शक्ति बाहर से प्राप्त नहीं की जा सकती और न ही बाजार से मिलती है, शक्ति का स्रोत तो अपने स्वयं के भीतर छुपा है, उसे जाग्रत करने की आवश्यकता है, जो कि गुरू से दीक्षा साधना को आत्मसात् करने से जाग्रत किया जा सकता है। जिससे मन के साथ-साथ शरीर भी ऐसा तेजस्वी, बलवान और निरोगमय हो जाता है।
श्री हनुमान वीरता, पराक्रम, दक्षता के प्रतीक है और शक्ति, बल, वीर्य ओज, स्फूर्ति, धैर्य, यश निर्भयता, निरोगता, विवेक इत्यादि महागुणों के प्रदाता हैं। जो साधक स्वयं व अपनी संतान इन उच्च गुणों से युक्त करना चाहते है उन्हें इस चेत्रीय पूर्णिमा पर जीवन के असुर रूपी लंका पर विजय प्रदान करने वाले श्री हनुमान जी के अवतरण पर्व को अवश्य आत्मसात् करना चाहिये । इससे हमारी संतान मानसिक-शारीरिक आत्मिक रूप से पूर्ण बलिष्ट व ज्ञान शक्ति रूपी ऊर्जा से चैतन्य हो सकेगी। अत: महावीर हनुमान बल बुद्धि ज्ञान शक्ति दीक्षा के प्रभाव से जीवन की सभी क्रियाओं में दक्षता से युक्त हो सकेंगे।
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