त्वं विचितं भवतां वदैव देवाभवावोतु भवतं सदैव।
ज्ञानार्थ मूल मपरं महितां विहंसि शिष्यत्व एव भवतां भगवद् नमामि।।
इस श्लोक में बताया गया है कि जीवन का श्रेष्ठ तत्व शिष्य होता है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में यदि सबसे उच्च कोटि का कोई शब्द है, तो वह शिष्य है। शिष्य का मतलब यह नहीं है कि वह गुरू से दीक्षा लिया हुआ व्यक्ति हो, शिष्य का मतलब है जो प्रत्येक क्षण नवीन गुणों का अनुभव करता हुआ अपने जीवन में उतारता हो, वह शिष्य है। बालक भी शिष्य है, जो माँ के गुणों को अपने जीवन में उतारता है, देख करके अनुरूप बनता है।
सेवा धर्म अति कठोर
गुरू के पुत्र गुरू ही कहलायेंगे, हाँ पिता सिखा दे अच्छी तरह से। यह पिता का धर्म है कि एक भी क्षण अकारण नहीं जाये, इसीलिये उनको तैयार किया है। इसलिये नहीं कि कोई वारिस बनाना है पीछे, परन्तु आपकी आँख मेरे प्रति जितनी नम्र है उतनी इनके प्रति भी होना चाहिये। मगर गुरू बनने में कांटे ही कांटे हैं। शिष्य बनने में आनन्द ही आनन्द है। शिष्य का अर्थ है सेवा और सेवा-धर्म अति कठोर है।
जीवन का आनन्द तो शिष्य बनने में ही है, जीवन का सार तो शिष्यता में ही निहित है। अपने इष्ट के प्रति प्रेम में न्यौछावर हो जाने की उच्च अवस्था का नाम शिष्यता है। जीवन में ऊँचा उठना है और यदि नहीं उठते हैं तो जीवन व्यर्थ है, क्योंकि ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना बहुत कठिन है, नीचे फिसलना बहुत आसान है। दस सीढि़यों से नीचे उतरने में एक सैकण्ड लगता है, परन्तु दस सीढ़ी चढ़ने में आपको बीस सैकण्ड लगेंगे। एक-एक सीढ़ी चढ़नी पड़ेगी, आपको नित्य बार-बार सोचना पड़ेगा कि मैं शिष्य बन रहा हूं या नहीं बन रहा हूं? क्या मेरे अन्दर राक्षस वृति पनप रही है या सद्गुणों का विकास हो रहा है? मेरा जीवन कैसे व्यतीत हो रहा है? अपने आप में विश्लेषण करना जीवन की श्रेष्ठता है, महानता है और यह वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने आप में बिल्कुल शिष्यवत् बनकर गुरू के पास रहने की सामर्थ्य रखता है और ऐसे ही व्यक्ति गुलाब के फूल बनते हैं, जो सही अर्थों में गुरू के लिये अपने आपको समर्पित कर देते हैं।
जीवन का श्रेष्ठतम शब्द शिष्य है और शिष्य वह होता है जो अपनी जान को हथेली पर लेकर चलता है। दो तरह के व्यक्ति होते हैं। एक व्यक्ति सद्गुणों का आगार होता है, भण्डार होता है, एक व्यक्ति षड़यंत्र का भण्डार होता है जो कि चौबीसों घंटे यही सोचता है कि मैं कैसे छल करूं? कैसे झूठ बोलूं? कैसे प्रपंच रचूं, कैसे इनको फुसलाऊं, कैसे इनमें फूट डालूं? कैसे इन दोनों को लड़ाऊं? कैसे अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करूं? जो जीवन में इन स्थितियों से दूर रहकर गुरू सेवा का ही निरन्तर ध्यान रखता है वही शिष्य है वह सदैव छल, प्रपंच, षडयंत्र आदि से दूर रहता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,