होलाष्टक से फाल्गुन पूर्णिमा तक के आठ दिवस पूर्ण रूप से तंत्र रूपी देह को जीवन में निरन्तर क्रियाशील रखने का साधनात्मक भाव-चिंतन है। इन आठ दिवसों में जो भी साधनायें की जायें वे पूर्ण सफल होती हैं, इसलिये तांत्रिक लोग प्रतिवर्ष इस समय का इन्तजार करते हैं, अघोर पंथ, नाथ सम्प्रदाय, औघड़ सम्प्रदाय, नागा सम्प्रदाय इन आठ दिनों में विशेष साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न करते हैं। इस कल्प में कोई भी साधना सम्पन्न की जा सकती है। जिन साधनाओं में पूरे वर्ष सफलता न मिल पाई हो, उन साधनाओं में इस तंत्र महापर्व पर सफलता पायी जा सकती है।
होली महापर्व पर प्रकृति का अणु-अणु चैतन्य होने के साथ ही इस प्रकार का वातावरण निर्मित करती है कि साधक को उसके परिश्रम का सौ गुना अधिक प्रभाव प्राप्त होता है। इन दिवसों में प्रकृति हर स्वरूप में साधक के लिये सहायक व उसके अनुरुप परिणाम प्रदान करती है। स्पष्ट शब्दों में प्रकृति इस समय पूरी क्षमता से वंसतमय होती है।
होली पर्व जीवन में व्याप्त दुःख-दारिद्रय रूपी दोषों से मुक्त होने का पर्व है, अपने इस जन्म के दोषों को तथा पिछले जन्म के दोषों को भी दूर कर अपना भाग्य स्वयं लिखने में समर्थ होने का पर्व है। जो भी अपने जीवन को संवारने की इच्छा रखते हैं, अपने और अपनों का हित करने, उन्हें प्रभावित करने की शैली अपनाना चाहते हैं, उनके लिए यह दिव्यतम अवसर है, जिसका उपयोग कर वे अपने जीवन को बदल सकते हैं।
होलाष्टक के चैतन्य अवसर पर 08-09 मार्च को सिद्ध चैतन्य स्थल कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर में सभी संताप, दुख, तंत्र-शत्रु बाधाओं, धनहीनता के शमन हेतु विशिष्ट तांत्रेक्त साधनात्मक क्रिया परम पूज्य सद्गुरूदेव होलाग्नि प्रज्ज्वलित कर सिद्धाश्रम शक्ति तेज पुंज युक्त क्रियायें प्रत्येक साधक को सम्पन्न करायेंगे। जिससे प्रत्येक साधक के जीवन से सभी पाप, दोष, विकार, न्यूनता, धनहीनता, जड़ता, बाधा, रोग, व्याधि, पीड़ा होलाग्नि के तेज में भस्मीभूत हो सकेगी। इसी के फलस्वरूप आने वाला नूतन वर्ष पूर्ण रूप से सहस्र लक्ष्मी को चिरस्थायित्व शक्तियों युक्त कर सकेंगे और जीवन को उच्चतम स्थिति में स्थापित कर सांसारिक जीवन की सर्व कामनायें पूर्ण होने से जीवन में सौन्दर्य, सम्मोहन, वशीकरण, निर्भयता, शत्रु दमन और अक्षुण्ण धन वैभव के साथ सिंहमय चेतना शक्ति से युक्त हो सकेंगे।
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