होली महोत्सव वर्ष का श्रेष्ठतम महापर्व है जिसके माध्यम से शारीरिक -मानसिक शत्रुओं को पूर्ण रूप से भस्म कर सुस्थितियों की प्राप्ति की कामना, साधना उपासना की जाती है, जिससे जीवन में शांति, सुवृद्धि, श्रेष्ठता, उच्चता का मार्ग प्रशस्त होता रहे। हिन्दू धर्म, संस्कृति का पूरा ताना-बाना एक प्रकार से साधनामय जीवन रूप में प्रतिष्ठित है, जो स्वयं में एक विशिष्टता समेटे हुये है। प्रत्येक पर्व में कुछ विशिष्ट प्राप्त करने का भाव-चिंतन समाहित होता है। जिसे चेतनावान, जाग्रत व्यक्ति भली-भांति जानते ही नहीं बल्कि उसे क्रिया रूप में आत्मसात करने का दृढ़ संकल्प स्वयं में रखते हैं।
अनेक पर्व-त्यौहार सनातन धर्म में होते हैं, परन्तु होली, नवरात्रि व दीपावली पर्व का सर्वाधिक महत्व माना जाता है। जिसे अधिकांश भारतीय हिन्दू पूरी तन्मयता से सम्पन्न करते हैं। अध्यात्म जगत में इन दिवसों की महत्ता अक्षुण्ण व पूर्ण फलदायी है। बंसत ऋतु की पूर्णता पर जब यह महापर्व दस्तक देता है, तो एक अनोखी तरंग, उत्साह, जोश पूरे प्रकृति में दृष्टिगोचर होती है। यह महापर्व वास्तव में शुद्धि और शोद्धन का पर्व है, जब हम सम्वत् नववर्ष से पूर्व वर्ष भर की मलिनता को भस्मीभूत कर होलिकाग्नि की तपन से कुन्दन की भांति कान्तिमय होने की विशिष्ट क्रियायें सम्पन्न करते हैं।
यह अहोभाग्य है सिद्धाश्रम साधक परिवार का जिसे दिव्य विभूति महापुरुष का सानिध्य प्राप्त हो सका, जिन्होंने परम्परा, आडम्बरवादी, दिखावे पूर्ण सांसारिक क्रियाओं से हटकर इन चेतनावान क्षणो का विशिष्ट उपयोग साधनात्मक क्रियाओं द्वारा सम्पन्न करने का साहस व प्रेरणा प्रदान की और साधनात्मक मार्ग पर अविरल रूप से गतिशील किये हुये हैं।
इस सिद्धाश्रम साधक परिवार के बाहर की दुनिया देखने पर हमें यह आभास होता है कि वास्तव में हम क्या प्राप्त करने में सफल रहें। अन्यथा हमारा भी जीवन मलिन व दूषित पूर्ण कार्यो से युक्त होता है, जैसा कि इस विशिष्ट महापर्व पर अधिकांश देखने को मिलता है कि अधिकांश लोग, रंग-गुलाल, नशेबाजी और अन्य अर्नगल क्रियाओं के साथ मनाते हैं। यही हमारे जीवन का सौभाग्य है कि हम सद्गुरु के चरणों के अनुगामी बन उनके बताये पथ की ओर अग्रसर हैं और हमारा जीवन इन अर्नगल क्रिया-कलापों से सुरक्षित है।
वास्तव में होली उत्साह, आनन्द, हर्षोल्लास, नृत्यमय होने का महापर्व है, स्वयं को नवीन ऊर्जा, चेतना से युक्त करने का दिवस है। हिरण्याकश्यप जैसी नास्तिक असुरी शक्तियों पर प्रहलाद रूपी आस्तिकता का ध्वजा रोहण करने का दिवस है। भक्त द्वारा भगवान का साक्षात्कार करने का पूर्ण चेतनावान क्षण है।
होली महापर्व मनाने का मूल चिंतन भी यही है कि हम अपने जीवन की मलिनता को समाप्त कर नूतन, नवीन रूप में स्वयं का निर्माण करने हेतु ऊर्जा से युक्त हों, क्योंकि होली पश्चात् शक्ति पर्व इन्हीं क्रियाओं को आत्मसात करने का चिंतन-भाव है। हिन्दू धर्म में जीवन यापन की विधि इन्हीं रूपों में बतायी गयी है, इसके पीछे का चिंतन यही है कि व्यक्ति अपने जीवन यापन और प्रगति, वृद्धि के लिये आवश्यक ऊर्जा को संग्रहित करता रहे, जिससे उसकी उन्नति- प्रगति में किसी भी तरह की बाधा, अड़चन उत्पन्न ना हो, और यदि उत्पन्न भी हो तो वह इन्हीं साधनात्मक ऊर्जा शक्ति के माध्यम से उन पर विजय प्राप्त कर सके।
होली आनन्द उत्सव में आपका हृदय भाव से सपरिवार स्वागत है। इस दिव्य अवसर पर कैलाश सिद्धाश्रम में नारायण भगवती चेतना प्राप्ति पूर्ण पौरूष कामदेव अनंग शक्ति यश वैभव धनदा लक्ष्मी शक्तिपात दीक्षा सद्गुरुदेव – माता जी व गुरु परिवार के सानिध्य में होलिका दहन, साधना, हवन, अंकन की श्रेष्ठतम क्रियाओं के साथ सम्पन्न करेंगे। जिससे जीवन के अवरोध, अटकाव, दीन-हीन स्थिति, अभाव पूर्ण अवस्थायें होलिकाग्नि में भस्मीभूत हो सकेंगे और जीवन हर स्वरूप में सर्व आनन्दमय मंगल चेतना से आपूरित हो सकेगा। जिससे जीवन में सभी रंग सुख-समृद्धि, प्रसन्नता, सम्मोहन, सौन्दर्य ओज, तेज, कान्ति, प्रेम, आनन्द का पूर्ण रूपेण आगमन होगा।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,