काम की अधिकता न तो विचलित करती है, न थकाती है। हम परेशान होते हैं अपनी अस्त-व्यस्त कार्यशैली के कारण। काम का दबाव और तनाव हमें चिड़चिड़ा बना देता है। अपने ही लोगों से अकारण हम उन्हें अपमानित करते हुये बात करने लगते हैं। नतीजे में सारे सम्बन्ध बोझिल हो जाते हैं। अपने काम को बिल्कुल कम न करें, व्यस्तता में काट-छांट न करें, केवल एक प्रयास करें, अपने निजी जीवन को हल्का-फुल्का बना लें।
हमारा पर्सनल लाइफ जितनी लाइट होगी, उतना ही हम मेहनत और वक्त दोनों का तालमेल सही तरह बैठा पायेंगे। निजी जीवन का अर्थ है, खुद के साथ रहना। थोड़ी देर अपने आप को अकेला रखें और उस अकेलेपन को एकांत में बदलें और यह काम पूरा हो सकता है मेडिटेशन से। केवल 10-15 मिनट का ध्यान आने वाले 24 घंटे के लिये रिलेक्स, लाइट और कंफरटेबल बना देगा। इसे संयम न माने, यह तो जीवन का संतुलन है।
जैसे भक्ति के मार्ग पर श्रद्धा अनिवार्य होती है, वैसे ही व्यस्तताओं के दौर में ध्यान जरूरी है। किसी भक्त से पूछे कि उसके लिये श्रद्धा क्यों जरूरी है, तो वह कहेगा कि जितनी श्रद्धा बलवती होती है, उतना ही विरह बढ़ जाता है। विरह को मिटाने के लिये भक्त प्रार्थना करता है। प्रार्थना को प्रभावशाली बनाने के लिये आंसू बहाये जाते हैं। आंसू के निकलते ही प्रेम जागता है और प्रेम के आते ही भक्ति का आनंद आने लगता है। ठीक यही क्रम ध्यान से जुड़ा है। मेडिटेशन करते ही व्यक्ति के अंदर अपने काम के प्रति निष्कामता जाग जाती है। निष्कामता के आते ही कर्म में स्पष्टता आती है। भ्रम दूर होते ही थकान कम आती है और बिना थके काम का परिणाम बहुत ही सुखद होता है।
इसलिये अपने आपको अभ्यस्त करें कि निजी जीवन हल्का-फुल्का हो। व्यस्तता के समय शालीनता न छोड़े और जितने व्यस्त हो, उतना ही परमार्थ की भावना बनाये रखें। दूसरों के हित के लिये सोचने से प्रतिभा निखरती है। निजी जीवन हल्का-फुल्का होते ही बाहरी जीवन में तेजस्विता के दर्शन होने लगते हैं। भीतर शांति और बाहर तेज इस संतुलन से सफलता के अर्थ ही बदल जायेगें।
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