हालांकि मन के पास कई तरह के विकल्प होते हैं। लेकिन हम एक जैसी स्थिति को ही स्वीकार कर पाते हैं। हमारी मानसिक स्थिति किसी परिवेश या किसी वस्तु से नहीं जुड़ी होनी चाहिये। जिस दिन हम किसी भी भाव पर निर्विकार होना सीख जाते हैं। उसी दिन सारी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं और यह भाव साधनाओं, दीक्षाओं व आध्यात्म की क्रियाओं से ही संभव है। हमारा मन अशांत न हो, इसके लिए हमें स्वयं को बदलना होगा।
हम अपने दिन की शुरूआत ऐसी सोच से करें, जो हमें जीवन में आगे की ओर अग्रसर करें जो हम जीवन में चाहते हैं। यदि हम अच्छी सोच विकसित करते हैं तो हमारे मन को उसी परिस्थिति में सोचने की आदत पड़ जाती है। सूचनायें मन के लिए खाद का काम करती हैं। सुबह जैसे हम देखते, सुनते या अखबार में पढ़ते हैं। वैसे ही विचार दिन भर हमारे मन में चलते हैं, तभी मन आक्रामकता, भय, हिंसा, दुष्क्रिया के विचारें से भरा रहता है। यदि मन की स्थिति को बदलना है तो हमें दिन के समय तामसिक भोजन से बचना होगा, कुछ भी भोज्य पदार्थ ग्रहण करने से पूर्व अपने ईष्ट या गायत्री मंत्र का जप कर ही अन्न-जल ग्रहण करें, जिससे सकारात्मक ऊर्जा हमारे मन के दूषित विचारों को नष्ट कर सके।
कहते हैं- जैसा अन्न वैसा मन, जैसा पानी वैसी वाणी, सात्विक मन से तैयार किया भोजन, सात्विक भोजन न होकर प्रसाद बन जाता है और प्रसाद स्वरूप में भोजन ग्रहण करने से मन-देह-विचार हष्ट-पुष्ट व सकारात्मक वृद्धि से आप्लावित होते हैं। साथ ही यह भी कोशिश करें कि भोजन करते समय टीवी, मोबाईल ना देखें। इन सभी क्रियाओं के माध्यम से हमारे दिन की शुरुआत सकारात्मक व सफलता युक्त होगी।
हम इस सत्य को नकार नहीं सकते कि जीवन की समस्याएं अलग-अलग होती हैं। लेकिन उन्हें समझने का समीकरण सही होना चाहियें। किसी व्यक्ति को फूल पसंद होते हैं, तो किसी को नहीं इस सच को स्वीकार करना सीखना होगा।
नापसंदगी का कोई भी कारण हो सकता है। हमें वही लोग अच्छे लगते हैं, जिनके संस्कार हमसे मेल खाते हैं, पर हमें उन्हें भी स्वीकार करना होगा, जिन्हें हम पसंद नहीं करते हैं। अपनी सोच की शक्ति को पहचानने के साथ ही अपने विचारो को बदलने से ही जीवन में कुछ अनुकूलमय स्थितियां निर्मित होंगी।
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