जब मनुष्य है, तो इच्छाये भी होंगी और अगर इच्छाये नहीं है, तो फिर वह मनुष्य भी नहीं है, प्रत्येक मानव की यह इच्छा होती है कि वह अच्छे-से-अच्छा खाये, अच्छे-से-अच्छा पहिने, सभी कार्यों को सफलता पूर्वक सम्पन्न करे और भली प्रकार तथा व्यवस्थित ढंग से अपने जीवन का निर्वाह कर सके, जिसके लिये उसे पग-पग पर संघर्षशील बने रहना पड़ता है, किन्तु इतनी मेहनत और प्रयत्न करने पर भी उसे कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती, वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में असफल ही रहता है— अक्षम ही रहता है और फिर इस प्रकार उसे एक अधूरा, एक निराशाजनक जीवन जीना पड़ता है— क्योंकि उसकी इच्छायें अनेक हैं, असीमित हैं और उन इच्छाओं की पूर्ति करना सामान्य मनुष्य के बस की बात नहीं है।
और इन्हीं सब इच्छाओं की पूर्ति हेतु वह निरन्तर क्रियाशील रहते हुये अपने कार्यों को सम्पन्न करने का प्रयास करता है, अथक मेहनत करता है, जिससे उसे सफलता प्राप्त हो, उसके कार्य शीघ्र ही सम्पन्न हो। परन्तु निरन्तर सुभावों से प्रयत्न करने के पश्चात् भी जब उसे सफलता नहीं मिलती है, अनेक बाधाओं के कारण उसके कार्य अपूर्ण रह जाते हैं, तो वह निराश हो जाता है, तनाव ग्रस्त हो जाता है। ऐसी स्थितियों के निवारण हेतु हमें दैवीय शक्ति की सहायता की आवश्यकता होती है, क्योंकि हमारे पिछले जीवन के पाप, दोष, कुकर्म के फलस्वरूप हमारे वर्तमान जीवन में स्थितियां निर्धारित होती हैं। जैसे हमारे पिछले जन्मों के कर्म होंगे उसके परिणाम हमें इस जन्म में भोगने पड़ते है। पिछले जन्म के सुकर्म हमें परिणाम स्वरूप सुस्थितियां प्रदान करेंगे तथा पिछले जन्म के कुकर्म हमारे इस जन्म में विषम स्थितियां प्रदान करेंगे। अतः हमारे वर्तमान जीवन में सुस्थितियों के विस्तार हेतु हमे दैवीय शक्ति का आश्रय लेना पड़ता है। जिससे कि हमारे पिछले जन्मों के पाप, दोष का अन्त हो और हमारे वर्तमान जीवन में दैवीय शक्ति की चेतना से हमें पूर्णता प्राप्त हो, हमारे सभी कार्य सफल हो, हमारी बाधाओं का विनाश हो और हमारे भौतिक व अध्यात्मिक जीवन में उन्नति प्राप्त हो सके।
इस हेतु ‘सफला एकादशी’ के दिन साफल्य सफलता साधना सम्पन्न की जाये, तो व्यक्ति की मनेच्छाएं स्वतः ही पूर्ण होने लगती हैं, उसके कार्य अधिक परिश्रम किये बिना ही सहज रूप से सम्पन्न होने लगते हैं, उसके कार्य में आने वाली बाधाओं का नाश होता है, क्योंकि साफल्य सफलता साधना सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली, कल्याणकारी और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली एक मात्र साधना है, जिसे पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सम्पन्न किया जाता है जो कि श्रेयस्कर व ज्यादा हितकारी माना गया है, क्योंकि सही क्षणों को पकड़ना मानव-जीवन की सफलता का मूल रहस्य है।
इस साधना के द्वारा व्यक्ति में वे सभी शक्तियां समाहित हो जाती हैं, जिसके द्वारा वह जीवन में आने वाले प्रत्येक उतार-चढ़ाव को धैर्य के साथ पार करने में सक्षम हो जाता है। व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं से लड़ने के लिये दैवीय चेतना, ज्ञान व आत्मबल प्राप्त होता हैं, जिससे वह किसी भी कार्य को सम्पन्न करने से घबराता नहीं है और साथ ही उसके न्यूनतम प्रयास व सरलता से उसके कार्य सम्पन्न होते है, उसे सभी कार्यों में सफलता मिलती है चाहे वह भौतिक पक्ष हो या आध्यात्मिक पक्ष, उसे पूर्णता प्राप्त होती ही है। साधनाये अनेक हैं, किन्तु यह साधना लघु परिश्रम से ही उस मंजिल तक पहुँचा देती है, जहाँ पर पहुँचना ही मनुष्य-जीवन की श्रेष्ठता मानी जाती है।
इस तरह की श्रेष्ठ और गुह्य साधनाओं को यथा समय अवश्य सम्पन्न कर लेना चाहिये, क्योंकि कभी-कभी हम प्रमादवश या नासमझी से साधनाओं के रहस्य को समझ नहीं पाते या समझने की कोशिश नहीं करते, जो कि हमारे लिये अत्यन्त ही लाभकारी होती है। बुद्धिमानी इसी में है कि इनका यथा समय लाभ उठाते रहना चाहिये, क्योंकि गृहस्थ जीवन समस्याओं का आगार है— और किस समय कौन सी समस्या आ जाये, यह समझ पाना कठिन है, आने वाली इस प्रकार की समस्याओं के लिये तो, चाहे वह पुत्र से सम्बन्धित हो, स्त्री-पुरूष, धन-दौलत, स्वास्थ आदि से सम्बन्धित क्यों न हो, इनसे निपटने के लिये शक्ति के रूप में इनके आक्रमण से पूर्व इस तरह की साधनाओं को सम्पन्न कर शक्ति संचय करते रहना चाहिये।
साधना विधि
साधना प्रारम्भ करने से पूर्व आप पीले पुष्प और पीले पुष्पों की माला, पीला वस्त्र, केसर तथा घर में शुद्धता के साथ बनाई हुई खीर नैवेद्य के लिये एकत्र कर लें, साथ ही धूप, दीप, अक्षत, कुंकुम, चन्दन, इत्यादि का प्रयोग नित्य पूजन क्रमानुसार ही करें।
साधक सफला एकादशी 19 दिसम्बर 2022 के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत होकर, पूर्ण पवित्रता एवं श्रद्धा के भाव से युक्त होकर अपने आसन पर बैठ जायें, साधना के समय आप पीले वस्त्र ही धारण करें। सर्वप्रथम सद्गुरूदेव का संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करें और एक माला गुरू मंत्र का जप करें।
तत्पश्चात् अपने सामने किसी बाजोट पर पीले वस्त्र को बिछाकर उसके ऊपर पुष्प की पंखुडि़यां बिखेर दें, इन पंखुडि़यों के ऊपर किसी शुद्ध पात्र में सर्व कार्य सिद्धि यंत्र को स्थापित करें और कुंकुम, चंदन तथा पुष्प माला समर्पित करें। और साथ ही सर्व कार्य सिद्धि माला को भी स्थापित कर संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करें।
पूजन करते समय किसी निर्धारित क्रम की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है तो आपके मन में पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति-भावना की। यही वह क्रम है, जिसके माध्यम से भगवान विष्णु निश्चित रूप से पूर्ण साधना काल में उपस्थित होते ही हैं तथा साधक की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। इसके बाद सर्व कार्य सिद्धि माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप सम्पन्न करें।
मंत्र जप सम्पन्न करने के पश्चात् गुरू आरती सम्पन्न करें। इसके बाद हाथ जोड़कर सद्गुरूदेव व भगवान विष्णु से क्षमा-याचना करें, कि यदि हमारे पूजन और साधना में कोई कमी रह गयी हो, तो उसे क्षमा करें, हमें पूर्णता प्रदान करें तथा हमारी इच्छित कामनाओं को शीघ्र ही पूर्ण करें। साधना समाप्ति के पश्चात् साधना सामग्री को कपड़े में बांधकर किसी जलाशय में विसर्जित कर दें।
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