अर्थात् इस पृथ्वी पर जो जगत है, वह ईश्वर के द्वारा स्थापित है और इस जगत का त्याग पूर्वक भोग करना चाहिए। अनुचित तरीके से अर्जित धन अथवा किसी दूसरे के धन की आकांक्षा न करते हुये सुकर्म से अर्जित धन से ही जीवन में सभी सांसारिक सुखों का भोग व आनन्द प्राप्त करना चाहिये। इस मंत्र से यह स्पष्ट है कि यह संसार धर्म और धर्म के साथ ही अर्थ प्राप्ति कर काम अर्थात् भोग के लिये बना है।
परन्तु जीवन में सुख-भोग की प्राप्ति तब ही संभव होती है, जब जीवन सभी दोष-बाधा से मुक्त हो। यदि जीवन में सभी तरह की सुख-सुविधा हो और जीवन निरन्तर व्याधियों, बाधाओं से ग्रसित हो तो जीवन में सुख-भोग का आनन्द नहीं प्राप्त होता है। इसलिए सर्वप्रथम जीवन से व्याधियों, दोषों व बाधाओं का शमन आवश्यक है, जिसे हम आत्मरक्षा की क्रिया भी कह सकते हैं।
भारतीय संस्कृति में विभिन्न व्रत, पर्व, त्यौहार इत्यादि की रचनायें जीवन के चारों पक्षों को ध्यान में रखते हुये की गई है और प्रत्येक पर्व किसी ना किसी पक्ष को सुदृढ़ करने का भाव लेकर उपस्थित होता है। साधक को उसी भाव को आत्मसात करते हुये उस पक्ष को सशक्त बनाने की क्रिया सम्पन्न करनी होती है। होली महापर्व इसी दृष्टि से तंत्र, सम्मोहन व आनन्द की क्रियाओं का विशिष्ट दिवस है।
होली महापर्व का वर्णन महाऋषि जैमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र में तथा कत्थक ग्रह सूत्र में आया है। वास्तव में होली पूर्णिमा दिवस स्त्रियों के लिये भी सौभाग्य, सम्मोहन, आकर्षण, सौन्दर्य रति अनंगमय दिवस भी है। इस दिन काम तत्व अर्थात् सुख-भोग, मनोकामना पूर्ति व वशीकरण, सम्मोहन की साधनायें सम्पन्न करना विशेष सिद्धि प्रदायक है।
इस होली दिवस पर विशेष रूप से दो पक्षों को सशक्त, मजबूत बनाने की क्रिया सम्पन्न करनी है। प्रथम स्वयं को सभी व्याधियों, दोषों और विकारों से मुक्त करना अर्थात अपना और अपने परिवार को भय मुक्त जीवन प्रदान करना है, द्वितीय स्वयं को ऊर्जा, उत्साह, जोश और सम्मोहन, आकर्षण, प्रभावशाली व्यक्तित्व में वृद्धि की क्रिया करनी है। इस हेतु आगे के पृष्ठों पर दो विशिष्ट साधनायें प्रकाशित की जा रही हैं, प्रत्येक साधक को अपने जीवन में दोनों विशिष्ट साधनाओं को सम्पन्न करना ही चाहिये, क्योंकि सांसारिक जीवन में भय मुक्त जीवन और सम्मोहन दोनों तत्वों की अनिवार्यता इसलिये है कि संसार में प्रगति-उन्नति का मार्ग इनके द्वारा ही पूर्णता युक्त बनता है।
घर में अभिशप्त आत्माओं की उपस्थिति जीवन में ऐसा अभिशाप है जिससे पूरा का पूरा जीवन और परिवार अस्त-व्यस्त और त्रस्त हो जाता है। स्थिति यहां तक बदसूरत हो जाती है कि पीडि़त व्यक्ति दीन-हीन, लाचार बन जाता है और घबरा कर आत्महत्या करने की बात भी सोचने लगता है। यह दोष पूर्व प्रारब्ध से भी सम्बन्धित होता है, जीवन के उन्नति-प्रगति व सुख-शांति के लिये इस तरह के दोषों का शमन अति आवश्यक है। ऐसे समस्त पितृ, तंत्र, ग्रह, भूमि आदि दोषों की समाप्ति यदि पूर्ण रूप से संभव है तो वह केवल होली की ही रात्रि पर। होली की रात्रि की जाने वाली यह साधना तो विधान में सरल है परन्तु प्रचण्ड प्रभावशाली है।
होलिका दहन की रात्रि 9 बजे कपाल भैरव गुटिका स्थापित कर धूप, दीप, सिन्दूर व गुड़ के नैवेद्य से पूजन करें तथा उसी के ठीक बगल में मधुरुपेण रूद्राक्ष स्थापित कर उसके चारों ओर दस हकीक पत्थर स्थापित करें। मधुरुपेण रूद्राक्ष का पूजन केवल पुष्पों से कर सभी दस हकीक पत्थरों पर सिन्दूर का तिलक कर सर्व दोष बाधा मुक्ति माला से निम्न मंत्र की दो माला मंत्र जप करें-
मंत्र जप करते समय तेल का दीपक लगा लें। यदि मंत्र जप के मध्य आहट व फुस-फुसाहट सुनाई दे तो भयभीत न हों। मंत्र-जप के उपरांत भैरव गुटिका को स्थापित रहने दें व नियमित पूजन करें, शेष सामग्री को काले वस्त्र में बांध कर विसर्जित कर दें।
होली की रात्रि तो सम्मोहन वशीकरण, यक्षिणी, अप्सरा, उर्वशी साधनाओं की विशेष रात्रि है और कोई भी साधना पूर्णिमा दिवस पर सम्पन्न करने से सफलता की संभावनायें कई गुना बढ़ जाती है। जीवन में प्रभावी सम्मोहन-आकर्षण का होना अति आवश्यक है, सम्मोहन तत्व भौतिक जीवन का आधार है, बिना इसके व्यक्ति अपना वर्चस्व कहीं पर भी स्थापित नहीं कर सकता और सांसारिक जीवन यशमय व वर्चस्व युक्त होना बहुत ही आवश्यक है, अन्यथा व्यक्ति के जीवन का कोई महत्व नहीं रहता। इसके साथ ही प्रेम, विवाह या दाम्पत्य जीवन में प्रेम, मधुरता व सर्मपण की स्थितियां भी सम्मोहन शक्ति पर निर्भर होती हैं।
जिसके द्वारा जीवन से नीरसता और जड़ता समाप्त की जा सकती है। इस साधना द्वारा पुरुष या स्त्री सर्व सम्मोहन शक्ति से युक्त होते हैं, जिससे उनके जीवन में एक अनोखा ही उत्साह, ऊर्जा का संचार होता है और वे जीवन के समस्त रसों का पूर्ण रूप से आनन्द प्राप्त कर पाते हैं। होलिका दहन की रात्रि 10 बजे स्नानादि से निवृत्त होकर अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर सम्मोहन यंत्र स्थापित करें, यंत्र पर कुंकुम से क्लीं अंकित करें। पश्चात् सर्व सम्मोहन व प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ अपने वर्चस्व में वृद्धि हेतु संकल्प करें। फिर निम्न मंत्र का कामदेव रति माला से तीन माला मंत्र जप करें।
यदि विवाहित दम्पति दोनों ही यह साधना सम्पन्न कर लें तो उनके जीवन में अतिरिक्त मधुरता, प्रेम, समर्पण का भाव विद्यमान होता है। साधना पूर्ण होने के दूसरे दिन सभी सामग्री किसी आम या अशोक की जड़ में दबा दें।
सामग्रीः सवा मीटर लाल कपड़ा लें, 100 ग्रा- चावल, 100 ग्रादही, एक जल वाला नारियल। सांध्य बेला में घर के उत्तर पूर्व दिशा में लाल कपड़े को बिछा लें और उस पर एक दोने में दही, चावल व नारियल रख एक पोटली बना लें फिर पूरे घर के प्रत्येक कोने, कमरे का भ्रमण पोटली हाथ में लेकर करें, भ्रमण पश्चात् किसी जलाशय, नदी, तालाब, कुआं आदि में पोटली विसर्जित कर घर वापिस आ जायें, ध्यान रहे वापस आते समय पीछे मुड़ कर न देखे, न ही किसी से बात करें।
इस प्रयोग द्वारा किसी भी प्रकार की ऊपरी बाधा, काला जादू अथवा किसी भी इस तरह की समस्या का समाधान होता है और प्रेतादि बाधायें शांत होती हैं।
भोर काल में सरसों का उबटन बना कर अपने पूरे देह पर लगाकर मलें, मलने के पश्चात् निकली हुई गंदगी की एक पुडि़या बनाकर उसमें सरसों के पांच दाने मिलाकर होलिका अग्नि में आहूत कर दें।
इसके द्वारा किसी भी तरह के रोग-शोक, बाधा अथवा शारीरिक-मानसिक व्याधि समाप्त होती है तथा व्यक्ति निरोगी काया, हष्ट-पुष्ट देह से युक्त बनता है। ये दोनों प्रयोग साधक को होलिका दहन पूर्णिमा दिवस पर सम्पन्न करें।
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