इसी को संत जन की भाषा में निर्झर का साक्षी होना कहा गया है, क्योंकि गुरू अपने सम्पूर्ण दिव्य भाव में अपनी मूल चेतना में निर्मल प्रकाश पुंज की आभा को अपने भीतर समेटे हुए रहते हैं, इसलिए तो प्रत्येक शिष्य एवं साधक की इच्छा होती हैं कि वह अपने गुरू के सानिध्य में पूर्णता के साथ साधनायें सम्पन्न करें।
गुरू पूर्णिमा प्रत्येक साधक-साधिका के लिए ऐसा महान और श्रेष्ठ महोत्सव है, जब वह अपने गुरू की पूजा अर्चना साधना कर अपने जीवन में ज्योति आलोकित कर उस गुरूत्व शक्ति को अपने भीतर आत्मसात करें अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त करें व मनुष्य से देवत्व की और अग्रसर हो सकें।
इसलिए पूर्णिमा के दिन गुरू की पूजा अर्चना कर साधक गुरू के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रगट करता है, व शिष्य का हित इसी में है कि वह अपने गुरू से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखें, और साधना-दीक्षा के माध्यम से प्रयास करें। जिससे वह गुरुमय बनने की ओर क्रियाशील हो सके।
गुरू साधना का वर्णन तो हमारे शास्त्रों में वर्णित है, वशिष्ठ, याज्ञवल्क्य, गोरखनाथ, रामतीर्थ या रामकृष्ण परमहंस सभी का एक ही उद्देश्य रहा कि वे अपने शिष्यों को साधना दीक्षा के माध्यम से उनके जीवन के अन्धकार को दूर कर जीवन को ज्ञान के प्रकाश से प्रज्ज्वलित करें। सभी शक्तियों की सिद्धता व धन लक्ष्मी की साधनायें तभी फलीभूत होती है, जब गुरुत्व साधना को साधक आत्मसात करता है।
गुरू पूर्णिमा का भावार्थ यही है कि अपने आपको सद्गुरु स्वरूप में पूर्णता से सरोबार करना, अतः गुरू का अर्थ ही है- ज्ञान, तृप्ति, आनन्द, मस्ती, सिद्धता और पूर्णता जिसकी खोज सदैव इस जीवात्मा को रही है और रहेगी।
पूर्ण रूपेण गुरू पूर्णिमा के शुभ पर्व पर गुरू की साक्षात पूजा करनी चाहिये, पर जो साधक-साधिकायें गुरू पूर्णिमा पर उपस्थित न हो सकें, उन्हें अपने निवास स्थान पर प्रसन्न् मन से परिवार के साथ पूर्ण विधि से गुरू साधना सम्पन्न करनी चाहिए।
साधकों को चाहिए कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इस वर्ष पूर्णता प्राप्ति की यह गुरु पूर्णिमा महोत्सव पूर्ण चैतन्य तेजस्विता युक्त चन्द्र ग्रहण पर्व पर सम्पन्न हो रही है, निश्चिन्त रूप से ऐसे दिव्य चन्द्र ग्रहण काल में किसी भी साधना में मंत्र जप या पूजा का विशेष महत्त्व होता है। ऐसे श्रेष्ठ सुयोगों से युक्त दिवस पर जो कुछ सुस्थितियों के रूप में ग्रहण करना हो, इस हेतु पीली धोती पहनकर अपने सामने एक छोटी-सी चौकी पर नूतन सद्गुरु चित्र रखें, सामने प्लेट या थाली में गुरू यंत्र व चन्द्रोदय गुटिका स्थापित कर धूप-दीप जलाकर निम्न क्रमानुसार पूजन करें-
आचमन-तीन बार आचमनी से दाहिने हाथ में जल लेकर पी लें। आचमन का अर्थ है- क्लीं, श्रीं और ऐं इन तीनों शक्तियों को अपने भीतर धारण करने की प्रक्रिया। न्यास- अर्थात् धारण करना देह में स्थापित सिर, आंखें, कान, हृदय, नाभि, हाथ पैर आदि विभिन्न अंग उन्हें जाग्रत एंव पवित्र करना दायें हाथ के अंगूठे और अनमिका उंगली को मिलाकर नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण कर स्पर्श करें-
अंग न्यास-
ऊँ हृदयाय नमः
परमतत्त्वाय शिरसे स्वाहा
नारायणाय शिखाय वषट्
गुरूभ्यो कवचाय हुम्
नमः नेत्रत्रयाय वषट्
ऊँ शिवेम फट् तीन बार ताली बजायें।
न्यास
ऊँ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
परमतत्त्वाय तर्जनीभ्यां नमः।
नारायणाय मध्यमाभ्यां नमः।
गुरूभ्यो अनामिकाभ्यां नमः।
नमः कनिष्ठिकाभ्या नमः।
ऊँ करतल पृष्ठाभ्यां नमः।
ध्यान- अपने आज्ञा चक्र में पूज्य गुरूदेव का ध्यान करते हुये निम्न मंत्रों को बोले-
यो विश्वात्मा विविधविशयान् प्राष्य भोगान् स्वधिष्ठान्
पज्चाच्चायान्यान् स्वमतिविशयान् ज्योतिष स्वेन सूक्ष्मान्।
सर्वानेतान् पुनरपि शनैः स्वात्मनि स्थापयित्वाः
हित्वा सर्वान् विगतगुणगणः पात्वसौ नस्तुरीयः।
श्री गुरू चरणभ्यो नमः ध्यानं समर्पयामि।
जो गुरूत्व स्थूल शरीर में आकर शुभाशुभ कर्मजनित भोगों को भोग कर अपनी स्व शक्ति द्वारा कल्पित सूक्ष्म विषयों को अपने ही प्रकाश से भोगते हुए धीरे-धीरे समस्त जागतिक प्रपंच को अपने भीतर समाहित कर निर्गुण रूप में स्थित हो वह तुरीय स्वरूप सद्गुरू हमारी रक्षा करें।
आसन- दोनों हाथ में पुष्प लेकर गुरूदेव को आसन दें-
आदिबुद्धा प्रकृत्यैव सर्वे धार्माः सुनिज्चिताः।
यस्यैवं भवति शान्तिः सौ मृतत्वाय कल्पते।।
तमो स पूर्वा एतोस्मानं सकृते कल्याण त्वां कमलया
बुद्ध प्रबुद्ध स नित्य अचिन्त्या वैराग्यं एतोस्मानं
स्कृते कल्याण त्वां पुष्पासनं समर्पयामि नमः।
आवाहन- दोनों हाथ उठाकर हृदय से उनका आवाहन करता हूं।
मम प्राण स्वरूपं, देह स्वरूपं चिन्त्य स्वरूपं
आत्म स्वरूपं गुरूं आवाहयामि नमः।
न निरोधो व्युत्पत्ति र्न बद्धो न चं साधकः।
न मुमुक्षु वै मुक्तः इत्येशा परमार्थता।।
श्री गुरू चरणेभ्यो नमः इदमावाहनं समर्पयामि।
पाद्य-गुरू चरणों में दो आचमनी जल समर्पित करें।
न कश्चिज्जायते जीवः संभवोऽस्य न विद्यते।
एतत् तदुत्तम सत्यं यत्र किंचित्र जायते।।
श्री गुरू चरणेभ्यों नमः इदं पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्य- दाहिने हाथ में जल लेकर अर्घ्य दें।
यस्मिन्सर्वणि भूतानि आत्मैवाभूद् बिजानतः।
तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपज्यतः।।
ऊँ देवो तवा वै सर्वां प्रणतवं परिसंयुत्वाः सकृत्वं
श्री गुरू चरणेभ्यों नमः अर्घ्य समर्पयामि नमः।
आचमन- तीन आचमनी जल गुरू चरणों में अर्पित करें-
ऊँ हिरण्मयेन पवित्रण सत्यस्यापि हितं मुखम्।
तत्त्वं पुत्रश वृणु सत्यधार्माय दृष्टये।।
श्री गुरू चरणेभ्यो नमः इदमाचानीयं जलं समर्पयामि।
स्नान- गुरू चरणों में जल समर्पित करें-
यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः।
अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानताम्।।
श्री गुरू चरणेभ्यो नमः स्नानं जल समर्पयामि।
वस्त्र-मौली का टुकड़ा समर्पित करें-
यद्वाचानमभ्युदितं येन वागभ्युदीयते।
तदेव ब्रह्मत्वं विद्धि नेदे यदिदमुपासते।।
श्री गुरू चरणेंभ्यों नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि।
गन्ध- श्री गुरू चरणेभ्यो नमः चंदनं समर्पयामि।
पुष्प- गुलाब के फूल गुरू चरणों मे चढ़ायें-
यच्छोण न श्रृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम्।
तदेव ब्रह्म तद्विद्धि नेदं यदिदमुपासते।।
श्री गुरू चरणेभ्यों पुष्पं समर्पयामि।
धूप-अगरबती या धूप अर्पित करें।
तस्मादृचः साम यजूंशि दीक्षा,
यज्ञाश्च सर्वें क्रतवो दीक्षणाश्च।
संवत्सरज्च यजमानश्च लोकाः
सोमो यत्र पवते यत्र सूर्यः धूपमद्यापयामि।
दीप- गुरू को दीपक दिखाये।
एको देवः सर्वभूतेशु गूढः सर्वव्यापी
सर्वभूतान्तरात्मा। कर्माधयक्षः सर्वभूताधिावासः
साक्षी श्री गुरू चरणेभ्यों नमः दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य- यद्यत्पज्यतिचक्षुर्भ्या तत्तदात्मेति भावयेत्
यद्यच्छृणोति कर्णाभ्यां तत्तदात्मेति भावयेत्ः
दृष्टिं ब्रह्ममयीं कृत्वा पज्येद् ब्रह्ममयं जगत्
श्री गुरू चरणेभ्यो नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
आचमन- तीन आचमनी जल अर्पित करें-
ऊँ प्राणाय स्वाहा, ऊँ अपानाय स्वाहा,
ऊँ व्यानाय स्वाहा, ऊँ उदानाय स्वाहा,
ऊँ समानाय स्वाहा।
रूद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की 9 माला जप करें-
मंत्र जप सम्पन्न कर निखिल आरती व लक्ष्मी आरती करें, दीपक के चारों ओर तीन बार आचमनी से जल घुमावें व मंत्र पुष्पाञ्जलि करें-
सर्वाननजिरोग्रीवः सर्वभूत गुहाजयः।
सर्व व्यापी स भगवान् तस्मात् सर्वगतः शिवः।।
नानासुगन्धापुष्पाणि यथा कालोद्भवानि च।
पुष्पाज्जलिर्मया दत्ता गृहाण गुरूनायक।।
श्री गुरू चरणेभ्यो नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।
नमस्कार प्रार्थना करें-
यतो वा इमानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति
यत् प्रम्यभिसंविसन्ति तद्विजिज्ञासस्व तद् ब्रह्मेति।
परास्य शक्ति र्विविधौव ज्ञानबलक्रिया च ।
श्री गुरू चरणेभ्यों नमः नमस्कारं समर्पयामि।।
पूजन पूर्णता हेतु प्रसाद हाथ में लेकर विशेषार्घ्य करें-
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्ण मुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।
ऊँ शान्तिः। शान्तिः। शान्तिः।।
शास्त्रों में गुरू की जीवन्त-जाग्रत देव स्वरूप के सम्पूर्ण व्यक्तित्वमय स्वीकार किया है जो देवता और मनुष्य के बीच जुड़ाव की कड़ी है, अतः गुरू सानिध्य व गुरू साधना के माध्यम से ही जीवन में विषाद्, रोग, कष्ट, बाधायें और भटकाव समाप्त होते हैं। ऐसी ही नूतन चेतनाओं की प्राप्ति की क्रिया हेतु इस दिव्यतम चन्द्र ग्रहण युक्त गुरू पूर्णिमा के विशेष महोत्सव पर गुरुत्व शक्तियों को दीक्षा द्वारा आत्मसात करने से जीवन में असत्य व अधर्म युक्त विषम क्रियायें समाप्त होती हैं। इसी से सांसारिक गृहस्थ जीवन में सत, रज, ओज युक्त सभी सुलक्ष्मियोंमय क्रियाशील स्थितियां निर्मित होती हैं, इसी हेतु विशेष चन्द्र ग्रहण के शुभ अवसर फोटो द्वारा दीक्षा ग्रहण करने से परिवार में सावन शिवमय स्थितियां निर्मित होंगी। अपना नूतन फोटो कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर भेजने से विशिष्ट चन्द्र ग्रहण काल प्रातः 08:38 AM से 11:21 AM में लक्ष्मी मंत्रों से आपूरित शक्तिपात दीक्षा प्रदान की जा सकेगी।
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