श्री कृष्ण कथा संक्षेप में अनेक पुराणों, महाभारत, श्रीमद्भागवत आदि में कृष्ण कथा प्राप्त होती है। द्वापर युग में मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन राज्य करते थे। उनका पुत्र कंस अत्यंत बलवान एवं प्रतापी था। किन्तु अत्याचारी बहुत था। उसने अपने पिता को बन्दी गृह में डालकर स्वयं राज्य संभाल लिया। कंस की एक बहन थी देवकी, उसका विवाह यादव वंश के वासुदेव के साथ हुआ। देवकी की विदाई के समय आकाशवाणी हुई अरे कंस! तेरी बहन देवकी का आठवां पुत्र ही तेरा वध करके पृथ्वी पर तेरे अत्यचारों को समाप्त करेगा। यह सुनकर कंस ने देवकी का वध करना चाहा। तब वासुदेव ने कंस को रोककर कहा कि- मैं अपने आठों ही पुत्र समय-समय पर स्वयं ही लाकर सौप दूंगा यह सुनकर कंस ने उन दोनो को कारागृह में डाल दिया और मन में सोचा के मैं देवकी की प्रत्येक संतान को जन्मते ही मार डालूंगा।
देवकी की संताने होती रहीं और कंस उनको मारता रहा। आठवीं संतान भाद्रपद अष्टमी को रात बारह बजे पैदा हुई। माया के प्रभाव से जेल के ताले खुल गए और पहरेदार सारे सो गये, वासुदेव बच्चे को टोकरी में रखकर यमुना पार कर गोकुल में नन्द बाबा के यहाँ पहुँचे। उसी दिन नन्द पत्नी यशोदा को पुत्री हुई थी। वासुदेव ने अपने पुत्र को वहाँ रख दिया और उनकी पुत्री को लेकर वापस उसी रास्ते मथुरा में अपने बन्दीगृह में आ गये। अन्दर आते ही सारे ताले वापस लग गये और पहरेदार भी जाग उठे। उस बालिका (योगमाया) ने रोना शुरू कर दिया। समाचार पाकर कंस दौड़ा-दौड़ा बंदीगृह में आया और उसे जमीन पर पटक कर मार देने के लिए जैसे ही उपर उठाया, वह बच्ची हाथ से छूटकर आकाश में चली गई और उसने कहा-रे कंस! तुझे मारने वाला तो और कहीं पैदा हो चुका हैं। कंस चिंतित हुआ और उसने वासुदेव-देवकी को मुक्त कर दिया।
नन्द-यशोदा के यहाँ कृष्ण का बहुत स्नेह से लालन-पालन होता रहा। कंस को गुप्तचरों से कृष्ण के बारें में कुछ-कुछ पता चला। वह समय-समय पर कृष्ण को मारने के अनेक उपाय करता रहा, किन्तु सफल नहीं हुआ। बड़े होकर कृष्ण ने मथुरा में कंस का वध करके अपने नाना उग्रसेन को पुनः राजा बनाया। भगवान कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन अनेक असंभव से लगते कार्यों को सम्पन्न करने से भरा पड़ा हैं। गोवर्धन पर्वत उठाकर गोवंश और ग्वालों की रक्षा की। वे पाण्डवों के परम सहायक थे। द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उन्होंने भरी सभा में उनकी लज्जा बचाई। जरासन्ध का वध करवाकर सोलह हजार स्त्रियों को बंदीगृह से छुड़ाया। रणभूमि में गीता जैसा अलौकिक उपदेश दिया। समुद्र के बीच नई नगरी द्वारका बसाई। कृष्ण के जीवन के सभी कार्यों का तो कथन करना ही कठिन है। ऐसे ही कल्याण कारी कार्यों और धर्मपालन के कारण श्री कृष्ण विश्वभर में पूजनीय हैं।
कंस रूपी असुरों के संहार व सांसारिक जीवन को योगमय बनाने के लिये जन्माष्टमी के दिन व्रत रखा जाता है। साथ ही साधना, पूजा, अर्चना, मंत्र जाप, गीता का पाठ सम्पन्न करने से योगेश्वर कृष्णमय सुस्थितियां निर्मित होती हैं। इस तरह के दिव्यतम पर्व के भाव-चिंतन को धारण करने से दुःख, विषाद, रोग, कष्ट, शत्रुओं की कुस्थिति से निजात प्राप्त होती है और जीवन निरन्तर सुकर्मों के प्रभाव से श्रेष्ठमय निर्मित होता है।
बहुत जगह विशेषतः आस्थावान साधक आठ दिनों तक विधि-विधान से पूजा, अर्चना, साधना सम्पन्न करते हैं। इसके प्रभाव से सांसारिक जीवन में अष्टसिद्धि नवनिधि की स्थितियों का विस्तार होता है।
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