होने वाले हानिकारक प्रभावों से बचाना अति आवश्यक है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे व दीर्घकालीन परिणामों से बचा जा सके। अनेक अभिभावकों का कहना है कि मोबाइल फोन से बच्चे के साथ सम्पर्क बना रहता है और वे इन्टरनेट का उपयोग कर नई जानकारियां व तकनीक से जुड़े रहते हैं। इसके साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से भी वे मोबाइल अपने बच्चों को देते हैं।
लेकिन इसके दुष्प्रभावों और हानियों को देखते हुए मोबाइल का उपयोग सीमित व नियमबद्ध तरीके से करना अधिक उचित होगा। प्रत्येक कार्य में अनुशासन व आवश्यकता अनुसार किया गया कार्य ही हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
एक अध्ययन के अनुसार मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से ब्रेन ट्यूमर होने का खतरा सामान्य व्यक्ति के तुलना में ढ़ाई गुना अधिक होता है।
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