इस गुरु पूर्णिमा पर्व पर स्वयं चिन्तन करें कि आपके गुरु ने आपको कितना स्नेह, प्रेम, चिन्तन और साधनात्मक ऊर्जा, तपस्यांश शक्ति प्रदान की है और आप इन चेतनाओं को कितना ग्रहण कर पाये हैं। हम भौतिक सुख-सुविधाओं से स्वयं को पूर्ण करने की क्रिया निरन्तर कर रहें हैं, जिसका कोई अन्त नहीं होता है और ना ही हमें जीवन में पूर्ण सन्तुष्टि की प्राप्ति हो रही है। इसके विपरीत आध्यात्मिक साधनात्मक जीवन की उन्नति के लिये हमारा प्रयास आज भी न्यूनतम है, जो वास्तविक रूप से हमें आत्मिक, मानसिक मजबूती प्रदान करता है और जो कर्म शक्ति की वृद्धि में सहायक है और जिससे जीवन में संतुष्टि व शान्ति की प्राप्ति होती है। देव रूपी देह में स्थित आत्म साक्षात्कार करने के लिए हमें स्वयं व अपने गुरु पर सम्पूर्णता से विश्वास करना होगा, अपनी भक्ति से, अपनी साधनात्मक शक्ति से उस अन्तर को समाप्त करना होगा, जो संदेह रूप में सदैव हमारे साथ चलता है। गुरु वह कड़ी है, जो हमें आत्मज्ञान, आन्तरिक सुख व जीवन में हर परिस्थिति को सहनशीलता से आत्मसात करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
जीवन सद्कर्म-सद्चिन्तन के साथ तब ही जीया जा सकता है, जब हम भौतिक व आध्यात्मिक जीवन का संतुलन बनाकर सद्मार्ग पर गतिशील रहें। श्रेष्ठ साधक को गुरुत्व शक्ति के ज्ञान का बोध होता है और निरन्तर उस ज्ञान, चेतना की वृद्धि का भाव-चिंतन ग्रहण करने की अभिलाषा, इच्छा मन में रखता है। अपने भीतर अग्नि स्वरूप में ऊर्जा को जाज्वल्यमान रखने के लिये गंगोत्री में पापाकुंशा गंगा शक्ति दीक्षा व बद्रीनाथ में छठी इन्द्रिय जागरण शक्तिपात दीक्षा दिव्यतम स्वरूप में उच्चकोटि का साधनात्मक महोत्सव सम्पन्न हुआ। पारिवारिक व्यस्तताओं के फलस्वरूप आप उक्त महोत्सव में नहीं आ पायें तो आपके लिये वर्ष का सर्वश्रेष्ठ महापर्व गुरु पूर्णिमा पर सद्गुरुदेव के आशीर्वाद से उक्त साधनायें, दीक्षायें चन्द्र ग्रहण श्रेष्ठ पर्व पर आत्मसात करने से भगवती नारायण चेतना युक्त सिद्धाश्रम शक्तिमय क्रियाओं से पूर्ण रूपेण आपूरित हो सकेंगे। आपके लिये ऐसे सुअवसर पर सपरिवार आना शुभ-लाभमय निर्मित हो सकेगा।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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